भारतीय कंपनियां मांग में सुधार के टिकाऊपन को लेकर आश्वस्त नहीं हैं, साथ ही बाहरी दबाव भी उन्हें निवेश बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित नहीं कर रहा है।
हालांकि निजी अंतिम उपभोग व्यय (पीएफसीई) बता रहे हैं कि वित्त वर्ष 23 की पहली तिमाही में अर्थव्यव्स्था में मांग 13.5 फीसदी बढ़ा है और यह कोरोनाकाल से पहले वित्त वर्ष 20 की समान अवधि से दस फीसदी अधिक है। फिर भी व्यापारियों को भरोसा नहीं है कि मांग आगे तेज होगी क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक की तय सीमा से खुदरा मुद्रास्फीति लगातार आठवें महीने अगस्त में भी अधिक रही। प्रमुख आर्थिक सलाहकार सेवा पीडब्ल्यूसी इंडिया के रानेन बनर्जी कहते हैं, ‘आर्थिक दबाव के कारण आगे भी मांग की निरंतरता बनी रहेगी इस पर निजी क्षेत्र को भरोसा नहीं है। इससे क्षमता निर्माण पर निवेश करने की इच्छा कम है।’
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस कहते हैं कंपनिया मांग के अनुरूप निवेश करती हैं, जो व्यापक आधारित नहीं है। इसे विकसित होने में समय लगता है। इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर कहती हैं, ‘जिंसों की उच्च कीमत, भू-राजनीतिक अस्थिरता और असमान मांग ने कंपनियों को पूंजीगत व्यय योजनाओं को टालने के लिए प्रेरित किया होगा, बावजूद इसके कि वित्त वर्ष-22 की चौथी तिमाही में क्षमता उपयोग बढ़िया था।’
आरबीआई द्वारा कराए गए ओबीकस सर्वे के अनुसार, विनिर्माण क्षेत्र में क्षमता उपयोग वित्त वर्ष 22 की चौथी तिमाही में बढ़कर 75.3 फीसदी हो गया था। जो उसी साल की तिसरी तिमाही में 72.4 फीसदी था। क्षमता उपयोग के स्तर में लगातार तीन तिमाही में सुधार देखा गया। वित्त वर्ष 21 की पहली तिमाही में कोरोना महामारी के कारण सरकार द्वारा लगाए गए लॉकडाउन से यह तेजी से गिरकर 47.3 फीसदी हो गया था। नायर कहती हैं वस्तुओं के असमान मांग और भू-राजनीतिक दबाव के कारण वित्त वर्ष 23 की पहली तिमाही में क्षमता उपयोग में थोड़ी गिरावट दर्ज की गई थी।
बैंक ऑफ बड़ौदा की एक नोट में कहा गया है कि कोरोनाकाल से पहले के वित्त वर्ष 20 से अगर तुलना करें तो वित्त वर्ष 22 में क्षमता उपयोग मिश्रित रहा। उद्योगों के क्षमता उपयोग का प्रतिनिधि सकल अचल संपत्ति अनुपात का कारोबार 25 क्षेत्रों में वित्त वर्ष 20 की तुलना में वित्त वर्ष 22 में गिर गया।