बाजार में जिस वक्त उछाल का समा होता है, उस समय निवेश के साधारण नियम- सिर्फ उन शेयरों या क्षेत्रों में पैसा लगाना चाहिए जो तेजी से साथ बढ़ रहे हैं- को अपनाया जाता है।
उदाहरण के लिए पिछली बार जब बाजार में तेजी आई थी, उस समय रियलिटी और बिजली क्षेत्र सातवें आसमान में था।
इसके विपरीत जब बाजार में गिरावट का दौर शुरू होता है, परिस्थितियां बिल्कुल उलट होती हैं। ऐसे में विशेषज्ञों की गिरते बाजार में खरीदारी की राय को देखते हुए भी किसी सही शेयर या क्षेत्र में निवेश करने के लिए उसकी पहचान कर पाना लगभग नामुमकिन होता है।
बेशक यहां फार्मास्युटिकल और रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं (एफएमसीजी) जैसे सुरक्षित क्षेत्र भी हैं, जिनके बेहतर प्रदर्शन की संभावनाएं अधिक हैं। लेकिन अहम बात तो यह है कि इस समय में निवेशक की जिंदगी थोड़ी ज्यादा मुश्किल हो जाती है।
मंदी में खरीदारी की बातें सुनने में तो अच्छी लगती हैं, लेकिन सही शेयर का चुनाव करना पाना चुनौतीपूर्ण होता है। लाभांश-आय, मूल्य-आय (पीई) और वृध्दि , मूल्य-अंकित मूल्य, मूल्य-आय (पीई) और कई अन्य ऐसे विभिन्न अनुपात हैं, जो शेयर का चुनाव करने में मदद करते हैं।
यहां हम इन्हीं में से एक अनुपात – कम पीई वाले शेयर का जिक्र कर रहे हैं।
कम पीई वाले शेयरों की खरीद लगभग वैसी है, जैसे कि आप एफएमसीजी, इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं या कपड़ों और अन्य सामान की खरीदारी के समय मोल-भाव और छूट पर नजर रखते हैं।
यही तर्क दलाल स्ट्रीट में मोल-भाव पर लागू होता है। यह जानने से पहले की यह काम कैसे करता है, आइए इससे पहले इसकी मूल परिभाषा को समझते हैं- पीई अनुपात शेयर की बाजार कीमत को कंपनी की प्रति शेयर आय (ईपीएस) से भाग देने पर प्राप्त होता है, र्पीई=शेयर कीमत ईपीएस।
जबकि पीई अनुपात को किसी भी शेयर की कीमत जानने के लिए अकेले संकेत के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाता, फिर भी निवेशक पीई अनुपात को बेहद बारीकी से देखते हैं।
पीई अनुपात से पता चलता है कि कंपनी को होने वाली 1 रुपये की आय के लिए कितने निवेशक पैसा लगाना चाहते हैं।
इसका मतल है कि पीई अनुपात जितना कम होगा, उतना ही निवेशक इसमें कम पैसा लगाना चाहते हैं। दूसरी तरफ जितना अधिक अनुपात होगा, उतना अधिक पैसा निवेश करना चाहते हैं।
}एलऐंडटी, एचडीएफसर जैसे शेयरों का पीई अनुपात बेहद अधिक है, इसकी वजह निवेशकों का इस तरह की कंपनी में अधिक विश्वास होना है।
इसी समय कंपनियों का प्रदर्शन निवेशकों की उम्मीद पर खरा उतरता है और निवेशक भी इन शेयरों को खरीदने के लिए अच्छी कीमत चुकाने को तैयार होते हैं। ऐसा ही कुछ बिजली और रियल एस्टेट के शेयरों में पिछले कुछ वर्षों में देखने को मिला है, जिनमें निवेशक कुछ भी रकम अदा करने को तैयार थे।
हालांकि अभी ये सभी शेयर नीचे आ चुके हैं और तेजी में इनके सबसे ऊपर के आंकड़ों के मुकाबले अब इनकी कीमतों में 60 से 70 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है।
अब कुछ ही निवेशक इन शेयरों को खरीदने के लिए ऊंची कीमतें अदा करना चाहते हैं। यह ठीक वैसा ही है, जैसा कि 1990 के दशक के आखिरी वक्त में तकनीक से संबंधित शेयरों जुड़े कई शेयरों के साथ हुआ था, जिसके बाद कीमतों में जबरदस्त गिरावट देखी गई थी।
हालांकि मूल नियम तो यह कहता है कि अच्छी कंपनियों के लिए जितनी हो सके कम से कम रकम अदा करनी चाहिए और फिर उन शेयरों की कीमतों के वापस मुड़ने का इंतजार करना चाहिए।
कुछ कंपनियों का प्रदर्शन बेहतर हो सकता है, लेकिन बहुत लोग हैं जो अपना पैसा लगाना नहीं चाहते क्योंकि ये शेयर बाजार में बहुत प्रचलित नहीं हैं। कई खरीदार कम पीई अनुपात वाले शेयरों की खरीद में अधिक पैसा लगाने से बचते हैं।
चलिए दो कंपनियों के उदाहरण से समझते हैं:
ठ्ठ कंपनी डीएलके
शेयर मूल्य = 500 रुपये
ईपीएस = 20 रुपये
पीई अनुपात = 50020 = 25
ठ्ठ कंपनी बीएचएल
शेयर मूल्य = 1,000
ईपीएस = 20 रुपये
पीई अनुपात = 1,00020 = 50
ऊपर दी गई दोनों कंपनियों का हालांकि ईपीएस बराबर हे, लेकिन शेयरों की बाजार कीमत के कारण इनका पीई अनुपात अलग है। बाजार इस बात पर ध्यान नहीं देता कि क्या ईपीएस समान है या नहीं। बाजार की दिलचस्पी शेयर के ईपीएस में वृध्दि में होती है।
कंपनी का पीई अनुपात आमातौर पर निवेशकों की ईपीएस में भविष्य में वृध्दि की उम्मीदों को दिखाता है।आदर्शत: कम पीई अनुपात को बाजार में मोल-भाव करने के लिए एक मजबूत संकेत की तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। लेकिन, ठीक इसी समय अधिक पीई अनुपात वाले शेयर का मतलब यह नहीं है कि इसकी कीमत कम होगी या यह महंगा है।
कई शेयर अधिक पीई के बावजूद भी और अधिक चढ़ते हैं। इसके पीछे एक अहम कारण है कि उससे उम्मीद होती है कि इसकी आय वृध्दि में जबरदस्त तेजी आएगी।
ऐसे मामलों में निवेशक अधिक पीई वाले शेयरों में सट्टा खेलने को तैयार हो जाते हैं, क्योंकि उनके अनुसार उन शेयरों का मौजूदा भाव जितना होना चाहिए था, उससे कम होता है।
साथ ही दूसरी तरफ कई बार कम पीई वाले शेयर कमजोर हो जाते हैं, क्योंकि बाजार उनके सामर्थ्य के अनुसार बदलता नहीं है।
इसलिए बेहतर यही है कि आप न सिर्फ पीई अनुपात पर ही ध्यान दें, बल्कि आने वाली कुछ तिमाहियों के लिए आय वृध्दि की संभावनाओं, प्रबंधन की गुणवत्ता, कार्यवाहन की क्षमता और अन्य मापकों पर भी निवेश से पहले नजर डालें।
संक्षेप में कहें तो किसी कंपनी के शेयरों को खरीदने से पहले उसके कारोबार की संभावनों का एक बुनियादी मूल्यांकन करना बेहद जरूरी है।