भारत की बड़ी दवाई कंपनियां रैनबैक्सी, डॉ. रेड्डीज लैब. और ल्यूपिन जो कल तक घरेलू बाजार में एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में शामिल थीं, आज मंदी के दलदल से बाहर निकलने के लिए एक दूसरे का हाथ थामने को तैयार हैं।
विश्व बाजार में बढ़ती चुनौतियं, घटते मार्जिन और लागत में इजाफा की वजह से को-मार्केटिंग की नीति अपना रही हैं। हालिया बदलाव में मुंबई की ल्यूपिन लैबोरेटरीज ने हैदराबाद के नाटको फार्मा के साथ मिलकर अमेरिका और अन्य बाजारों में सायर पिक्स ड्रग ब्रैंड फॉसरेनाल (लैंथनम कार्बोनेट ) टैबलेट को मिलकर बेचने का फैसला किया है, जिसके पेटेंट की समय-सीमा 2012 में समाप्त हो जाएगी।
को-मार्केटिंग एलायंस के तहत नाटको, जिसने इस दवाई को तैयार किया है, वह इसका उत्पादन करेगी और ल्यूपिन उत्पाद से जुडे क़ानूनी और विपणन मामलों का निपटारा करेगा। ल्यूपिन के मैनिजिंग डायरेक्टर कमल के. शर्मा का कहना है कि हमने अपने लिए इस तरह के प्रबंध का रास्ता खुला छोड़ दिया है और भारत की दो और बडी क़ंपनियों के साथ हम को-मार्केटिंग एलायंस के लिए बात कर रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि को-मार्केटिंग एलायंस से कं पनियों को दवाइयों के दाम को बनाए रखने में फायदा हो सकता है, साथ ही एक दूसरे की ताकत का फायदा वे अपनी तकनीक और विपणन क्षमता बढ़ाने में कर सकती हैं।
इंटरलिंक मार्केटिंग कंसल्टेंसी (कंसल्टिंग फर्म) की मैनेजिंग प्रमुख का कहना है कि यह दो बडे प्रतिभागियों का मिलन है। बाजार को फिर से नई शक्ति प्रदान करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण और शक्तिशाली कदम है।
वर्ष 2001 में एलायंस में शामिल होने वाली पहली कंपनी रैनबैक्सी थी। कंपनी ने अपनी दो दवाइयां ऑफ्लोक्सीन और सीपरोऑफ्लोक्सीन के लिए सिप्ला, जायडस कैडिला और गैलेक्सो के साथ को-मार्केटिंग की नीति को अपनाया था। अजित महादेवन का कहना है कि को-मार्केटिंग एलायंस एक पुरानी रणनीति है।
