प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
रिलायंस कम्युनिकेशंस ने एक्सचेंजों को बताया है कि देश के सबसे बड़े ऋणदाता भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने खाते के संचालन में अनियमितताओं के कारण उसके ऋण खाते को ‘धोखाधड़ी’ की श्रेणी में डालने का फैसला किया है। उसने केंद्रीय बैंक के दिशानिर्देशों के अनुसार खाते और कंपनी के निदेशक रहे अनिल धीरूभाई अंबानी, दोनों की रिपोर्ट भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को करने का भी फैसला किया है।
एसबीआई ने 23 जून को रिलायंस कम्युनिकेशन को भेजे एक पत्र (जो कंपनी को 30 जून को मिला) में कहा, ‘हमने अपने एससीएन यानी कारण बताओ नोटिसों के जवाबों (जहां भी प्राप्त हुए) का संज्ञान लिया है और उनकी उचित जांच के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि प्रतिवादी ने ऋण दस्तावेजों की सहमति शर्तों और नियमों का पालन न करने या रिलायंस कम्युनिकेशंस के खाते के संचालन में पाई गई अनियमितताओं को स्पष्ट करने के पर्याप्त कारण नहीं बताए हैं।’
हालांकि कंपनी ने स्पष्ट किया है कि एसबीआई द्वारा ‘धोखाधड़ी’ के वर्गीकरण से कंपनी पर कोई असर पड़ने की आशंका नहीं है। इसके अलावा, वह इस घटनाक्रम के संबंध में कानूनी सलाह ले रही है। कंपनी इस समय कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) से गुजर रही है और उसके पास अपने लेनदारों की समिति की ओर से मंजूर समाधान योजना है। कंपनी ने कहा है कि बैंक द्वारा संदर्भित ऋण सुविधाएं सीआईआरपी से पहले की अवधि से जुड़ी हैं।
ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) के अनुसार इस तरह के दावों को समाधान योजना के हिस्से के रूप में या परिसमापन के दौरान हल किया जाना आवश्यक है। इसके अलावा, कंपनी ने आईबीसी की धारा 32ए का हवाला दिया है, जो समाधान योजना स्वीकृत होने के बाद सीआईआरपी शुरू होने से पहले किए गए किसी भी कथित अपराध के लिए देयता से सुरक्षा प्रदान करती है। इस बीच, अनिल अंबानी के वकीलों ने रिलायंस कम्युनिकेशंस के खाते को धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत करने के एसबीआई के नोटिस का जवाब देते हुए कहा कि एसबीआई ने लगभग एक साल से कारण बताओ नोटिसों के अमान्य होने के बारे में अंबानी के पत्रों का जवाब नहीं दिया है और अंबानी को अपने आरोपों के खिलाफ दलीलें पेश करने के लिए व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर भी नहीं दिया है।
बैंक ने खाते को अगस्त 2016 में एनपीए (गैर-निष्पादित परिसंपत्ति) घोषित किया था। इसके बाद, अक्टूबर 2020 में बैंक ने खाते की पहचान ‘फ्रॉड’ के रूप में की थी और उधार लेने वाली इकाई और उसके प्रमोटरों / निदेशकों / गारंटरों के नाम आरबीआई को भेज दिए थे, लेकिन इसे अदालत में चुनौती दी गई थी और धोखाधड़ी का वर्गीकरण हटा लिया गया था। लेकिन बैंक ने धोखाधड़ी की पहचान की प्रक्रिया फिर से शुरू की और 2023 में कारण बताओ नोटिस भेजे।