कोलकाता के एक चार मंजिला चमड़ा फैक्टरी में करीब 380 पुरुष एवं महिला कर्मचारी काम करते हैं। वे हैंडबैग और वॉलेट बनाने के लिए एक खास रफ्तार से चमड़े को काटने और सिलने का काम कर रहे हैं। वहां मौजूद कई टुकड़ों पर ‘बॉस’ ब्रांड स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। उन टुकड़ों को दूसरे काम के लिए आगे ले जाने के लिए बेहद करीने से पंक्तियों में रखा गया है। वहां का माहौल आगामी व्यवधान से बिल्कुल अछूता दिख रहा है।
क्रीसेंट एक्सपोर्ट्स के लिए अमेरिका सबसे बड़ा बाजार है। मगर उसने आयात शुल्क को 50 फीसदी तक बढ़ा दिया है जो एक बड़ा झटका है और इससे ऑर्डर प्रवाह धीमा हो गया है। करीब 85,000 वर्ग फुट में फैली विनिर्माण इकाई की आपाधापी फिलहाल सिकुड़ते मार्जिन और रोजगार पर संभावित असर की अनिश्चितता को छुपा रही है।
क्रीसेंट के प्रबंध निदेशक एम अजहर ने कहा, ‘हमारे पास अमेरिका से काफी ऑर्डर थे, लेकिन 25 फीसदी अतिरिक्त शुल्क ने वास्तव में हमें झकझोर दिया है।’ उन्होंने कहा कि कारोबार की रफ्तार सुस्त पड़ गई है और कई मौजूदा ऑर्डर को फिलहाल रोक दिया गया है। अजहर का करीब 60 फीसदी कारोबार अमेरिकी बाजार पर केंद्रित है जबकि शेष कारोबार यूरोप एवं ऑस्ट्रेलिया में है।
कंपनी कलकत्ता लेदर कॉम्प्लेक्स (सीएलसी) से तीन इकाइयों का संचालन करती है। सीएलसी कोलकाता के पूर्वी इलाके के बंताला में 1,100 एकड़ में फैला प्रमुख केंद्र है। इसमें एक आत्मनिर्भर परिसर की तरह टैनरी, प्रॉसेसिंग एवं विनिर्माण इकाइयां सभी एक साथ हैं। हालांकि, विनिर्माण के कुछ हिस्से अभी भी ओल्ड टंगरा, टॉप्सिया और तिलजला इलाके में हैं जो कोलकाता में चमड़ा कारोबार की बुनियाद है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद 2000 के दशक की शुरुआत में टैनरी यहां स्थानांतरित हो गईं।
रूस से तेल खरीदने के लिए जुर्माने के तौर पर अतिरिक्त 25 फीसदी शुल्क लगाए जाने पर अमेरिका के साथ व्यापार करने वाली इकाइयां पूरी तरह अचंभित हो गईं। यह अमेरिका द्वारा 1 अगस्त को घोषित और 7 अगस्त को लागू किए गए 25 फीसदी जवाबी शुल्क के अतिरिक्त था। जुर्माना शुल्क 21 दिनों के बाद यानी 27 अगस्त और उसके बाद के शिपमेंट पर लागू हुआ। ऐसे में तमाम निर्यातकों ने इस अवधि का फायदा उठाया।
अजहर ने कहा, ’27 तारीख की समय-सीमा से पहले जो भी सामान तैयार था, उसे हमने हवाई जहाज से भेज दिया। आम तौर पर हमारा अधिकतर माल समुद्री मार्ग से जाता है लेकिन हमने सोचा कि जितना हो सके उतना पैसा वसूल कर लेना अच्छा रहेगा।’
उनकी कंपनी ह्यूगो बॉस के वैश्विक बाजारों के लिए हैंडबैग और वॉलेट बनाती है। मगर अमेरिका के लिए आपूर्ति को फिलहाल रोक दिया गया है। अजहर अमेरिका में मैसीज और वॉलमार्ट जैसे डिपार्टमेंटल स्टोर्स को भी आपूर्ति करते हैं।
जेसी इंटरनैशनल के प्रबंध निदेशक केविन जुनेजा के लिए 25 फीसदी अतिरिक्त शुल्क एक तगड़ा झटका था। उन्होंने कहा, ‘हमें इसकी उम्मीद नहीं थी। हमारे ग्राहकों ने भी ऐसा नहीं सोचा था।’ उनका लगभग 30 फीसदी कारोबार अमेरिका में है। उन्होंने कहा, ‘मार्जिन इतना नहीं है कि हम लागत का भार उठा सकें। इससे कारोबार पर असर पड़ेगा। अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में हमारी हालत खराब रहने की आशंका है। नए ऑर्डर भी कम हो गए हैं।’
मगर इसके बावजूद मौजूदा ऑर्डर के कार्टन बिल्कुल भरे हुए हैं और वे लदान का इंतजार कर रहे हैं। चमड़े के निर्यात के लिए अप्रैल से अक्टूबर तक का समय पीक सीजन होता है। खास तौर पर क्रिसमस के करीब होने के कारण कारोबार में तेजी रहती है। विनिर्माण इकाइयों को स्थानांतरित करने के बारे में फिलहाल विचार नहीं किया जा रहा है। निर्यातक इस संकट से निपटने के लिए अपनी रणनीतियों पर नए सिरे से विचार कर रहे हैं।
अमेरिकी शुल्क के कारण न केवल पश्चिमी देशों में क्रिसमस पर होने वाले कारोबार बल्कि घरेलू बाजार में त्योहारी सीजन का उत्साह भी फीका पड़ने लगा है। इसका असर पूरे परिवेश पर दिखना तय है।
