बेहतर रिटर्न चाहिये तो निवेश कर तीन साल के लिए भूल जाइये

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 08, 2022 | 7:44 AM IST

आलोचकों का कहना है कि शेयर बाजार से जुड़े विश्लेषक कभी ‘बेचने’ की सलाह नहीं देते हैं।


जैसा कि आमतौर पर किसी भी धारणा को सभी मुद्दों पर लागू कर दिया जाता है जो कई बार बढ़ा चढ़ा कर पेश किये जाने जैसा भी लगता है।

यहां भी कुछ ऐसा ही है पर यह नहीं कह सकते हैं कि यह कहना पूरी तरह से गलत है। अगर विश्लेषक किसी कंपनी के शेयरों को बेचने की सलाह जल्दी से नहीं देते हैं तो इसके पीछे भी कुछ वजहें होती हैं।

एक वजह तो यह होती है कि अगर किसी विश्लेषक ने किसी कंपनी के शेयरों को बेचने का सुझाव दे दिया, तो  उस कंपनी के प्रबंधन तक उस विश्लेषक की पहुंच सीमित रह जाती है।

दूसरी वजह यह होती है कि जिस व्यक्ति को बेचने का सुझाव दिया जाना होता है, दरअसल उसे उस कंपनी के शेयर खरीदने की सलाह भी उसी विश्लेषक ने  दी होती है। 

तो अब अगर वही विश्लेषक उन शेयरों को बेचने का सुझाव देगा, तो ऐसा लगेगा मानो उसके अनुमानों में कोई गलती रही होगी। तीसरी वजह यह है कि अगर बेचने की सलाह गलत साबित हो जाती है, तो वह व्यक्ति इसके लिए सलाहकार को कभी माफ नहीं करता है।

लोगों के व्यवहार को पढ़ने से यह पता चलता है कि आमतौर पर अगर शेयरों को खरीदने की सलाह गलत होती है तो इसके लिए सलाहकार को तो निवेशक एक बारगी माफ कर भी देते हैं, पर बेचने की सलाह गलत होने पर वे ऐसा नहीं कर पाते हैं।

इन्हीं सब बातों का ध्यान रख कर आमतौर पर ‘बेचने’ का सुझाव देना विश्लेषकों के लिए मुश्किल हो जाता है।

कई बार आपने देखा होगा कि सलाहकार शेयरों को होल्ड (कुछ और समय के लिए अपने पास रखने) करने की सलाह देते हैं पर दरअसल वे कहना चाह रहे होते हैं कि शेयरों को बेच दिया जाए।

अगर आप गहराई से विचार करें तो जब कोई विश्लेषक यह कह रहा हो कि किसी कंपनी के शेयर को कुछ समय के लिए होल्ड करें तो दरअसल वह कोई स्पष्ट सुझाव देने की स्थिति में ही नहीं होता है।

जरा सोचिए कि आपको कोई विश्लेषक किसी शेयर को और समय के लिए अपने पास रखने की सलाह तो तभी देगा जब उसे लगता हो कि उस शेयर के भाव और ऊपर चढ़ेंगे।

और अगर वह इस बारे में बहुत स्पष्ट है तो फिर वह खुलकर उस कंपनी के शेयर खरीदने का सुझाव क्यों नहीं देता बजाय कि उसे होल्ड करने का सुझाव देने के।

जब विश्लेषक शेयरों को बेचने का सुझाव देते भी हैं तो वे बड़ी चतुराई के साथ इन्हें खरीदने से ‘बचें’ और इन शेयरों की संख्या ‘घटाएं’ जैसे शब्दों का ही इस्तेमाल करेंगे। अक्सर यह भी होता है कि उन्होंने बेचने की सलाह गलत समय पर दे दी हो।

लुढ़कता हुआ शेयर बाजार जब तक अपने निचले स्तर पर नहीं आ जाता तब तक कोई सलाहकार शेयरों को बेचने की सलाह ही नहीं देता है।

आप देखेंगे कि जब तक किसी कंपनी के शेयर का भाव अपने उच्चतम स्तर से एक तिहाई पर घट कर नहीं पहुंच जाता है तब तक उसे बेचने की सलाह तो दी ही नहीं जाती है।

अब विश्लेषकों की ओर से बेचने की सलाह गलत क्यों हो जाती है, इसकी भी कई वजहें हैं। एक वजह तो यह होती है कि जब तक हालात बहुत बिगड़ नहीं जाते तब तक वित्तीय सलाहकार बेचने की सलाह देते ही नहीं हैं।

अगर किसी सलाहकार ने एक कंपनी के शेयर को बेचने की सलाह दी हो तो इसका यह मतलब नहीं है कि बाजार अपने निचले स्तर पर है।

पर अगर कई सारे सलाहकार विभिन्न उद्योगों से जुड़े अलग अलग कंपनियों के शेयरों को एक ही समय में बेचने की सलाह दे रहे हों तो काफी हद तक यह संभावना है कि बाजार अपने निचले स्तर पर पहुंच गया है।

दूसरी तिमाही के नतीजे आने के बाद से ही पिछले कुछ महीनों में अधिकांश क्षेत्रों में बिकवाली का सुझाव दिया गया है।

साथ ही विभिन्न निवेश सलाहकारों ने यह सुझाव भी दिया है कि निवेशक अपने पोर्टफोलियो में से शेयर बाजारों में निवेश की हिस्सेदारी को कम करें और दूसरी जगहों पर पैसा लगाएं।

इसमें कोई शक नहीं है कि 2008-09 की दूसरी तिमाही से ही अधिकांश क्षेत्रों से मिलने वाला रिटर्न कम होना शुरू हुआ है और यह 2009-10 तक जारी रह सकता है।

हालांकि पिछले 11 महीनों के दौरान शेयर बाजार पहले ही 50 फीसदी से अधिक गिर चुका है। चुनाव के दौरान शेयर के भाव कुछ और गिर सकते हैं। यह भी हो सकता है कि 2009 और 2010 में शेयर बाजारों में कोई खास वापसी नहीं देखने को मिले।

मुझे लगता है कि मौजूदा समय में निवेशक बाजार का निचला स्तर आने का इंतजार करने की बजाय आने वाले 12 महीनों को खरीद के लिए बेहतर समय समझें।

जो भी निवेशक तीन सालों के लिए इंतजार करने के लिए तैयार हो उसके लिए यह निवेश का सुनहरा मौका हो सकता है। हालांकि कुछ संपत्तियां 2009 में निवेश की बेहतर संभावनाएं दिखा रही हैं।

First Published : December 7, 2008 | 9:51 PM IST