ऑटोमोटिव इंजन ब्लॉक का निर्माण करनेवाली हिंदुजा फाउंड्रीज अपनी घरेलू और विदेशी मांग को पूरा करने के लिए अपनी उत्पादन क्षमता का विस्तार करने की सोच रही है।
कंपनी की योजना है कि वित्तीय वर्ष 2010 तक उत्पादन क्षमता को 53 फीसदी बढ़ाकर सालाना 2.32 लाख टन कर लिया जाए। इस विस्तार के पहले चरण में उसका लक्ष्य है कि वित्तीय वर्ष 2009 तक उत्पादन को 1.52 लाख टन से बढ़ाकर 1.74 लाख टन किया जाए। जबकि अगले साल उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी करते हुए इसे 2.32 लाख टन के स्तर तक पहुंचाया जाए।
इस योजना को मूर्त रूप देने के लिए वह तमिलनाडु के श्रीपेरुमबुदुर में अपनी दूसरी इकाई लगाने के साथ हैदराबाद में भी एक नयी इकाई स्थापित करेगी। इस विस्तार से यह कंपनी ऑटोमाटिव कास्टिंग के निर्माण के मामले में दुनिया में छठे नंबर पर पहुंच जाएगी। इससे पहले श्रीपेरुमबुदुर में ही पिछले सितंबर में उसने एक आयरन फाउंड्री स्थापित की थी जिससे उसका उत्पादन 50 हजार टन बढ़कर मौजूदा 1.52 लाख टन के स्तर तक पहुंचा था।
हालांकि घरेलू व्यावसायिक वाहन सेगमेंट से अपनी आधी आय अर्जित करने वाली यह वाहन कंपनी इस मोर्चे पर मंदी का सामना कर रही है। इसे देखते हुए जेहन में यह सवाल जरूर कौंधता है कि हिंदुजा फाउंड्रीज की यह विस्तार योजना कितनी उचित है?
पारंपरिक ढांचा
हिंदुजा फाउंड्री के मुख्य वित्तीय अधिकारी वी.शंकर मानते हैं कि व्यावसायिक वाहन निर्माता कंपनियां जैसे टाटा मोटर्स, अशोक लीलैंड और अन्य का अपनी उत्पादन क्षमता में विस्तार करने, विदेशी ऑटो कंपनियों का भारत का रुख करने और औद्योगिक इंजन सेक्टर की बढ़ती जरूरतों को देखते हुए उसके द्वारा बनाए जाने वाले इंजन ब्लॉक की मांग जबरदस्त होनेवाली है।
अनुमान है कि 2010 तक यात्री और बड़े वाहन निर्माताओं की इंजन की खपत बढ़कर 20 लाख यूनिट तक हो जाएगी। इसके अतिरिक्त औद्योगिक इंजन सेक्टर से भी हिंदुजा फाउंड्रीज को उम्मीदें हैं। जबकि कंपनी का मानना है कि रियल्टी और दूरसंचार टावर के क्षेत्र में भी उसकी इंजन की अच्छी खपत होगी।
आंकड़ों की बात करें तो इस कंपनी को व्यावसायिक वाहन सेगमेंट से 50 फीसदी की आय होती है जबकि यात्री वाहन और ट्रैक्टर का हिस्सा इस मामले में 45 फीसदी का है। कंपनी का लक्ष्य है कि उसकी आय में 5 फीसदी का योगदान करने वाले औद्योगिक सेगमेंट का योगदान अगले दो साल में बढ़कर 8 फीसदी हो जाए।
विस्तार के फायदे
यदि इंजन की मांग हिंदुजा फाउंड्रीज केअनुमान केमुताबिक ही बढ़ी तो अगले दो सालों में उसकी आय में 40 फीसदी सालाना तक की बढ़ोतरी हो जाएगी। कंपनी यदि अपनी क्षमता का पूरा उपयोग भी करे तो वह अगले 18 महीनों तक इसकेचलते व्यस्त रहेगी। उत्पादकता बढाने केप्रयास के साथ ही श्रीपेरुमबुदुर इकाई के और ज्यादा ऑटोमेटिक बनने से इस कंपनी की बचत केबढ़ने का अनुमान है।
