अधिकतर वित्तीय योजनाकार लाभकारी और फंसे हुए ऋण की बात करते हैं। अभी भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने भी घोषणा की है कि ट्रैक्टर समेत कृषि संबंधित उपकरणों की खरीदारी के लिए कुछ समय तक नए ऋण नहीं देगा।
इसके बदले वह फंसे हुए ऋणों की वसूली पर अपना ध्यान लगाएगा। अब आपके जेहन में यह सवाल उठ रहा होगा कि आखिर बैंकों के लिए लाभकारी और फंसे हुए ऋण क्या होते हैं और ग्राहकों (कर्ज लेनदारों) के लिए इनके क्या मायने हैं। सबसे पहले तो यह समझना जरूरी है कि किसी के लिए पूरी जिंदगी कर्ज लिए बिना अपनी आवश्यकताओं को पूरा करना आसान नहीं होता।
विश्लेषकों का मानना है कि किसी भी व्यक्ति के लिए लंबी अवधि तक का ऋण भुगतान (जिसमें क्रेडिट कार्ड के जरिए भुगतान और मॉर्गेज ), उसके कुल मासिक वेतन के 36 फीसदी से अधिक नहीं होनी चाहिए।
क्या है लाभकारी ऋण
ग्राहक को ध्यान में रखकर बात करें तो ऐसे ऋण जिसे किसी ने संपत्ति निर्माण के लिए लिया हो और आने वाले समय में उस संपत्ति से अच्छी खासी आय की गुंजाइश बनती हो तो उसे लाभकारी ऋण की श्रेणी में रख सकते हैं।
मिसाल के तौर पर शिक्षा के लिए लिया गया ऋण, मकान या संपत्ति के लिए लिया गया ऋण या फिर नए व्यवसाय को शुरू करने के लिए लिया गया ऋण। इन तीनों ही स्थितियों में लेनदार आगे चलकर कमाई का उद्देश्य रखता है। यह अलग बात है कि हो सकता है कि इस ऋण से वह जो कारोबार शुरू करे उसमें उसे नुकसान हो जाए। पर उसका लक्ष्य तो मुनाफा कमाना ही होता है।
भारत जैसे विकासशील देश में जहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था कुछ खास बेहतर नहीं है, वहां वाहन के लिए लिया गया ऋण भी लाभकारी ऋण ही कहा जा सकता है। पर ध्यान रहे कि लाभकारी ऋण भी तब तक ही अच्छा होता है जब तक यह आपको कम और उचित दर पर मिल रहा हो।
इन ऋणों को आप ऊपर से नीचे की ओर क्रम में लाभकारी से फंसे हुए ऋण की श्रेणी में रख सकते हैं:
शिक्षा ऋण
मकान या संपत्ति ऋण
कारोबारी ऋण
क्रेडिट कार्ड पर ऋण
बैंकों का नजरिया
अब अगर बैंकों या देनदारों के नजरिये से देखें तो ऐसे ऋण जिसकी वसूली की समुचित संभावना बनती हो, लाभकारी ऋण कहे जाते हैं। यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (उत्तरी क्षेत्र) के उप महाप्रबंधक एस पी गोयल के मुताबिक ऐसा ऋण जिसका पुनर्भुगतान समय पर हो जाए, उसे लाभकारी ऋण की श्रेणी में रखा जा सकता है।
उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्ति 20 लाख रुपये बतौर होम लोन लेता है और किसी कारणवश उसे एक निर्धारित समय पर किश्तों में चुकाने में असफल रहता है और वह बैंक से निवेदन करे, तो उसकी किश्तों पर पुनर्विचार किया जाता है।
अगर उसके द्वारा किश्त न चुका पाने का कारण सही पाया जाता है, तो उसकी सुविधा के लिए किश्त चुकाने की अवधि बढ़ाई भी जा सकती है। लेकिन अगर बिना किसी ठोस कारण के कोई व्यक्ति लगातार तीन किश्त जमा नही कर पाता है, तो उसे गैर-निष्पादित परिसंपत्ति के तौर पर स्वीकृत कर लिया जाता है और वह ऋण फंसे हुए ऋण की श्रेणी में आ जाता है।
कुल मिलाकर लाभकारी और फंसे हुए ऋण की सीमा रेखा उसे समय से चुकाने से ही निर्धारित की जाती है। शिक्षा के लिए जो ऋण लिए जाते हैं, उसके साथ भी कमोबेश लाभकारी और फंसे हुए ऋण के निर्धारण का मापदंड यही होता है।