चालू वित्त वर्ष में भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) दर 7.5-8 फीसदी के बीच रहने की संभावना है। सख्त मौद्रिक नीति और वैश्विक वित्तीय संकट के कारण इसके मंद रहने की संभावना जताई जा रही है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सितंबर, 2006 से अपनी मौद्रिक नीति को सख्त बना रखा है। महंगाई दर, जो पिछले 13 साल में सबसे ज्यादा ऊंचाई पर जा पहुंची है, उसे नियंत्रित करने के उद्देश्य से रेपो दर में इजाफा कर इसे 9 फीसदी कर दिया किया गया।
वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने मंगलवार को कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि भारत चालू वित्त वर्ष में 8 फीसदी की विकास दर हासिल करने में सफल रहेगा। उन्होंने कहा कि इसी तरह 2009-10 में 9 फीसदी की विकास दर हासिल होने की संभावना है।
केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक 8 फीसदी की दर के संदर्भ में भारत की जीडीपी विकास दर पिछले तीन साल की दर की तुलना में काफी कम है क्योंकि एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था-भारत-पिछले पांच वर्षों के दौरान 8.8 फीसदी के औसत से बढ़ी थी।
जून, 2008 में समाप्त हुई पहली तिमाही के लिए जीडीपी 7.9 फीसदी दर्ज किया गया जो एक साल पहले की समान तिमाही में 9.2 फीसदी था। स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स के एशिया प्रशांत में मुख्य अर्थशास्त्री सुबीर गोकर्ण ने कहा, ‘यह आंकड़ा पूरी तरह संभावित आंकड़ा है। हम बिजनेस साइकल के मध्य में हैं और पिछली कुछ तिमाहियों में मौद्रिक नीति पर असर दिखा है।’
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी) ने 2008-09 में विकास दर 7.7 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है। ईएसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है, ‘2008 में आर्थिक विकास की प्रतिकूलता के कारण इस साल यह विकास दर 9 फीसदी से घट कर 7.7 फीसदी रहने की संभावना है।’
ईएसी ने कहा है कि देश के जीडीपी में 80 फीसदी से भी अधिक का योगदान रखने वाले गैर-कृषि क्षेत्र की 2008-09 में वृद्धि दर कम होकर 8.9 फीसदी रहने का अनुमान है जो पिछले साल 10 फीसदी था।
रेटिंग एवं सलाहकार फर्म क्रिसिल लिमिटेड के अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी ने कहा, ‘मुझे उम्मीद है कि अगले साल विकास दर 7.5 फीसदी या 7.6 फीसदी होगी।’ उन्होंने कहा कि जो कारक विकास दर को ऊपर उठाने में मददगार साबित हो सकते हैं, उनमें रिलायंस इंडस्ट्रीज की नई रिफाइनरी से उत्पादन और राजस्थान में केयर्न के तेल क्षेत्र से उत्पादन प्रमुख हैं।