BS
सुस्त वैश्विक वृद्धि, मुद्रास्फीति के दबाव और भू-राजनीतिक संकट के बावजूद भारतीय कंपनियों के आधे से अधिक प्रमुखों को 2023 में देश की वृद्धि की तस्वीर से पूरी उम्मीद है। सलाहकार फर्म पीडब्ल्यूसी के सालाना वैश्विक सीईओ सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है।
सर्वेक्षण के अनुसार 78 फीसदी भारतीय मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) और 73 फीसदी वैश्विक सीईओ मानते हैं कि अगले 12 महीनों में वैश्विक आर्थिक वृद्धि में गिरावट आएगी। पीडब्ल्यूसी ने कहा कि इस सर्वेक्षण में सीईओ जितने निराशावादी दिखे उतने पिछले एक दशक में कभी नहीं दिखे थे। इससे पता चलता है कि यूरोप में युद्ध के समय से ही वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘10 भारतीय सीईओ में से 6 (57 फीसदी) ने अगले 12 महीनों में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आशावादी रुख जाहिर किया है। इसके उलट एशिया-प्रशांत के केवल 37 फीसदी सीईओ और बाकी दुनिया के 29 फीसदी सीईओ ने अगले 12 महीनों में अपने-अपने देश में आर्थिक वृद्धि में सुधार की उम्मीद जताई।’ इस तरह यह पिछले एक दशक में आर्थिक तस्वीर के प्रति सबसे सतर्कता वाला सर्वेक्षण है। 2022 की अंतिम तिमाही में कराए गए इस सर्वेक्षण में 105 देशों के 4,410 सीईओ ने हिस्सा लिया, जिनमें भारत के 68 सीईओ शामिल थे।
रिपोर्ट में कहा गया, ‘2021 की तुलना में इस बार भारतीय सीईओ के रुख में नाटकीय बदलाव आया है। 2021 में 99 फीसदी प्रतिभागियों ने अगले 12 महीने में देश में आर्थिक वृद्धि का भरोसा जताया था। 2021 में उम्मीद भरा रुख तब दिखा था, जब लग रहा था कि महामारी खत्म हो गई है। अलबत्ता भारत ने उस समय मजबूती दिखाई है, जब यूरोप में विवाद और अन्य वृहद आर्थिक मुद्दों का असर दुनिया भर में देखा जा रहा है।’
सर्वेक्षण में शामिल 35 फीसदी सीईओ को मुद्रास्फीति और 28 फीसदी को वृहद आर्थिक अस्थिरता के कारण निकट भविष्य में जोखिम दिख रहा है। जलवायु परिवर्तन (24 फीसदी), विवादग्रस्त क्षेत्रों में वित्तीय निवेश (22 फीसदी) तथा साइबर जोखिम (18 फीसदी) ने भी सीईओ के रुख को प्रभावित किया है।
सर्वेक्षण से पता चला है कि ग्राहकों की बदलती मांग और आपूर्ति श्रृंखला में बाधा सहित बदलते आर्थिक माहौल ने भी मुख्य कार्याधिकारियों को अपनी कंपनियों की रणनीति पर फिर विचार करने के लिए मजबूर किया है। तकरीबन 41 फीसदी भारतीय सीईओ मानते हैं कि अगर कंपनी मौजूदा तरीके से ही चलाई गई तो अगले 10 साल में वह आर्थिक रूप से काम की नहीं रह जाएगी।
पीडब्ल्यूसी में भारत के चेयरमैन संजीव कृष्णन ने कहा, ‘वैश्विक आर्थिक नरमी, उच्च मुद्रास्फीति और यूरोप में विवाद के बावजूद भारतीय सीईओ अपने देश के आर्थिक वृद्धि को लेकर आशान्वित हैं। अगले कुछ वर्षों में कंपनियों को कारगर बनाए रखने के लिए सीईओ को आंतरिक जोखिम संभालने होंगे और मुनाफा बढ़ाना होगा। लंबे समय की बात करें तो उन्हें अपने कारोबार को नए सिरे से ढालना होगा और उसी के हिसाब से कार्य संस्कृति भी बदलनी होगी। उन्हें अभी से इस पर काम करना होगा।’
उन्होंने कहा, ‘अगर संगठन को निकट भविष्य तथा दीर्घावधि में चलाते रखना है तो उन्हें कार्यबल को सशक्त बनाने के लिए कर्मचारियों और तकनीकी बदलाव में निवेश करना होगा।’ सर्वेक्षण में कहा गया कि कम से कम 67 फीसदी भारतीय सीईओ भू-राजनीतिक विवाद के असर को कम करने के लिए अपनी आपूर्ति श्रृंखला में बदलाव कर रहे हैं। 60 फीसदी भारतीय कंपनियां जलवायु अनुकूल उत्पाद या प्रक्रिया ईजाद कर रही हैं।
यह भी पढ़ें: मंदी की आहट से सिकुड़ा निर्यात
दुनिया भर में लागत घटाना कंपनियों की शीर्ष प्राथमिकता है। लेकिन सर्वेक्षण में शामिल 85 फीसदी भारतीय सीईओ ने कहा कि कर्मचारियों की छंटनी करने की उनकी योजना नहीं है और 96 फीसदी ने कहा कि वेतन कटौती की भी कोई योजना नहीं है। इससे पता चलता है कि वे प्रतिभाशाली कर्मचारियों को कंपनी में बनाए रखना चाहते हैं।
सर्वेक्षण के मुताबिक अगले पांच वर्षों में जलवायु परिवर्तन भारतीय सीईओ के लिए चिंता का बड़ा मुद्दा रहेगा। 31 फीसदी ने कहा कि इसका असर उनकी कंपनियों पर पड़ने की काफी संभावना है। उन्होंने कहा कि जलवायु जोखिम का असर अगले 12 महीनों में उनकी लागत और आपूर्ति श्रृंखला पर भी पड़ेगा। यही वजह है कि भारत की कंपनियां नए तरीके और उत्पाद ला रही हैं तथा कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए जलवायु रणनीति तैयार कर रही हैं।