अर्थव्यवस्था

बैंकों का निजीकरण और लैटरल एंट्री है जरूरी: रजनीश मेहरा

विकास की गति बढ़ाने के लिए बैंकिंग का निजीकरण, विनियामक सुधार और लैटरल एंट्री को बताया अहम कदम

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रुचिका चित्रवंशी   
Last Updated- October 29, 2024 | 11:14 PM IST

एरिजोना यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री रजनीश मेहरा ने कहा कि भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए पहला कदम बोझिल विनियमों को खत्म करना हो सकता है। उन्होंने नई दिल्ली में रुचिका चित्रवंशी से बातचीत में कहा कि सरकार में लैटरल एंट्री महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि अफसरशाही स्वेच्छा से ऐसा कोई कार्य नहीं करेगी जिससे उसका प्रभाव कम हो। पेश हैं मुख्य अंश :

आपने वित्तीय क्षेत्रों में सरकार की भागीदारी कम करने की जरूरत पर बात की है। इस बारे में आपके क्या सुझाव हैं?

बैंकों का निजीकरण जरूरी है। सरकारी भागीदारी अक्सर निजी पूंजी को बाहर कर देती है, जो विकास के लिए अहम है। विकास को प्रोत्साहित करने के लिए सुनिश्चित करना जरूरी है कि उत्पादक निवेश के लिए पूंजी उपलब्ध हो। निजीकरण से बैंकिंग क्षेत्र संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल कर सकेगा।

भारत 2047 तक विकसित देश बनना चाहता है। इसके लिए हमें कौन से प्रमुख सुधार करने की जरूरत है?

वृद्धि दर में थोड़ा-सा अंतर होने पर भी चक्रवृद्धि के असर से कुछ समय बाद महत्त्वपूर्ण असर दिखता है। हालांकि लंबी अवधि तक टिकाऊ त्वरित वृद्धि दर को कायम रखना अत्यधिक चुनौतीपूर्ण होता है लेकिन इसे हासिल करना संभव है। इसका एक उदाहरण दक्षिण कोरिया है। इस दिशा में पहला कदम बोझिल विनियमों को खत्म करना होना चाहिए। मैंने कई कंपनियों के सीईओ से बातचीत की है।

इस मामले में वैश्विक शिकायत यह है कि लाल फीताशाही के कई स्तर होते हैं। इस प्रक्रिया को दुरुस्त करने की दिशा में बड़ा कदम ‘वन स्टॉप’ तरीका होगा। दूसरा, बैंकों के निजीकरण से निवेश की जांच बेहतर होगी, जो कि महत्त्वपूर्ण है। यह केवल इस बात पर निर्भर नहीं करता कि आप कितना निवेश करते हैं, बल्कि यह भी मायने रखता है कि उस निवेश पर कितना रिटर्न मिलेगा। लिहाजा वृद्धि और सिर्फ विस्तार में बुनियादी अंतर है।

वास्तविक वृद्धि के लिए उन परियोजनाओं में निवेश की जरूरत है जिनमें कि पूंजी लागत से ज्यादा रिटर्न की प्राप्ति होती है। ऐसे निवेश निर्णय में आमतौर पर अफसरशाही सबसे अच्छा फैसला लेने वाली नहीं होती है। अंतिम बिंदु, एक प्रमुख बाधा कानूनी प्रणाली है, जिसमें तेजी से विवाद समाधान और अनुबंध प्रवर्तन के लिए सुधार की आवश्यकता है। यह कॉरपोरेट बॉन्ड बाजार के विस्तार के लिए महत्त्वपूर्ण होता है जिससे वित्तीय अवसर व्यापक होते हैं और वृद्धि को मदद मिलती है।

आपने कहा कि अफसरशाही सर्वश्रेष्ठ तरीके से सक्षम नहीं है। हमने सरकार में लैटरल एंट्री को लेकर पूरा विचार-विमर्श देखा है। आप इसे कैसे देखते हैं?

आज लैटरल एंट्री अहम हो गई है। आईएएस का सामान्य मॉडल दशकों पहले कारगर था। अब विशेषज्ञों की पूरक मदद की जरूरत होती है। ऐसे विशेषज्ञ चाहिए जिनके पास तकनीक, वित्त और लोक नीति की विशेषज्ञता हो। लैटरल एंट्री से ऐसे नए कौशल और दृष्टिकोण की आमद होगी जिनकी आधुनिक शासन में जरूरत है।

क्या किया जाना चाहिए?

हमें प्रतिबद्ध प्रतिभा पूल की आवश्यकता है, खासतौर से वित्त जैसे मंत्रालयों के साथ-साथ संस्थाओं जैसे भारतीय रिजर्व बैंक और सेबी के लिए। अगर आपको युवा, अत्याधुनिक ज्ञान वाले कुशल लोगों की जरूरत है तो सोचिए कि अगर उन्हें सम्मान, काम करने की आजादी या बेहतरीन वेतन नहीं मिलेगा तो वे आपके साथ क्यों आएंगे? इस बारे में भारत सिंगापुर के मॉडल को अपना सकता है और शीर्ष प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए बाजार में प्रतिस्पर्धी वेतन मुहैया करा सकता है।

प्रत्येक प्रणाली स्वयं को सुरक्षित रखने की प्रवृत्ति रखती है और यही वास्तव में हो रहा है। अफसरशाही स्वेच्छा से ऐसा कोई कार्य नहीं करने वाली जिससे उसका प्रभाव कम हो। यह बदलाव प्रधानमंत्री के मजबूत नेतृत्व में होंगे।

First Published : October 29, 2024 | 11:14 PM IST