Economic Survey 2024: सोमवार को पेश की गई आर्थिक समीक्षा में इसे लेकर आगाह किया गया कि भू-राजनीतिक तनाव, संरक्षणवाद में वृद्धि, लाल सागर संकट के कारण व्यापार की ऊंची लागत, जिंसों की कीमतों में उतार-चढ़ाव के जोखिम से वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात को बढ़ाना ‘पहले की तुलना में ज्यादा कठिन चुनौती’ होगी।
इससे निपटने के लिए, भारत को यह समझना होगा कि बदलते हालात का देश के लिए क्या अर्थ है और ऐसी नीतियां तैयार करनी होंगी जो सुरक्षा चिंताओं को आर्थिक परिदृश्य को ध्यान में रखकर दूर करें। यह कार्य उत्पादल से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाओं और मेक इन इंडिया के माध्यम से विशिष्ट और जटिल क्षेत्रों में विनिर्माण को प्रोत्साहित करके किया जा सकता है।
समीक्षा के अनुसार, जोखिमों के बावजूद आने वाले वर्षों में भारत का व्यापार घाटा कम होने का अनुमान है, क्योंकि पीएलआई योजना का दायरा बढ़ा है और भारत ने कई उत्पाद श्रेणियों में वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी निर्माण आधार तैयार किया है।
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), मॉरीशस, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय मुक्त व्यापार संगठन (ईएफटीए) के साथ हाल में हुए मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) से देश के निर्यात की वैश्विक बाजार भागीदारी बढ़ने का अनुमान है।
इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ-साथ भारत के केंद्रीय बैंक को उम्मीद है कि बढ़ते माल और सेवाओं के निर्यात के कारण वित्त वर्ष 2024 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के मुकाबले चालू खाते का घाटा (सीएडी) एक फीसदी से कम हो जाएगा। वित्त वर्ष 2024 की अंतिम तिमाही जीडीपी के 0.6 फीसदी के चालू खाता अधिशेष के साथ समाप्त हुई।
समीक्षा में कहा गया है, ‘भविष्य में, भारत के निर्यात की बदलती तस्वीर, व्यापार संबंधित बुनियादी ढांचे में सुधार, गुणवत्ता के प्रति बढ़ती सजगता और निजी क्षेत्र में उत्पाद सुरक्षा से भारत को वस्तु एवं सेवाओं के वैश्विक आपूर्तिकर्ता के तौर पर उभरने में मदद मिल सकेगी।’
समीक्षा में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर बढ़ता संरक्षणवाद एक अन्य जोखिम है जो 2024 और 2025 में व्यापार सुधार की रफ्तार को कमजोर कर सकता है। उदाहरण के लिए, वित्त वर्ष 2024 में चीन के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार अमेरिका था। हालांकि, 2023 में अमेरिका की कुल आयात मात्रा में 1.7 फीसदी की कमी आई, जबकि 2022 में इसमें 8.6 फीसदी की वृद्धि हुई थी, जिसने भारत सहित व्यापारिक साझेदारों में निर्यात वृद्धि को काफी प्रभावित किया।
जिंस कीमतों (खासकर तेल, धातु और कृषि उत्पादों जैसे महत्वपूर्ण आयात से संबंधित) में उतार-चढ़ाव भारत के व्यापार संतुलन और मुद्रास्फीति स्तर को डगमगा सकता है। इसमें कहा गया है, ‘निराशाजनक वैश्विक वृद्धि से नकारात्मक जोखिम पैदा हो रहा है, खास तौर पर औद्योगिक वस्तुओं के लिए। अतिरिक्त व्यापार प्रतिबंधों से खाद्य पदार्थों की कीमतों में इजाफा हो सकता है।’
निर्यातकों के संगठन फियो के अध्यक्ष अश्वनी कुमार ने कहा कि देश में लॉजिस्टिक की घटती लागत से हमारे निर्यात को ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनाने में मदद मिलेगी।