प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
ऋण शोधन अक्षमता एवं दीवाला संहिता (आईबीसी) योजना के तहत सभी समाधान योजनाओं में से 60 प्रतिशत योजनाओं को पिछले 3 साल में मंजूरी मिली है। भारतीय दीवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 13.8 लाख करोड़ रुपये के डिफॉल्ट वाले 30,000 से अधिक मामले दिसंबर 2024 तक प्रक्रिया में जाने से पहले ही निपटा दिए गए।
पिछले 8 साल के दौरान 1,194 समाधान योजनाओं में से 708 समाधान योजनाओं को पिछले 3 साल में मंजूरी मिली है।
दीवाला नियामक ने कहा कि इससे आईबीसी के तहत दिवालिया हो चुके व्यवसायों के पुनरुद्धार को सुविधाजनक बनाने में कानूनी ढांचे के असर का पता चलता है।
आईबीबीआई के अध्यक्ष रवि मित्तल ने बोर्ड के ताजा न्यूज़लेटर में कहा, ‘संहिता ने लेनदारों की वसूली के पारंपरिक तरीके से कहीं अधिक प्रभाव डाला है। आईबीसी ने एक मजबूत कानूनी ढांचा स्थापित करके क्रेडिट बाजारों को मजबूत किया है। इससे उद्यमशीलता को बढ़ावा मिला है और भारत में कारोबार सुगमता के मापदंडों को काफी बढ़ाया है।’
मित्तल ने कहा कि आईबीसी में चुनौतियां बनी हुई हैं, जिनमें प्रक्रिया संबंधी देरी और रिकवरी की दर उम्मीद से कम रहना शामिल है, लेकिन संहिता का बुनियादी ढांचा मजबूत है। आईबीबीआई के आंकड़ों के मुताबिक मार्च 2025 तक किए गए दावों की तुलना मे लेनदारों की वसूली 32.8 प्रतिशत के करीब बनी हुई है। आईबीबीआई के चेयरमैन ने कहा, ‘जैसे-जैसे इसे लागू करने की प्रक्रिया परिपक्व होगी और इसका कानूनी ढांचा विकसित होगा,आईबीसी इन कठिनाइयों से बाहर निकल जाएगा और भारत के वित्तीय वातावरण में अपनी पूरी क्षमता से काम कर सकेगा।’ आईबीबीआई द्वारा जारी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बेंगलूरु के एक अध्ययन के मुताबिक ओवरड्यू माने जाने वाले ऋण खातों की राशि और संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है।
अध्ययन में पाया गया कि ऋण खाते को ‘ओवरड्यू’ से ‘नॉर्मल’ में बदलने में लगने वाला औसत समय 2019-2020 में 248-344 दिन था, जो 2023-2024 में घटकर 30-87 दिन रह गया। किसी खाते को ‘ओवरड्यू’ से ‘डिफॉल्ट’ में बदलने में लगने वाले दिनों की संख्या 2019-20 के 169-194 दिनों से घटकर 2023-24 में 33-81 दिन रह गई। अध्ययन में कहा गया है कि समाधान के बाद 3 वर्षों में समाधान की गई सूचीबद्ध कंपनियों में कर्मचारियों पर औसत खर्च में लगभग 50 प्रतिशत वृद्धि हुई है।