अर्थव्यवस्था

Current account deficit: वित्त वर्ष 2023-24 में कम रहेगा चालू खाते का घाटा

नागेश्वरन ने कहा कि मॉनसून पर अल नीनो के संभावित असर के कारण उत्पादन और मूल्य पर पड़ने वाले असर से निपटने में देश सक्षम है।

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शाइन जेकब   
Last Updated- June 15, 2023 | 10:53 PM IST

भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) वी अनंत नागेश्वरन ने गुरुवार को कहा कि भारत का चालू खाते का घाटा (CAD) वित्त वर्ष 2023-24 में घटकर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 2 प्रतिशत से नीचे रहने की उम्मीद है और अब अर्थव्यवस्था के सामने चुनौतियां कम हैं।

2022-23 के शुरुआती 9 महीनों में यह 2.7 प्रतिशत पर पहुंच गया था, क्योंकि कच्चे तेल की कीमत ज्यादा थी। साथ ही इसकी भारी घरेलू मांग के कारण ज्यादा आयात करना पड़ा और व्यापार घाटा बढ़ गया।

नागेश्वरन ने कहा कि मॉनसून पर अल नीनो के संभावित असर के कारण उत्पादन और मूल्य पर पड़ने वाले असर से निपटने में देश सक्षम है। यह बयान ऐसे समय में आया है, जब भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने एक सप्ताह पहले अल नीनो के असर का हवाला देते हुए कहा था कि इससे भारत के वृद्धि को जोखिम हो सकता है।

चेन्नई में फिक्की के सम्मेलन को संबोधित करते हुए नागेश्वरन ने कहा, ‘चालू खाते का संतुलन वित्त वर्ष 23 की शुरुआत में चिंता का विषय था, क्योंकि पिछले साल अप्रैल-मई मे तेल की कीमत बहुत ज्यादा थी और खाद्य व उर्वरक की कीमत भी अधिक थी। लेकिन अब इनकी कीमतें स्थिर हो गई हैं और हम उम्मीद करते हैं कि चालू खाते का घाटा इस वित्त वर्ष में जीडीपी के 2 प्रतिशत से कम रहेगा। इसका मतलब यह है कि चालू खाते के वित्तपोषण को लेकर चुनौती अब कम है।’

रिजर्व बैंक के हाल के आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल-दिसंबर 2022 के दौरान चालू खाते का घाटा जीडीपी का 2.7 प्रतिशत था, जो अप्रैल-दिसंबर 2021 में 1.1 प्रतिशत था। तेज व्यापार में घाटे के कारण ऐसा हुआ था।

तीसरी तिमाही के दौरान यह 2.2 प्रतिशत था, जो दूसरी तिमाही में 3.7 प्रतिशत था। महामारी के पहले भारत के चालू खाते का संतुलन महामारी के पहले के वर्ष 2018-19 के दौरान 2.1 प्रतिशत था, जो घटकर 2019-20 और 2020-21 में घटकर 0.9 प्रतिशत रह गया और 2021-22 में 1.2 प्रतिशत था।

उन्होंने कहा कि बाहरी क्षेत्रों के हिसाब से देश का विदेशी मुद्रा भंडार 10 माह का आयात पूरा करने के लिए पर्याप्त है, जो उभरते हुए देशों की तुलना में बेहतरीन स्थिति है।

नागेश्वरन का यह भी मानना है कि देश और इसका कृषि क्षेत्र अर्थव्यवस्था पर अल नीनो के असर को टालने में पूरी तरह से सक्षम है। इस समय प्रशांत महासागर पर विकसित हो रहे अल नीनो का भारत के मौसम पर विपरीत असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है और विशेषज्ञों का कहना है कि यह खेती को प्रभावित कर सकता है।

First Published : June 15, 2023 | 10:53 PM IST