अमेरिका के नए राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के उथलपुथल मचाने वाले फैसलों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ इसी हफ्ते होने वाली उनकी मुलाकात की आहट इंडिया एनर्जी वीक के पहले दिन सुनाई देती रही। कार्यक्रम के दौरान पैनल चर्चा हों या कॉफी ब्रेक में होने वाली गपशप, हर जगह ट्रंप की ऊर्जा नीति और ऊर्जा बदलाव पर ही बात होती रही।
कार्यक्रम में पहली पैनल चर्चा में भाग लेते हुए केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप पुरी ने कहा, ‘मुझे फक्र है कि जब ट्रंप राष्ट्रपति नहीं थे तब भी मेरी उनसे जान-पहचान थी। मैं वर्ल्ड ट्रंप टॉवर में रहा भी हूं। वह हर साल वहां आते थे और सालाना मिलन समारोह होता था। मैंने यह सब अपने सामने होते देखा है।’
राष्ट्रपति ट्रंप की ऊर्जा नीतियों के असर पर बात करते हुए पुरी ने कहा कि उसके कुछ पहलू उन्हें बहुत अच्छे लगे हैं। उन्होंने कहा, ‘जब नया प्रशासन कहता है कि ज्यादा ऊर्जा बाजार में आनी चाहिए और कीमतें कम होनी चाहिए तो पेट्रोलियम मंत्री और भारतीय होने के नाते मैं खुश होता हूं।’ उन्होंने कहा कि मोदी और ट्रंप की बैठक में अमेरिका से ज्यादा ऊर्जा लेने पर बात नहीं हुई तो उन्हें हैरत होगी।
यूक्रेन के साथ युद्ध के बाद विकसित देशों से अधिक प्रतिबंध झेल रहे रूस ने तेल खरीदने के लिए भारत का शुक्रिया अदा किया। रूस के उप ऊर्जा मंत्री पावेल सोरोकिन ने अमेरिका का नाम लिए बगैर कहा, ‘कोई एक देश सभी की ऊर्जा नीतियां तय नहीं कर सकता।’ भारत व अमेरिका के लिए उनका संदेश एकदम स्पष्ट था। सोरोकिन ने कहा, ‘हम रिश्तों को अहमियत देते हैं। तेल बाजार में हम फायदे की स्थिति में हैं। चुनौतियां आएंगी मगर हम ऐसे ही बने रहेंगे।’ सम्मेलन में जीवाश्म ईंधन का पलड़ा भारी दिखा और दुनिया भर के नेताओं ने अपनी राय रखी।
कतर के ऊर्जा मंत्री साद शेरीदा अल-काबी ने पुरी के साथ कहा कि तेल और गैस की आपूर्ति घटी तो ऊर्जा की कीमतें बेतहाशा बढ़ जाएंगी। उन्होंने कहा, -‘लोग पिछले 10 साल से तेल-गैस उत्पादकों को खलनायक बना रहे हैं मगर इससे पर्यावरण की समस्याएं तो हल नहीं हो पाईं। जीवाश्म ईंधन को खारिज करने का चलन (कैंसल कल्चर) चल रहा है। कहा जा रहा है कि इसकी जगह दूसरी ऊर्जा इस्तेमाल होनी चाहिए। लेकिन हमें सभी तरह के ऊर्जा स्रोतों और ऊर्जा दक्षता की जरूरत है। भारत इसका उदाहरण है।’ साद ने अधिक कोयला उत्पादन करने वाले भारत और चीन का पक्ष लिया। उन्होंने कहा, ‘ये दोनों देश कोयला के सबसे बड़े उत्पादक हैं। हम उनसे यह नहीं कह सकते कि घर में मौजूद संसाधन इस्तेमाल मत कीजिए व उसकी जगह हमसे ईंधन लीजिए। अपने पास मौजूद संसाधनों का इस्तेमाल होना ही चाहिए। कोयले को खत्म नहीं किया जा सकता। कैंसल कल्चर चलाकर सब कुछ खारिज करना बंद करना होगा।’
पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन ओपेक के महासचिव हैथम अल गैस ने उन लोगों के प्रति रोष व्यक्त किया। जिन्होंने ‘बहुत अधिक तेल, बहुत अधिक पेट्रोल और बहुत अधिक उत्सर्जन’ की भविष्यवाणी की थी। गैस ने कहा, ‘सभी गलत साबित हुए। तेल की बहुत अहमियत है। ओपेक अक्षय ऊर्जा के खिलाफ नहीं है। लेकिन अक्षय ऊर्जा की जीवाश्म ईंधन के साथ कोई होड़ नहीं है। हम दोनों के बीच संतुलन बनाने की बात कर रहे हैं।’