अर्थव्यवस्था

G20 : वैश्वीकरण का गुरु बनकर राह दिखाए भारत

Published by
के पी कृष्णन
Last Updated- February 07, 2023 | 11:02 PM IST

भारत को जी 20 समूह की अध्यक्षता का इस्तेमाल वैश्वीकरण के लिए दलील पेश करने तथा नियम आधारित वैश्विक आर्थिक व्यवस्था बनाने में करना चाहिए।

वैश्विक अर्थव्यवस्था के समक्ष बढ़ता संरक्षणवाद और औद्योगिक नीति नई समस्या बनकर उभरे हैं। भारत को वैश्वीकरण का काफी लाभ मिला है लेकिन इस मामले में नेतृत्व विकसित देशों के पास होने के कारण वह पीछे ही नजर आता है। अब जबकि विकसित देश वैश्वीकरण के लिए पहले की तरह काम नहीं कर रहे हैं तो भारत के लिए यह संभावना है कि वह जी 20 समेत तमाम अवसरों का इस्तेमाल करके नेतृत्वकारी भूमिका अपनाए।

अंतरराष्ट्रीय एकीकरण के मामले में भारत अक्सर पीछे हट जाता है। सन 1991 के बाद के समय में हुई प्रगति का सावधानीपूर्वक आकलन करें तो पता चलता है कि वैश्वीकरण कितना महत्त्वपूर्ण रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था में अब संसाधनों का जबरदस्त प्रवाह है। हर वर्ष तकरीबन एक लाख करोड़ डॉलर की राशि पूंजी और चालू खाते में आती है।

आईटी उद्योग पर विचार करें

अब आईटी देश का सबसे बड़ा उद्योग है। यह विदेशी तकनीक, विदेशी कंपनियों, भारत में परिचालन क्षमता विकसित करने, भारतीय कंपनियों को विदेशी पूंजी मिलने और विदेशी ग्राहक मिलने से संभव हुआ। देश के सबसे अहम उद्योग का यह सफर दुनिया के साथ संबद्धता से ही संभव हुआ। निश्चित तौर पर आईटी के क्षेत्र में भारत की सफलता का संबंध दुनिया के साथ संबद्धता सुनिश्चित करने से था।

ये तथ्य दिखाते हैं कि वैश्वीकरण में भारत का हित है। मुक्त विश्व व्यवस्था हमारे लिए मददगार है जहां वैश्विक कंपनियां भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करने के लिए स्वतंत्र होती हैं और विदेशी पूंजी देश में आती है।

विदेशी ग्राहक भी अपने अहम तकनीकी काम भारत को बेहिचक सौंपते हैं। ऐसे में दुनिया भर में डेटा को लेकर जो राष्ट्रवाद शुरू हुआ है, जिसके तहत सरकारें विदेशियों को अपने स्थानीय आईटी सेक्टर में आने के लिए रोक रही हैं, वह भारत के हितों के खिलाफ है।

विश्व अर्थव्यवस्था के कई गुण अब विपरीत दिशा में जाते दिख रहे हैं। अमेरिका ने क्रिएटिंग हेल्पफुल इंसेंटिव्स टु प्रोड्यूस सेमीकंडक्टर्स ऐंड साइंस (चिप्स) अधिनियम और इन्फ्लेशन रिडक्शन ऐक्ट (आईआरए) पारित किए हैं। ये घरेलू सेमीकंडक्टर, ऊर्जा और बैटरी उद्योग को अरबों डॉलर की राशि मुहैया कराएंगे।

द इकॉनमिस्ट ने संयुक्त राष्ट्र के हवाले से कहा है कि 100 से अधिक देश जो दुनिया के 90 फीसदी जीडीपी के लिए जिम्मेदार हैं उन्होंने ‘औद्योगिक नीति’ संबंधी उपाय अपनाए हैं और निवेश की जांच तथा निर्यात नियंत्रण को भी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ रणनीतिक उपाय के रूप में अपनाया है।

भारत ने भी ऐसा ही किया है। सरकार ने 2020 में उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना शुरू की थी ताकि भारत को विनिर्माण और निर्यात का केंद्र बनाया जा सके। इसमें पात्र प्रतिभागियों को पांच वर्ष तक उत्पादन मूल्य के 4-6 फीसदी तक प्रोत्साहन मिलता है।

