हाल के वर्षों में भारत में ब्याज दरें नीचे रहने से रुपये की सेहत पर असर पड़ा है। पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका और भारत में ब्याज दरों में अंतर लगातार घटता गया जिसकी वजह से डॉलर की तुलना में रुपये में निरंतर गिरावट आई है। पिछले एक साल के दौरान भारत और अमेरिका के 10 वर्षों की अवधि के सरकारी बॉन्ड पर यील्ड में अंतर (यील्ड स्प्रेड) 70 आधार अंक होकर सोमवार को 1.92 फीसदी अंक रह गया। पिछले साल जून के अंत में यील्ड स्प्रेड 2.61 फीसदी अंक था। इसी अवधि के दौरान डॉलर की तुलना में रुपया 83.73 के स्तर से 3 फीसदी कमजोर होकर सोमवार को 85.97 तक चला गया।
यील्ड स्प्रेड और रुपया-डॉलर विनिमय दर के बीच उल्टा संबंध कोई नई बात नहीं है। भारत के 10 वर्ष की अवधि बनाम अमेरिका के 10 वर्ष की अवधि के बॉन्ड और रुपया-डॉलर विनिमय दर में नकारात्मक संबंध रहा है।
पिछले 25 वर्षों के दौरान भारत और अमेरिका के बॉन्ड की यील्ड में अंतर जब भी कम हुआ है उस दौरान रुपये में कमजोरी दिखी है। इसके उलट यील्ड में अंतर बढ़ने के समय डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत हुआ है। उदाहरण के लिए पिछले 10 वर्ष की अवधि के दौरान भारत और अमेरिका के 10 वर्षों की अवधि के सरकारी बॉन्ड पर यील्ड में अंतर जून 2015 में दर्ज 5.51 फीसदी अंक से लगभग 360 आधार अंक कम होकर अब 1.92 फीसदी अंक रह गया है। इसी अवधि के दौरान रुपया डॉलर के मुकाबले 63.60 के स्तर से 27 फीसदी कमजोर होकर सोमवार को 86.86 पर चला गया था।
इसके उलट जब अमेरिका की तुलना में भारत में बॉन्ड यील्ड तेजी से बढ़ी और यील्ड में अंतर अधिक हो गया तो रुपया वर्ष 2004 में मजबूत हो गया और यह सिलसिला 2008 तक कायम रहा। यील्ड स्प्रेड अक्टूबर 2003 के 0.8 फीसदी अंक के स्तर से बढ़ कर मार्च 2008 में लगभग 4.5 फीसदी अंक के स्तर पर पहुंच गया। इसी अवधि में रुपया डॉलर के मुकाबले 46 से मजबूत होकर 40 के स्तर पर पहुंच गया।
विशेषज्ञ इस परस्पर नकारात्मक संबंध के लिए पूंजीगत प्रवाह पर यील्ड स्प्रेड के असर को जिम्मेदार मानते हैं। बैंक ऑफ बड़ौदा में मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस कहते हैं, ‘भारत और अमेरिका के बॉन्ड बाजारों में यील्ड में तुलनात्मक रूप से कम अंतर के कारण भारतीय बाजार विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के लिए दमदार नहीं रह जाते हैं। इससे भारत के बॉन्ड बाजार में एफपीआई निवेश घट जाता है। यील्ड स्प्रेड अधिक रहने पर ठीक इसका उल्टा होता है। विदेशी पूंजी कम आने से रुपया दबाव में आ जाता है क्योंकि भारत लगातार चालू खाते के घाटे से जूझता रहता है।’
सबनवीस के अनुसार अमेरिकी डॉलर में हालिया कमजोरी से रुपया सुधरा था मगर पिछले दो महीने में यील्ड में अंतर कम होने से रुपया फिर कमजोर हुआ है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व के मुकाबले रिजर्व बैंक द्वारा दरों में तेजी से कमी करना भी यील्ड में अंतर घटने का एक बड़ा कारण है। फेडरल रिजर्व ने मुद्रास्फीति को देखते हुए नीतिगत दर स्थिर रखी है जबकि आरबीआई मौजूदा कैलेंडर वर्ष में अब तक रीपो दर में 100 आधार अंक की कटौती कर चुका है।