भारत ने मॉरीशस के साथ दोहरे कराधान से बचने की 26 साल पुरानी संधि में संशोधन की उम्मीद फिलहाल छोड़ दी है। हालांकि भारत ने कड़े कर नियमों के कारण मॉरीशस से मौद्रिक क्षतिपूर्ति की पेशकश की है।
भारत में हो रहे कुल विदेशी निवेश का आधा से ज्यादा हिस्सा अकेले मॉरीशस से आता है।
भारतीय कर अधिकारियों का मानना है कि मॉरीशस के साथ संधि की वजह से कुछ वर्षों से राजकोष पर सालाना 4000 करोड़ रुपये का भार पड़ रहा है।
मॉरीशस के रास्ते निवेश करने वालों के पूंजीगत लाभ पर छूट के कारण यह नुकसान हो रहा है।
वित्त मंत्रालय के अधिकारी के मुताबिक इस समझौते के बाद स्रोत आधारित कर प्रणाली के बजाय घरेलू कर प्रणाली प्रभावी हो जाएगी।
दूसरे शब्दों में निवेशकों को मॉरीशस में कर रियायत पाने के लिए वहां कम से कम एक पंजीकृत कार्यालय होना जरुरी हो जाएगा।
इस मुद्दे पर फरवरी में भारत सरकार और मॉरीशस सरकार के प्रतिनिधियों की बैठक वहां की राजधानी पोर्ट लुई में संपन्न हुई थी। यह वार्ता आम बजट पेश होने के तीन सप्ताह पूर्व हुई थी।
एक अधिकारी ने बताया कि एक कदम उठाया गया था, लेकिन कोई ठोस परिणाम नहीं आ पाया। भारत ने मॉरीशस को हो रहे राजस्व घाटे की भरपाई करने की भी पेशकश की है।
अब इस बात की संभावना बहुत कम है कि एक साल तक संधि को संशोधित किया जाए। दरअसल यह देरी राजनीतिक निर्णय के कारण हो सकती है।
सरकार मॉरीशस को 500 करोड़ रुपये की राहत देने की भी इच्छुक है। एक अधिकारी ने बताया कि भारत सुरक्षा सहायता देने के साथ अन्य तरीकों के जरिये मॉरीशस को अपना योगदान दे रही है।
जब संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार मई 2004 में सत्ता में आई थी, उसी समय न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत मॉरीशस के साथ इस दोहरे कराधान परित्याग संधि के गलत इस्तेमाल को खत्म करने का दावा किया गया था।
इसी तरह की कुछ और विसंगतियों को दूर करने के लिए अन्य देशों के साथ भी संधियां की गई थी, लेकिन इसमें मॉरीशस के साथ हो रही संधि काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है।
अप्रैल 2000 से दिसंबर 2007 तक कुल 5 करोड़ 10 लाख डॉलर का विदेशी निवेश हुआ था, जिसमें अकेले मॉरीशस से 2 करोड़ 1 लाख डॉलर का विदेशी निवेश हुआ। यह कुल निवेश का 45 प्रतिशत रहा।
1992-93 में जब मॉरीशस ने पूंजीगत लाभ को कर के दायरे से बाहर रखा था, उस समय भारत सरकार इस समझौते के संशोधन का एक अवसर खो चुकी थी।
अधिकारी इस बात को मानते हैं कि अब संधि को लागू करना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। इसकी एक वजह यह है कि अब अगर कोई एकपक्षीय समझौता किया जाएगा, तो हमारा स्टॉक बाजार काफी गोते खा सकता है।
भारत ने अब तक 72 देशों के साथ इस तरह का समझौता किया है। 21 फरवरी को इसी तरह का एक समझौता लक्जमबर्ग के साथ किया गया है।
भारतीय कर अधिकारी इन संधियों के जरिये कुछ उपबंधों को समाप्त करने की तैयारी भी कर रहे हैं। केवल 12-13 संधियों में ही घरेलू कर प्रणाली को अपनाया गया है।
इसमें भी 7 से 8 को तो फिर से संशोधित किया गया है। अन्य संधियां संशोधन के लिए प्रतीक्षित हैं। इसमें केवल मॉरीशस और सिंगापुर ही बचे हुए हैं। सिंगापुर के साथ तो कम से कम सुरक्षा उपाय भी लागू हैं।