मुख्य वित्तीय अधिकारी वी.शंकर की मानें तो उत्पादन खर्च केकम होने से कंपनी का मौजूदा मुनाफा 10 फीसदी से बढ़कर 14 फीसदी हो जाएगा। हालांकि उत्पाद सामग्रियों की कीमत में वृद्धि होने से उसके लिए मुनाफा में बढ़ोतरी करना चिंता की वजह है। पर शंकर का मानना है कि कंपनी इस चुनौती से पार पा लेगी। उनके इस विश्वास की वजह उनकी कंपनी का पांच बड़ी फाउंड्री निर्माता कंपनियों में होना है।
उसे भरोसा है कि अपनी अनूठी सप्लाई क्षमता और ऑटो निर्माता कंपनियों से मजबूत संबंध के चलते वह अपनी योजना में कामयाब रहेगी।उनकी कंपनी ही एकमात्र ऐसी कंपनी है जो अपने ग्राहकों को शुरू से आखिर तक की सारी सुविधाएं मुहैया कराती है। वह इंजन ब्लॉक केलिए डिजाइन, डेवलपेंट और मरम्मत की सारी सुविधाएं एक ही छत के नीचे देती है। इस वजह से इस कंपनी की उत्पादन प्रक्रिया 9 से 12 महीने से लेकर 18 महीने तक आगे चलता है।
आयात
कंपनी की मौजूदा क्षमता इसकी घरेलू मांग को पूरा करने में ही लग जाती है, इससे इसका निर्यात अब तक काफी कम रहा है। पर अब इसने अपने श्रीपेरुमबुदुर प्लांट से होनेवाले उत्पादन का 40 फीसदी यानि 30 हजार टन प्रतिवर्ष निर्यात के लिए ही सुरक्षित रखा है। हिंदुजा फाउंड्रीज मानती है कि आयात बढाने की नीति दरअसल घरेलू मांग में होनेवाली कमी से पैदा होनेवाले खतरे से निपटने का उपाय है।
हालांकि कंपनी छोटे समय केलिए निर्यातित उत्पाद की कीमत ऊंची रख सकती है पर लंबे समय के बाद यह कमोबेश घरेलू कीमत के ही समतुल्य हो जाएगी। वह मौजूदा साल में अपनी डिजाइन और प्रोटोटाइप में सुधार लाना चाहती है ताकि वित्तीय वर्ष 2009 से निर्यात की शुरूआत हो जाए। कंपनी ब्रिटेन केव्यावसायिक वाहन बाजार को जबकि अमेरिका केयात्री वाहन बाजार को अपने कारोबार के लिए चिन्हित कर रहा है, क्योंकि इस मामले में दोनों देशों के ये बाजार सुविधापूर्ण हैं।
निवेश का औचित्य
हालांकि दिसंबर में समाप्त हुई तिमाही में कंपनी के उत्पाद की बिक्री में वृद्धि हुई है पर इसके शुद्ध लाभ में 77 फीसदी की कमी आयी है। इसके मूल्य में होनेवाली तेज गिरावट और श्रीपेरुमबुदुर में लगने वाली इकाई के लिए ब्याज मद में होने वाला खर्च की वजह से इसके मुनाफे में ये कमी आयी है।
कंपनी आश्वस्त है कि आनेवाले दो वित्तीय वर्षों में उसका शुद्ध मुनाफा फिर अपनी रफ्तार पा लेगा। इसके पीछे 350 करोड़ रुपए की वह योजना है जिसके तहत वह 2009-10 तक अपना विस्तार करना चाहती है। इन परियोजनाओं की फंडिग के लिए वह 100 करोड़ का एक जीडीआर इश्यू लाने पर विचार कर रही है।