महंगाई के बढ़ते दबाव आदि से निपटने के लिए फेडरल रिजर्व समेत विश्व के केंद्रीय बैंकों की तरफ से तीव्रता से मौद्रिक नीति सामान्य बनाने की संभावना के कारण पैदा होने वाली नकदी की चुनौतियां झेलने के लिहाज से भारत का बाह्य क्षेत्र सुदृढ़ है। आर्थिक समीक्षा में ये बातें कही गई है।
महामारी के कारण जून 2020 से ही फेडरल रिजर्व हर महीने 80 अरब डॉलर की ट्रेजरी प्रतिभूतियां और 40 अरब डॉलर की एजेंसी मॉर्गेज समर्थित प्रतिभूतियां खरीद रहा था। जुलाई 2021 में फेड ने संकेत दिया कि वह इस साल बॉन्ड खरीद में कमी लाएगा। 3 नवंबर 2021 को फेडरल ओपन मार्केट कमेटी ने आमसहमति से अपनी परिसंपत्ति खरीद में कमी लाने के पक्ष मतदान किया। भारत के इक्विटी बाजार में पिछले हफ्ते उतारचढ़ाव रहा जब फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जीरोम पॉवेल ने ऐलान किया कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक मार्च में ब्याज दरें बढ़ाने और जल्द ही बैलेंस शीट का आकार छोटा करने के लिए तैयार है।
समीक्षा में कहा गया है कि भारत के बाह्य क्षेत्र के संकेतक मजबूत हैं और वैश्विक आर्थिक संकट या साल 2013 के टेपर घटनाक्रम के मुकाबले काफी सुधरा हुआ है। इसमें कहा गया है, उदाहरण के लिए इंपोर्ट कवर और विदेशी मुद्रा भंडार अब दोगुने से ज्यादा है। लबालब विदेशी मुद्रा भंडार, स्थिर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और बढ़ती निर्यात आय साल 2022-23 में नकदी में कमी या मौद्रिक नीति के सामान्य होने के खिलाफ काफी सहारा प्रदान करेगा।
फेडरल रिजर्व ने साल 2007-08 के वैश्विक आर्थिक संकट से निपटने की खातिर मात्रात्मक सहजता के तहत परिसंपत्ति खरीद कार्यक्रम शुरू किया था। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार के बाद मात्रात्मक सहजता में कमी लाने की खातिर 22 मई 2013 को फेड ने भविष्य की तारीख पर परिसंपत्ति खरीद में कमी लाने के इरादे की घोषणा की थी, जिसके बाद बॉन्ड प्रतिफल बढ़ गया था और इस वजह से भारत के लिए बाह्य मोर्चे पर अवरोध पैदा हुआ था।
समीक्षा में कहा गया हैकि हाल के महीनों में विदेशी मुद्रा भंडार में इजाफे के कारण कुल बाह्य उधारी व भंडार का अनुपात, अल्पावधि कर्ज व भंडार का अनुपात और आयातों के लिए रिजव के कवर मेंं वित्त वर्ष 22 की पहली छमाही में वित्त वर्ष 2014 के घटनाक्रम के मुकाबले सुधार देखने को मिला है। इसके अलावा नेट इंटरनैशनल इन्वेस्टमेंट पोजीशन व जीडीपी अनुपात घटकर -11.3 फीसदी रह गया है, जो उस अवधि में -18.2 फीसदी रहा था। 2021-22 की पहली तिमाही में भारत ने चालू खाते में 0.9 फीसदी का सरप्लस देखा, जो 2020-21 में भी था और यह 17 साल के बाद देखा गया था। दूसरी ओर भारत ने 2012-13 में सबसे ज्यादा जीडीपी का 4.8 फीसदी चालू खाते का घाटा दर्ज किया था, जो इससे पिछले साल 4.3 फीसदी रहा था।