इसके साथ सालाना निवेश और उत्पादन मूल्य लक्ष्य जुड़े रहते हैं। भारत के लिए यह राह मुश्किल है क्योंकि हमारे यहां राज्य के बुनियादी कामों मसलन सुरक्षा, न्यायपालिका और पुनर्वितरण कार्यक्रमों आदि के लिए ही समुचित आर्थिक संसाधन नहीं हैं।

भारत की तकनीकी नीति डेटा राष्ट्रवाद की ओर भटक गई है और एकीकृत भुगतान इंटरफेस यानी यूपीआई जैसी पहल तैयार करते हुए विदेशी कंपनियों को प्रतिस्पर्धा करने से रोका गया। अगर ब्राजील जैसे देश दुनिया के लिए खुले रहे तो यह भारत के हित में होगा क्योंकि भारत की आईटी फर्म वहां प्राथमिक हिस्सेदार हैं। जबकि ब्राजील का नीतिगत ढांचा डेटा राष्ट्रवाद को तरजीह देता है।

ऐसे में वैश्वीकरण और औद्योगिक नीति के सवालों पर रणनीतिक ढंग से विचार करने की आवश्यकता है। दशकों से भारत को वैश्वीकरण का लाभ मिला है, हालांकि भारत सरकार ने तीसरे विश्व के साथ पूरी एकजुटता दिखाई और वैश्वीकरण की प्रक्रिया को बाधित करने का प्रयास किया।

भारतीय अर्थव्यवस्था में सन 1991 के बाद से जो बदलाव आया वह मोटेतौर पर पश्चिम की बदौलत था। हमारी सबसे बड़ी राशि वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात से आती है और अब वह सालाना एक लाख करोड़ डॉलर का आंकड़ा पार कर चुकी है।  

वैश्वीकरण हमारे हित में रहा है। अब उसे लेकर वैश्विक राजनीतिक माहौल बदल चुका है। इसे  लेकर विकसित देशों का रुझान कम हुआ है जबकि भारत का कद बढ़ा है।

अब वक्त आ गया है कि हमारी सरकार भी लोगों के हितों को ठीक से समझे। आलोचक कहेंगे कि पश्चिम के देश औद्योगिक नीति और संरक्षणवाद को इसलिए अपना रहे हैं कि चीन और रूस ने अंतरराष्ट्रीय नियम तोड़े हैं। इस तीसरे वैश्वीकरण का स्वरूप शायद ऐसा हो सकता है जहां लोकतंत्रों के बीच पूर्ण वैश्वीकरण हो जबकि अलोकतांत्रिक देशों से निपटते समय सावधानी बरती जाए।

जी 20 की स्थापना 1999 में एशियाई वित्तीय संकट के बाद वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों के लिए की गई थी ताकि वे वैश्विक आर्थिक और वित्तीय हालात पर चर्चा करें। 2008 के वित्तीय संकट के बाद इसे राष्ट्राध्यक्षों के लिए शुरू किया गया। इन 20 देशों में दुनिया की दोतिहाई आबादी, तीन चौथाई व्यापार और करीब 85 फीसदी जीडीपी आता है।

इस समूह में यह ताकत है कि वह सरकारों के व्यवहार और उनके समूहों को लेकर वैश्विक विचार प्रक्रिया को प्रभावित करे। भारत की जी 20 अध्यक्षता के दौरान भारत सरकार के पास मौका है कि वह एजेंडे और निष्कर्ष को आकार देने में भूमिका निभा सके।

हमारे प्रधानमंत्री की बात दुनिया में सुनी जाती है। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा है कि गंभीर सुधार और बदलाव सरकारों के कदमों भर से नहीं होते बल्कि वे तब होते हैं जब ये विचार जनांदोलन बन जाते हैं। इसी विचार के अनुरूप सरकार ने अहम क्षेत्रों में सरकार, निजी क्षेत्र, अकादमिक जगत और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों के साथ 11 जी20 संबद्धता समूह बनाए।

इरादा इन विचारों को जनांदोलन में बदलने का है। अब विश्व गुरु यानी भारत के लिए अवसर है कि वह दुनिया को रास्ता दिखाए। संस्कृत में गुरु का अर्थ केवल शिक्षक से कहीं अधिक बड़ा है। इसका अर्थ है जीवन को दिशा दिखाने वाला, प्रेरणा का स्रोत। अब वक्त आ गया है कि गुरु दुनिया को रास्ता दिखाए।

(लेखक पूर्व लोक सेवक, सीपीआर में मानद प्रोफेसर एवं कुछ लाभकारी एवं गैर-लाभकारी निदेशक मंडलों के सदस्य हैं)

First Published : February 7, 2023 | 10:26 PM IST