अर्थव्यवस्था

Fitch ratings: भारतीय अर्थव्यवस्था की मध्यम अवधि में वृद्धि दर 6.2% रहने की उम्मीद

Indian Economy: फिच रेटिंग्स ने भारत की मध्यम अवधि की वृद्धि दर अनुमान को बढ़ाया

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शिवा राजौरा   
Last Updated- November 06, 2023 | 9:37 PM IST

रोजगार दर में सुधार और कामकाजी उम्र वाली बेहतर आबादी के अनुमान के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था में वर्ष 2019-27 की अवधि के दौरान मध्यम अवधि में 6.2 प्रतिशत वार्षिक औसत वृद्धि दर दर्ज करने की क्षमता है। यह वृद्धि वर्ष 2013-2022 के लिए अनुमानित 5.7 प्रतिशत की वार्षिक औसत वृद्धि दर से 0.7 प्रतिशत अधिक है।

क्रेडिट रेटिंग एजेंसी, फिच रेटिंग्स ने सोमवार को एक वैश्विक आर्थिक परिदृश्य से जुड़ी रिपोर्ट जारी की जिसमें यह बात सामने आई है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत में रोजगार दर में सुधार और कामकाजी उम्र की आबादी के पूर्वानुमान में वृद्धि को देखते हुए संभावित वृद्धि 0.7 फीसदी अंक बढ़कर 6.2 प्रतिशत हो गई है। भारत का श्रम उत्पादकता पूर्वानुमान भी अधिक है।’

हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था की बढ़ी हुई क्षमता से जुड़ी रिपोर्ट ऐसे वक्त में सामने आई है जब वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ने 10 उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए मध्यम अवधि की वृद्धि दर अनुमान को 4.3 प्रतिशत से घटाकर 4 प्रतिशत कर दिया है जिसकी मुख्य वजह चीन के वृद्धि अनुमान में कटौती है।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हमने चीन की आपूर्ति के वृद्धि दर अनुमान को 5.3 प्रतिशत से घटाकर 4.6 प्रतिशत कर दिया है। हाल के वर्षों में चीन की वृद्धि की रफ्तार तेजी से धीमी हुई है और पूंजीगत मोर्चे पर भी तस्वीर बेहतर नहीं है क्योंकि संपत्ति में गिरावट का असर निवेश से जुड़ी धारणाओं पर भी पड़ रहा है।

श्रम आपूर्ति के मोर्चे पर भी कमजोरी दिख रही है जो आबादी की श्रम बल भागीदारी दर में आ रही कमी को दर्शाता है।’दुनिया की 10 उभरती अर्थव्यवस्थाओं में ब्राजील, चीन, भारत, इंडोनेशिया, कोरिया, मैक्सिको, पोलैंड, रूस, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की जैसे देश शामिल हैं।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि महामारी से पहले के अनुमानों की तुलना में ब्राजील और पोलैंड को छोड़कर सभी 10 उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं के वृद्धि अनुमानों में निचले स्तर के संशोधन हुए हैं।

इसकी वजह यह है कि जनसांख्यिकीय रुझानों में स्पष्ट रुप से यह दिख रह है कि कामकाजी उम्र वाली आबादी में वृद्धि की दर, वक्त के साथ धीमी हो रही है और महामारी के कारण बड़ी आर्थिक बाधाओं के चलते आपूर्ति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘वर्ष 2020 में कोविड महामारी के कारण कुछ उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मंदी की स्थिति बेहद गंभीर हो गई थी और मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में बड़ी गिरावट देखी गई थी। वहीं दूसरी ओर कोरिया में केवल मामूली कमी के साथ ही तुर्की और चीन जैसे देशों में सकारात्मक वृद्धि का रुझान देखा गया।

बाद में ज्यादातर अर्थव्यवस्थाओं में मजबूत आर्थिक सुधार देखे गए क्योंकि सरकारों ने राजकोषीय खर्च बढ़ा दिया और इसके साथ ही वैश्विक व्यापार में सुधार देखा जाने लगा। आर्थिक गतिविधियों के फिर से शुरू होने के बाद निजी खपत में भी उछाल देखी गई।’रिपोर्ट में इसका भी जिक्र था कि अधिकांश उभरती अर्थव्यवस्थाओं को ऐसा लग रहा है कि बेहतर रिकवरी के बावजूद, महामारी से पहले की उम्मीदों के मुकाबले उत्पादन में स्थायी तौर पर नुकसान झेलना पड़ेगा।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वर्ष 2019 के आकलन की तुलना में विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में संभावित वृद्धि के लिए कम पूर्वानुमान, श्रम आपूर्ति घटक के कारण हैं जो आंशिक रूप से कामकाजी आबादी में कमी को दर्शाता है। भारत उन देशों में शामिल है, जहां वर्ष 2019 की तुलना में श्रम इनपुट में सबसे अधिक कमी आई है।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘श्रम भागीदारी दर में अपेक्षाकृत रूप से नकारात्मक वृद्धि को देखते हुए भारत की अनुमानित श्रम आपूर्ति वृद्धि भी 2019 के बरक्स कम है। हालांकि भागीदारी दर महामारी के दौर वाली मंदी से उबरती हुई दिख रही है लेकिन यह 2000 के दशक की शुरुआत के स्तर से काफी नीचे बनी हुई है जिसकी एक वजह यह भी है कि महिलाओं के बीच रोजगार दर बेहद कम है।’

First Published : November 6, 2023 | 9:37 PM IST