मंदी निगल गई खरबों की परिसंपत्ति

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 10, 2022 | 7:30 PM IST

वैश्विक मंदी की इस भीषण तपिश में पूरे विश्व में वित्तीय परिसंपत्तियों की कीमतों में पिछले साल 500 खरब डॉलर की कमी आई है।
यह बात एशियन डेवलपमेंट बैंक के एक अध्ययन में निकल कर सामने आई है। अध्ययन में पाया गया है कि एशिया के विकासशील भागों पर मंदी का असर कुछ ज्यादा ही पडा है और इस क्षेत्र में वित्तीय परिसंपत्तियों में घाटा एशिया के विकासशील भागों के एक  साल के सकल घरेलू उत्पाद से ज्यादा हो गया है।
एडीबी द्वारा कराए गए इस अध्ययन में कहा गया है कि मंदी से ठीक पहले का विश्वास और उत्साह का माहौल अब पूरी तरह समाप्त हो गया है और कारोबारियों के बीच उहापोह की स्थिति बन गई है।
अध्ययन में अमेरिका में मंदी के लगातार गहराने पर चिंता जाहिर की गई है लेकिन एशिया के बारे में आम धारणा यह बनी है कि यह क्षेत्र मंदी के बावजूद भी बेहतर प्रदर्शन कर रहा है।
जैसा कि पहले बाताया गया है कि विश्व स्तर पर परिसंपत्तियों की कीमतों में गिरावट 500 खरब डॉलर के स्तर तक पहुंच सकती है जो एक साल के सकल घरेलू उत्पाद के बराबर होगी। इस नुकसान का असर कई देशों में उनके होने वाले आंतरिक खर्चों पर पड़ेगा। 
एडीबी के अध्यक्ष हारुहीको कुरोदा का कहना है कि इस मंदी विश्व के अन्य विकासशील भागों के मुकाबले एशिया पर सबसे ज्यादा असर पडा है क्योंकि एशियाई बाजारों में पिछले कुछ वर्षों में जबरदस्त तरीके से विकास हुआ है। विकासशील एशिया में वर्ष 2007 में वित्तीय परिसंपत्ति और सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में 370 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है जबकि वर्ष 2003 में इसमें 250 फीसदी की बढाेतरी दर्ज की गई है।
इसकी तुलना में लैटिन अमेरिका में इस अनुपात में मात्र 30 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है जबकि वित्तीय परिसंपत्ति में अनुमानित घाटा खासा कम यानी 21 खरब डॉलर रहा जो सकल घरेलू उत्पाद का 57 फीसदी है।
अध्ययन के आधार पर अनुमान इक्विटी और बॉन्ड बाजार में हुए नुकसान का आकलन करता है जिसमें मॉर्गेज एवं अन्य वित्तीय संपत्तियां और डॉलर के मुकाबले रुपये में आई गिरावट भी शामिल है। इस अनुमान में फाइनैंश्यिल डेरिवेटिव जैसे क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप भी शामिल है जो वित्तीय बाजार के आकार में और ज्यादा बढ़ोतरी कर देता है।
ये आंकड़े बाजार और विश्व की अर्थव्यवस्थाओं की स्पष्ट तस्वीर पेश करता है। एडीबी के प्रमुख ने कहा है कि तीस के दशक की महामंदी की बाद विश्व सबसे खतरनाक दौर से गुजर रहा है जिसने पूरे वैश्विक अर्थव्यवस्था की बुनियाद हिला कर रख दी है।

First Published : March 10, 2009 | 5:52 PM IST