बीएस बातचीत
इस्पात क्षेत्र में सुधार की रफ्तार उम्मीद से कहीं अधिक तेज रही और कीमतों में भी तेजी आई है। टाटा स्टील के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी टीवी नरेंद्रन ने ईशिता आयान दत्त से बातचीत में कहा कि विभिन्न क्षेत्रों की खपत में तेजी आई है और मांग में तेजी को बरकरार के लिए संघर्ष जारी है। पेश हैं मुख्य अंश:
क्या इस्पात की मौजूदा कीमतें टिकाऊ हैं?
पिछले 10 से 12 वर्षों के दौरान इस्पात कीमतों का दीर्घकालिक औसत 600 डॉलर प्रति टन है। अब हम विश्व स्तर पर शीर्ष पायदान के करीब हैं। वर्ष 2015 के बाद से ही इस्पात की कीमतों में संघर्ष बरकरार रहा है। लेकिन दुनिया के निर्यात में चीन का योगदान कम होने और कीमतों में तेजी बरकरार रहने से इस्पात की कीमतें 500 से 600 डॉलर प्रति टन के दायरे में कहीं अधिक सामान्य होनी चाहिए। देश में मांग को लेकर मैं काफी आशान्वित हूं। हम विभिन्न क्षेत्रों की खपत में तेजी देख रहे हैं। हालांकि वैश्विक महामारी की ताजा लहर को लेकर कुछ चिंता बरकरार है कि कहीं वह सुधार को बाधित न कर दे। अन्यथा इस्पात की खपत में वृद्धि दर काफी हद तक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के बराबर अथवा उससे अधिक होना है। इसलिए, इस्पात उद्योग को अच्छा प्रदर्शन करना चाहिए।
क्या आर्थिक सुधार की रफ्तार उम्मीद से बेहतर है?
यह न केवल बेहतर बल्कि तेज है। भले ही हमारा ध्यान निर्यात से हटकर घरेलू बाजार की ओर हो गया है, लेकिन हम बाजार की जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं जो एक अच्छी बात है। हमने सोचा था कि मार्च तिमाही में चीजें सामान्य हो जाएंगी लेकिन अब हम वॉल्यूम और कीमत दोनों मोर्चों पर कोविड से पहले के स्तर तक पहुंच चुके हैं।
किस क्षेत्र का सुधार अचंभित करने वाला रहा?
सबसे पहले ग्रामीण बाजारों का प्रदर्शन बेहतर रहा। अच्छे मॉनसून, ग्रामीण बुनियादी ढांचे पर ध्यान केंद्रित करने और लोगों के गांव की ओर पलायन से इसमें मदद मिली। जिस श्रेणी में हमारे अनुमान के मुकाबले कहीं अधिक तेजी से सुधार हुआ वह है वाहन। यात्री कार श्रेणी में तेजी दिखी लेकिन वाणिज्यिक वाहन श्रेणी की रफ्तार सुस्त थी जबकि हल्के एवं मझोले वाणिज्यिक वाहन श्रेणी में सितंबर से सुधार दिखाना शुरू हो गया था। अब तो भारी वाहन श्रेणी में भी सुधार दिखने लगा है।
टाटा स्टील किस प्रकार की वृद्धि चाहती है?
हम कलिंगनगर संयंत्र के दूसरे चरण को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। इससे हमारी क्षमता बढ़कर 2.5 करोड़ टन हो जाएगी जो फिलहाल 2 करोड़ टन है। हम दो साल में 2.5 करोड़ टन क्षमता को पार कर जाएंगे। फिलहाल हम कम से कम उस रफ्तार के साथ आगे बढऩे की कोशिश करेंगे जिसके साथ देश में इस्पात की खपत बढ़ रही है। वैसे भी भारतीय कारोबार अपनी वृद्धि को बनाए रखने के लिए पर्याप्त नकदी सृजित करता है। इसलिए हमें ऋण के बगैर वृद्धि को बनाए रखने के लिए आश्वस्त हैं।
आप अपनी पूंजीगत खर्च संबंधी योजनाओं पर नए सिरे से विचार कब करेंगे?
चौथी तिमाही हमारी बोर्ड बैठक होगी। तब तक हमारे पास एसएसएबी लेनदेन की अच्छी समझ होगी।
ऐसा लगता है कि फिलहाल आप एसएसएबी लेनदेन और विस्तार न करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। क्या इससे वृद्धि प्रभावित नहीं होगी?
हमने केल कलिंगनगर का विस्तार रोक दिया था। जैसे ही हम उसे सुचारु कर देंगे और एसएसएबी लेनदेन हो जाएगा तो हम काफी सहज स्थिति में आ जाएंगे। तब बोर्ड भारत में वृद्धि को रफ्तार देने की स्थिति में रहेगा। हम वृद्धि को हमेशा रफ्तार दे सकते हैं लेकिन वह दीर्घकालिक स्थायी वृद्धि होनी चाहिए।