विभिन्न प्रकार के आर्थिक आंकड़ों को मापने के लिए सरकार वर्ष 2004-05 को आधार वर्ष बनाने की तैयारी में है।
इसका उद्देश्य सांख्यिकीय तुलना को आसान बनाना और आंकड़े की जटिलताओं को कम करना है। अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र के लिए इसी आधार वर्ष का प्रयोग किया जाएगा।वर्तमान में औद्योगिक उत्पाद सूचकांक (आईआईपी) और थोक मूल्य सूचकांक (जीडीपी) दोनों के लिए आधार वर्ष 1993-94 है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लिए आधार वर्ष 1999-2000 है।
आईआईपी के आधार वर्ष को बदलने पर काम शुरू हो चुका है जबकि इस साल के अंत तक डब्ल्यूपीआई को 2004-05 के आधार वर्ष पर गणना करने का काम होने की उम्मीद है। वैसे जीडीपी के आधार वर्ष की समीक्षा करने में थोडा वक्त लगेगा। इसकी समीक्षा दो वर्ष पहले की गई थी और इसे आधार वर्ष 1993-94 से परिवर्तित कर 1999-2000 कर दिया गया था।
भारत के मुख्य सांख्यिकीयविद् प्रणव सेन ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि वैसे तो राष्ट्रीय आय को निर्धारित करने के लिए 1999-2000 को भी अभी स्थिरता प्राप्त करना बांकी है। इसलिए 2004-05 को आधार वर्ष बनाने में अभी काफी समय लगेगा। उन्होंने कहा कि बहुत सारे राज्य अपने आंकड़े के लिए 1999-2000 आधार वर्ष का उपयोग करते हैं। वैसे कुछ राज्य ऐसे हैं जो आज भी आधार वर्ष 1993-94 का ही इस्तेमाल करती है।
वास्तव में अब औद्योगिक नीति और प्रोत्साहन विभाग और केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ) में जीडीपी की गणना के लिए 1999-2000 को आधार वर्ष बनाने पर गतिरोध खत्म हो गई है। वैसे इसे क्रियान्वित करने में देरी हो रही है। सीएसओ तो एक कदम और आगे है और आईआईपी के लिए आधार वर्ष 2004-05 बनाने की कवायद शुरू हो गई है। इसमें कवरेज को विस्तारित करने और भार को समीक्षा करने की बात भी शामिल होगी।
सेन का कहना है कि इस कॉमन आधार वर्ष की एक खास बात यह होगी कि इससे विभिन्न आर्थिक संकेतकों में आंकड़े को लेकर हो रहा भ्रम दूर हो जाएगा।एचडीएफसी के मुख्य अर्थशास्त्री अभीक बरूआ ने कहा कि कॉमन आधार वर्ष से आंकड़ों का विश्लेषण आसान हो जाएगा। उनके मुताबिक 2004-05 को आधार वर्ष चुनने का निर्णय लेना अच्छी बात है। उन्होंने बताया कि इस वर्ष आंकड़ों में ज्यादा परिवर्तन नही हुआ है और इसलिए यह साल आधार वर्ष बनने के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त है।
इंस्टीटयूट ऑफ इकनॉमिक ग्रोथ के एसोसिएट प्रोफेसर एन आर ब्रह्ममूर्ति ने कहा कि सभी आर्थिक सूचकांकों के लिए एक ही आधार वर्ष होने से आंकड़ों की तुलना करना ज्यादा आसान हो जाएगा।वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने भी संकेत दिया कि ज्यादातर आर्थिक संकेतक अंतर्कि्रयात्मक होती है और इसलिए अगर इसे आधार वर्ष से सही तरीके से जोड़ दिया जाए तो इससे निरंतरता बनी रहेगी।