अजहर के तीन कारखाने हैं। उन्होंने कहा, ‘अगर समस्या का समाधान नहीं हुआ तो मुझे कम से कम एक इकाई बंद करनी पड़ सकती है।’ चमड़ा एक श्रम प्रधान कारोबार है और क्रीसेंट के तीनों कारखानों में करीब 1,500 कर्मचारी कार्यरत हैं।
जुनेजा के कारोबार का स्वरूप एकीकृत है। उन्होंने ब्रिटेन के एक डिजाइन हाउस के साथ साझेदारी की है। उन्होंने कहा, ‘अगर अमेरिकी कारोबार सिकुड़ता है तो हमें अपने डिजाइन हाउस की क्षमताओं को कम करना होगा।’
एशियन लेदर प्राइवेट लिमिटेड की चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक नरी कलवानी ने कहा कि भारत में विशेष रूप से तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और पंजाब जैसे राज्यों में चमड़ा क्षेत्र निर्यात पर काफी निर्भर है। उन्होंने कहा, ‘इस उद्योग की रीढ़ माने जाने वाले एमएसएमई अब कम ऑर्डर, बढ़ते स्टॉक, नौकरियों के नुकसान, घटती लाभप्रदता और अमेरिका में दीर्घकालिक बाजार हिस्सेदारी घटने जैसी चुनौतियों से जूझ रहे हैं। अमेरिका एक ऐसा बाजार है जहां पैर जमाने में वर्षों लग गए हैं।’
कलवानी ने इस मामले में सरकार से तत्काल हस्तक्षेप करने की मांग की।
क्रिसिल रेटिंग्स के वरिष्ठ निदेशक राहुल गुहा ने कहा कि अमेरिका के आयात शुल्क में 50 फीसदी की वृद्धि होने के साथ ही भारत से चमड़ा उत्पादों के कुल निर्यात में सालाना आधार पर 15 से 20 फीसदी की गिरावट आने की आशंका है। हालांकि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 3 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। उन्होंने कहा कि इससे कारोबारियों के परिचालन मार्जिन पर दबाव दिखेगा।
निर्यातक अभी भी भारत-अमेरिका व्यापार समझौते पर दांव लगा रहे हैं। मगर वे घाटे को कम करने के लिए अपनी रणनीतियों पर नए सिरे से विचार भी कर रहे हैं। बीते दिनों अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुए संदेशों के आदान-प्रदान ने आशा की नई किरण दिखाई है। उन्हें उम्मीद है कि ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) जल्द लागू हो जाएगा और उसके बाद यूरोपीय संघ के साथ भी एक अनुकूल समझौता होगा। इससे कोलकाता में बने चमड़े के उत्पादों की इन बाजारों तक बेहतर पहुंच हो सकेगी।
जेसी इंटरनैशनल के निदेशक रमेश जुनेजा ने कहा, ‘ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार समझौते को ब्रिटिश संसद से मंजूरी मिलनी है। अगर ऐसा हुआ तो व्यापार दोगुना हो जाएगा।’ जुनेजा चमड़ा निर्यात परिषद के उपाध्यक्ष भी हैं। उन्होंने कहा कि दक्षिण अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका में व्यापार मेले आयोजित किए जा रहे हैं।
अजहर ने कहा, ‘ब्रिटेन में खरीदारों के साथ बातचीत जारी है। हम उनसे अनुरोध कर रहे हैं कि वे हमसे खरीदकर उत्पादों को अमेरिका भेजें।’
नए बाजारों में रातोंरात विविधता नहीं लाई जा सकती है। मगर निर्यातकों का यह भी मानना है कि कुछ उपाय किए जा सकते हैं। अमेरिका में मात्रात्मक बिक्री अधिक है, लेकिन मार्जिन कम। यूरोप में ऑर्डर कम हैं, लेकिन रिटर्न बेहतर।
अजहर ने कहा, ‘हम यूरोप से ज्यादा से ज्यादा ऑर्डर हासिल करने की कोशिशों में जुटे हैं। निर्यातक वियतनाम और श्रीलंका में भी विनिर्माण केंद्र स्थापित करने पर बात कर रहे हैं, लेकिन ये लंबे समय की रणनीतियां हैं।’
जीएसटी दरों में बदलाव से मध्यवर्ती चमड़े की वस्तुओं पर कर की दर 12 से घटाकर 5 फीसदी करने से कुछ निर्यातक घरेलू बाजार की ओर रुख करने लगे हैं। अजहर ने कहा, ‘जीएसटी में कटौती से घरेलू बाजार में तेजी आएगी और यह एक अवसर प्रदान कर सकता है। मगर हमें इसके लिए योजना बनानी होगी। यह एक अलग बाजार है और इसकी अपनी प्राथमिकताएं हैं।’
मगर केविन जुनेजा ने कहा कि चमड़ा एक महंगा उत्पाद है और इस मूल्य पर भारत में इसकी बिक्री धीमी है।