भारत में इस साल 30 नवंबर तक करीब 7,600 किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) का पंजीकरण हुआ था। यह सरकार के वर्ष 2024 तक 10,000 ऐसे एफपीओ बनाने व प्रोत्साहित करने के लक्ष्य के करीब 75 फीसदी पर पहुंच गया है।
भारत सरकार ने वर्ष 2024 तक 10,000 नए एफपीओ बनाने और संवर्द्धन की योजना बनाई थी और इसके लिए वर्ष 2020 में 6,865 करोड़ रुपये का बजटीय आवंटन किया था। इस योजना का ध्येय किसानों की मोलभाव करने की शक्ति बढ़ाना, उत्पादन लागत घटाना और कृषि उत्पादों को समन्वित करके किसानों की आय को बढ़ाना है।
संसद के शीतकालीन सत्र में जानकारी दी गई थी कि भारत में 30 नवंबर, 2023 तक 7,597 एफपीओ का इस योजना के तहत पंजीकरण हुआ था।
उत्तर प्रदेश में करीब 1,150 एफपीओ का पंजीकरण हुआ। इसके बाद मध्य प्रदेश (566), महाराष्ट्र (521), पंजाब (475) और बिहार (474) हैं। राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के 2020-21 और 2021-22 में किए गए अध्ययन के मुताबिक एफपीओ से जुड़े किसानों की उपज में औसतन 18.75 से 31.75 प्रतिशत का इजाफा हुआ और उनके बीज व उर्वरक की लागत में प्रति बोरी 50 से 100 रुपये की कमी आई।
नाबार्ड के अध्ययन के मुताबिक एफपीओ में शामिल होने से किसानों की सामूहिकता बढ़ी और इसके सदस्यों खासतौर पर लघु और सीमांत किसानों को खासा फायदा हुआ। यह भी जानकारी दी गई कि प्राथमिक उत्पादकों को सामूहिकता बढ़ने से उनकी मोलभाव की शक्ति में इजाफा हुआ।
अध्ययन के अनुसार किसानों को फसल के बाद होने वाले घाटे में खासतौर पर कमी आई और एफपीओ ने किसानों को भंडारण की सुविधाएं भी मुहैया करवाईं। इससे किसानों के दबाव में संकटपूर्ण स्थिति में अपने उत्पादों की बिक्री करने से बच सके। इससे उन्हें अपनी फसल का बेहतर मूल्य मिला और उनकी आमदनी बेहतर हुई।
इस अध्ययन की जानकारी का उल्लेख संसद में दिए गए जवाब में भी किया गया था। अध्ययन में यह भी जानकारी दी गई कि केरल, मध्य प्रदेश, ओडिशा के किसानों को एफपीओ का सदस्य बनने पर ज्यादा औसत मूल्य की प्राप्ति हुई।