प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों के बावजूद भारतीय स्टील उद्योग मजबूती से आगे बढ़ रहा है । चीन जैसे प्रतिस्पर्धी देश की चाल को देखते हुए देश में एक स्पष्ट नीति होनी चाहिए। देश के स्टेनलेस स्टील उद्योग के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए भारतीय स्टेनलेस स्टील विकास संघ (ISSDA) एक राष्ट्रीय स्टेनलेस स्टील नीति बनाने की मांग की है। देश में स्टेनलेस स्टील की मांग सालाना करीब आठ फीसदी की दर बढ़ रही है।
आईएसएसडीए के अध्यक्ष राजमणि कृष्णमूर्ति ने ग्लोबल स्टेनलेस-स्टील एक्सपो 2025 में कहा कि वित्त वर्ष 2024-25 में स्टेनलेस स्टील की कुल खपत 48 लाख टन तक पहुंच गई, जो सालाना आधार पर करीब आठ प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है। भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर विश्व की अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक रहने की संभावना है। अगले दो से तीन वर्ष में स्टेनलेस स्टील की मांग में सात से आठ प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है। भारत में प्रति व्यक्ति इस्पात की खपत लगभग 3.4 किलोग्राम है जबकि विश्व औसत छह किलोग्राम से अधिक है।
कृष्णमूर्ति ने कहा कि जैसे-जैसे दुनिया स्थिरता और मजबूत बुनियादी ढांचे की ओर बढ़ रही है, स्टेनलेस स्टील की प्रासंगिकता बढ़ती जा रही है। हालांकि, अनुचित मूल्य वाले आयातों की बाढ़ घरेलू निर्माताओं के लिए चुनौती बनी हुई है। संघ ने बार-बार इन खतरों के प्रति सावधानी बरतने की चेतावनी दी है, खासकर चीन और वियतनाम जैसे देशों से अनियंत्रित ट्रेड डायवर्जन से घरेलू उत्पादन और इस क्षेत्र में रोजगार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
भारतीय स्टेनलेस स्टील उद्योग के हितों की सुरक्षा के लिए सरकार और उद्योग के हितधारकों को सतर्क रहना होगा, आयात के रुझानों पर बारीकी से नजर रखनी होगी, और आवश्यक सुरक्षात्मक उपायों को सक्रिय रूप से लागू करना होगा। हम फिर से समान प्रतिस्पर्धा के लिए अपनी मांग दोहरा रहे हैं और नीति निर्माताओं से आग्रह कर रहे हैं कि वे इस क्षेत्र की सुरक्षा करें, साथ ही नवाचार और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दें। भारत की स्टेनलेस स्टील उत्पादन क्षमता 75 लाख टन है, जिसमें फिलहाल लगभग 60 फीसदी क्षमता का उपयोग हो रहा है। देश में अगर सही नीतियां बने और मांग बनी रहे, तो उत्पादन बढ़ाने की अच्छी संभावनाएं हैं।
Also read: Coal Production को लेकर आ गई Good News; Power-Steel- Cement sectors पर रखे नजर
जिंदल स्टेनलेस के चेयरमैन रतन जिंदल ने कहा कि अगर भारत सचमुच एक वैश्विक विनिर्माण महाशक्ति बनना चाहता है, तो स्टेनलेस स्टील उसकी सबसे मजबूत नींव में से एक होना चाहिए। 2047 तक स्टेनलेस स्टील की खपत 20 मिलियन टन से अधिक होने की संभावना है । बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ानी चाहिए। अनुसंधान में निवेश करना, डिजिटल तकनीक का उपयोग बढ़ाना, उद्योग और शिक्षा संस्थानों के बीच सहयोग बढ़ाना, और टिकाऊ उत्पादन को बढ़ावा देना जरूरी है। सरकार के साथ मिलकर खासकर छोटे और मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) के लिए समान अवसर बनाए रखना चाहिए, और चीन से सस्ते और सब्सिडी वाले आयातों को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने चाहिए, खासकर जब ये माल वियतनाम जैसे देशों के जरिए आते हैं।
जिंदल ने कहा कि मेक इन इंडिया, गुणवत्ता मानक और बुनियादी ढांचे में निवेश से यह क्षेत्र मजबूत हुआ है। हमारे उद्योग के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए एक राष्ट्रीय स्टेनलेस स्टील नीति की तत्काल जरूरत है, जो कच्चा माल उपलब्ध कराए, दीर्घकालिक विकास को बढ़ावा दे और खासकर एमएसएमई को संसाधन उपलब्ध कराए। इन कदमों से भारत जल्दी ही टिकाऊ और उच्च गुणवत्ता वाले स्टेनलेस स्टील के उत्पादन में विश्व में नेतृत्व करेगा।
Also read: Steel Sector को लेकर आई बड़ी रिपोर्ट, बता दिया क्या होगा भविष्य
आईएसएसडीए के मुताबिक अगले दो से तीन वर्ष में स्टेनलेस स्टील की मांग में सात से आठ प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है। भारत में प्रति व्यक्ति इस्पात की खपत लगभग 3.4 किलोग्राम है जबकि विश्व औसत छह किलोग्राम से अधिक है। सरकार ने अपने पूंजीगत व्यय में उल्लेखनीय वृद्धि की है। वित्त वर्ष 2023-24 में पूंजीगत व्यय से जीडीपी अनुपात बढ़कर 3.3 प्रतिशत हो गया। उन्होंने कहा कि भारत में निर्माण बाजार 2027 तक 1420 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है, जो 2027 तक 17.26 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है। हरित हाइड्रोजन भी एक नया क्षेत्र है जहां स्टेनलेस स्टील का उपयोग होगा। भारत की स्थिति पर उन्होंने कहा कि देश दुनिया में स्टेनलेस स्टील का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है और इसका मेल्ट उत्पादन चीन और इंडोनेशिया के बाद दुनिया में तीसरा सबसे ज्यादा है।