नतीजों का मौसम शुरू होने से पहले ही माना जा रहा था कि मंदी के बादल अपना असर दिखाएंगे, लेकिन नतीजे सामने आने पर चिंता और बढ़ गई है।
मुनाफे की झोली में छेद दिख रहा है। जिन 212 कंपनियों (बैंक और वित्तीय सेवा कंपनियों को छोड़कर) के नतीजों का ऐलान हुआ है, उनके मुनाफे में 2007-08 की चौथी तिमाही के मुकाबले कुल मिलाकर 12 फीसदी की गिरावट आई है।
इसमें ज्यादा ताज्जुब की बात नहीं है क्योंकि बिक्री में तो महज 5 फीसदी की कमी आई है, कच्चे माल की कीमत स्थिर है और मुद्रा भी परेशान नहीं कर रही है। डॉलर में उतार चढ़ाव की वजह से इस बार मारुति सुजूकी और रैनबैक्सी जैसी कुछेक कंपनियों को ही नुकसान हुआ है। खास तौर पर रैनबैक्सी को इससे 700 करोड़ रुपये का चूना लगा है।
रैनबैक्सी के लिए यह तिमाही वाकई अच्छी नहीं रही और उसकी बिक्री भी 4 फीसदी कमी हुई। लेकिन कमाई में ज्यादा गिरावट रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) के खेमे से सुनने को मिली। उसकी कमाई में 24 फीसदी की कमी आई। उसके अलावा सेसा गोवा और कंटेनर कॉर्पोरेशन की कमाई भी कम हुई।
दिलचस्प है कि सिप्ला जैसी जिन कंपनियों की बिक्री में 14 फीसदी का इजाफा हुआ, वहां भी रुपये की कीमत कम होने की वजह से कमाई के आंकड़े बहुत अच्छे नहीं रहे। राजस्व कमजोर रहने की वजह से परिचालन मुनाफा मार्जिन भी कम रहा। 212 कंपनियों में तो यह 0.6 फीसदी कम रहा, जबकि कच्चे माल की कीमत स्थिर ही रही।
कच्चे माल की कीमत और बिक्री का अनुपात भी 35 फीसदी रहा, जबकि तीसरी तिमाही में यह 41 फीसदी था। लेकिन बाकी लागत कम नहीं हुई, जिससे मार्जिन पर मार पड़ी।
ब्याज की भी मार
आरआईएल के परिचालन मार्जिन पर जरूर सकल रिफाइनिंग मार्जिन कम होने का असर पड़ा, जो इस तिमाही में 9.9 डॉलर प्रति बैरल ही रह गया था। यदि शुद्ध मुनाफे में परिचालन मुनाफे के मुकाबले ज्यादा कमी आई, तो इसकी वजह ब्याज ज्यादा रहना था, जिसकी वजह से अन्य आय कम रही।
बाजार खुश, फर्म नहीं
हालांकि इन आंकड़ों के बावजूद शेयर बाजार को लगता है कि खराब वक्त खत्म हो चुका है। बंबई स्टॉक एक्सचेंज में सेंसेक्स इसी वजह से पिछले शुक्रवार को 6 महीने के उच्चतम स्तर पर बंद हुआ। लेकिन मजे की बात है कि ज्यादातर कंपनी प्रमुख यह नहीं मान रहे हैं कि खराब दौर खत्म हो चुका है।
सूचना प्रौद्योगिकी की दिग्गज कंपनियां तो चालू वित्त वर्ष को ज्यादा खराब मान रही हैं। इन्फोसिस ने कह ही दिया है कि नए वित्त वर्ष में उसका परिचालन मार्जिन 3 फीसदी तक कम हो सकता है। रैनबैक्सी ने भी पिछले साल के मुकाबले इस बार बिक्री कम होने की बात कही है।
एचडीएफसी बैंक ने बैंकिंग प्रणाली में ऋण वृद्धि महज 17 से 18 फीसदी रहने की बात कही है यानी खर्च में तेज बढ़ोतरी के बारे में सोचना समझदारी नहीं है।
कच्चे माल की कीमत स्थिर, पर बहीखाते कमजोर
परिचालन मुनाफे में आगे भी कमी का अंदेशा
सेंसेक्स को बेहतर नतीजों की उम्मीद, कंपनियों को भरोसा ही नहीं