भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) में गवर्नर के बदलाव से ये उम्मीदें जगी हैं कि नए गवर्नर संजय मल्होत्रा (जो 11 दिसंबर को मिंट स्ट्रीट में अपनी तीन साल की पारी शुरू करने जा रहे हैं) जल्द ही ब्याज दरों में कटौती कर सकते हैं। यूबीएस के विश्लेषकों के मुताबिक नियुक्ति ने वित्तीय बाजार को चौंकाया है क्योंकि शक्तिकांत दास को कम से कम एक साल का सेवा विस्तार मिलने की संभावनाएं जताई जा रही थीं।
इस बदलाव के बाद आरबीआई में एक नए डिप्टी गवर्नर की नियुक्ति होने की संभावना है (डॉ. माइकल पात्र का कार्यकाल 15 जनवरी, 2025 तक है)। यूबीएस के विश्लेषकों का मानना है कि मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के छह में से पांच सदस्य अपेक्षाकृत नए हैं (अक्टूबर 2024 में तीन नए बाहरी सदस्य शामिल हुए)। ट्रंप प्रशासन के टैरिफ संबंधी प्रस्तावों के कारण बढ़ती वैश्विक अनिश्चितता के बीच बाजारों में उतार-चढ़ाव का एक दौर शुरू हो सकता है।
प्रमुख ब्रोकरेज ने इस घटनाक्रम की व्याख्या किस तरह की है और वृद्धि और महंगाई के बीच संतुलन बनाए रखने के संबंध में संजय मल्होत्रा से उनकी अपेक्षाएं क्या हैं, इसपर उनकी राय:
नए गवर्नर के वित्त मंत्रालय से आने के कारण बाजार के प्रतिभागी यह सोच सकते हैं कि इससे मौद्रिक नीति निर्णयों में सरकार की मजबूत भूमिका बढ़ सकती है। पिछला अनुभव बताता है कि शक्तिकांत दास ने आरबीआई की स्वायत्तता बनाए रखते हुए सरकार के साथ संबंधों को स्थिर रखने में मदद की, वित्तीय स्थायित्व सुनिश्चित किया (विशेषकर महामारी के दौरान) और वित्तीय समावेशन और डिजिटल नवाचार पर ध्यान केंद्रित किया।
आरबीआई गवर्नर कोई भी हो, हमारी यह राय बरकरार है कि उच्च वास्तविक नीति दर और नरम वृद्धि फरवरी 2025 से रीपो दर में 75 आधार अंक (बीपीएस) की कटौती की गुंजाइश बना सकती है।
हाल के हफ्तों में काउंटरसाइक्लिकल मौद्रिक नीति की जरूरत पर सरकार और आरबीआई के बीच एक बड़ा मतभेद उभरता दिखा है। वित्त मंत्री और वाणिज्य मंत्री दोनों ने कुछ खाद्य पदार्थों में ऊंची महंगाई के कारण नीति को सख्त बनाए रखने के लिए आरबीआई की आलोचना की है। बावजूद गवर्नर दास 6 दिसंबर की नीतिगत बैठक में अपने रुख पर कायम रहे और इसे जारी रखने पर जोर दिया।
नए आरबीआई गवर्नर की नियुक्ति को बाजार संभवत: बहुत तवज्जो नहीं देगा। फरवरी की बैठक में दर कटौती की ज्यादा संभावना के हिसाब से बाजार चलेगा। बीच में हालांकि कटौती की अटकलें हो सकती हैं और कटौती 25 आधार अंक से ज्यादा भी हो सकती है।
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) फरवरी की बैठक में लगभग नए रूप में दिखेगी जिसमें छह में से पांच सदस्य अपेक्षाकृत नए होंगे। यह नयापन संभवतः अनिश्चितता लाएगा लेकिन चरम महंगाई का दौर निकल जाने के साथ ही वृद्धि को सहारा देने के लिए मौद्रिक हालात सहज बनाए जा सकते हैं।
हम अभी भी उम्मीद करते हैं कि हाल में दिसंबर की बैठक में दरों को अपरिवर्तित रखने के बाद एमपीसी फरवरी 2025 से दरों में ढील का दौर शुरू करेगी। हम कुल 100 आधार अंकों की कटौती देख रहे हैं, जिससे मार्च 2026 तक नीतिगत रीपो दर 5.5 फीसदी हो जाएगी। फरवरी 2025 के बाद हम अप्रैल, अगस्त और फरवरी 2026 में 25-25 आधार अंकों की तीन और कटौती की उम्मीद करते हैं।
नए गवर्नर और एमपीसी के सामने 2025 में कदम रखते समय नीतिगत चुनौतियों के साथ-साथ वृहद और वैश्विक परिदृश्य काफी भिन्न होगा और यह उससे अलग होगा जो दास के नेतृत्व वाले प्रशासन ने 2024 की शुरुआत में देखा था। इस नियुक्ति से संकेत मिलता है कि सरकार एक टेक्नोक्रैट (अर्थशास्त्री ) के बजाय एक नौकरशाह को कमान देने में ज्यादा सहज है।