ज्यादातर खुदरा निवेशकों का शेयर बाजार के साथ प्यार-नफरत का रिश्ता होता है। निश्चित ही आज भी ऐसे कई निवेशक होंगे जो इक्विटी से नफरत करते होंगे।
क्योंकि उन्हें इस बात की जरा भी उम्मीद नहीं होगी कि निकट भविष्य में उन्हें उनके निवेश पर अच्छआ रिटर्न मिल सकता है। साथ ही, पिछले एक महीने के दौरान शेयर बाजारों में 30 फीसदी का उछाल आने के बावजूद कई लोग अभी भी यह ताज्जुब जरूर कर रहे होंगे कि शेयर बाजारों में साल 2007 जैसी तेजी कब आएगी?
आखिरकार मंदी ने इतनी बुरी तरह प्रभावित किया है कि कुछ ही ऐसे आशावादी निवेशक होंगे जो यह सोच रहे होंगे कि लंबी अवधि में करीब 50 प्रतिशत की तेजी भी अच्छा खासा धन बनाने का एक अवसर दे सकती है। हर तेजी और मंदी में ऐसा ही माहौल होता है जब आम निवेशक इनमें से किसी का भी फायदा नहीं उठा पाते।
सामान्यत: निवेशकों का नजरिया इस प्रकार होता है :
भीड़ के साथ आगे बढ़ना: भेड़चाल की मानसिकता इस श्रेणी का एक बहुत ही सामान्य लक्षण है। रिटेल निवेशक प्राय: दोस्तों और सहकर्मियों की किसी सूचना पर ही विश्वास रखते हैं क्योंकि इनकी सोच में पूरक संबंध होता है। इसी कारण, ऐसे लोगों के आस-पास के लोग जब निवेश करते हैं तो ये भी इनके साथ जुड़ने के इच्छुक हो जाते हैं।
हालांकि, भीड़ का अनुसरण करने में परेशानी भी होती है। कई बार ऐसा भी हो सकता है कि जिस दिशा में भीड़ जा रही हो, वह रास्ता गलत हो। और जब बाजार लुढ़कता है तो ऐसे निवेशक खुद को गहरे संकट में फंसा पाते हैं।
धीरज की कमी: एलैन ग्रीनस्पान इसेर् बिना वजह का जोश ‘ कहते हैं। और, इस परिस्थिति की परख बाजार की तेजी में उस समय होती है जब ज्यादातर निवेशक बिना किसी वजह के बावजूद बाजार में पैसा लगाते हैं। नतीजतन, शेयरों की कीमतें आसमान छूने लगती हैं।
आलम यह है कि कुछ निवेशक तो कर्ज लेकर निवेश करते हैं। औकर जैसे ही रुझानों में बदलाव आता है, वे दूसरे छोर पर पहुंच जाते हैं और अपने घाटे को कम करने की दौड़ में शामिल हो जाते हैं।
वापसी करना: जब बाजार में काफी गिरावट हो चुकी होती है और शेयरों के भाव आकर्षक हो जाते हैं तो रिटेल निवेशक इसका लाभ उठाने में सक्षम नहीं होते क्योंकि वे इस दौरान पहले से ही हुए घाटे से उबरने में अपना समय बिता देते हैं।
उदाहरण के तौर पर बंबई शेयर बाजार का संवेदी सूचकांक सेंसेक्स जब 20,000 अंकों को पार कर गया था तब उस दौरान बड़े पैमाने पर निवेश किया जा रहा था। लेकिन अब वही सेंसेक्स जब 10,000-11,000 के स्तर पर है, तो खरीदारों की लिवाली की इच्छा नहीं है।
सच तो यह है कि जब सेंसेक्स ने 20,000 अंकों का स्तर छुआ था तब से ही उसमें गिरावट यानी करेक्शन आना बाकी था। अब मौजूदा स्तर पर भारी गिरावट आ चुकी है और ज्यादा गिरावट के आसार नहीं हैं। लेकिन आज भी ऐसे कई तर्क चल रहे होंगे कि कैसे अब भी बाजार नीचे जाएगा। इसके बजाय ऐसी परिस्थिति में धैर्य से चलना पड़ता है और बुरे समय के साथ-साथ अच्छे समय में भी निवेश करते रहना चाहिए।
दूर से देखना:जब घबराहट अपने चरम होती है तो ऐसे में निवेशक इस परिदृश्य को दूर से ही देखने को ज्यादा तवज्जो देता है। और कई तो बाजाप पर नजर रखना भी बंद कर देते हैं। साथ ही ऐसे भी कई निवेशक होते हैं जो पूरी तरह सुरक्षित बैठे रहकर यह यह सोचते रहते हैं कि यह निवेश करने का सही समय है या नहीं।
मौसमी बहार का स्वाद: कभी सोना, कभी मिड-कैप तो डेट, रियल एस्टेट, आदि… सभी दौर में एक खास पसंद बन जाती है। बहरहाल, निवेशकों का रुख डेट और सोने की ओर अधिक देखा जा रहा है। इसमें कोई अचरज वाली बात नहीं है कि सोने की कीमतें क्यों ऊपर चढ़ी हैं। ऐसे में यह बहुत ही महत्वपूर्ण होता है कि संपत्ति श्रेणी की परख करने के लिए आप अपना कुछ समय जरुर लगाएं और देखें कि यह आपके पोर्टफोलियो में कहां बैठता है।
डाइवर्सिफिकेशन की कमी: संकेद्रित पोर्टफोलियो झटके सहने के लिहाज से काफी असुरक्षित होता है। उदाहरण के तौर पर हाल में बाजार में आई गिरावट से पहले ज्यादातार निवेशकों ने रियल्टी शेयरों में बड़े पैमाने पर निवेश कर रखा था। बेशक, कुछ नसीब वाले निवेशक इस संकट से बच निकलने में कामयाब रहे।