रैनबैक्सी लैबोरेट्रीज यूरोपीय बाजार में अपने कारोबार को कम करने की योजना बना रही है। कंपनी की यह योजना मुनाफा कमाने के चलते बनाई गई है।
विश्व के तीसरे सबसे बड़े दवा बाजार में कीमतों के बढ़ते दबाव के कारण ब्रिटेन और जर्मनी सरीखे देशों में कुछ दवाओं की बिक्री पर मुनाफा घट गया है, जिसके मद्देनजर कंपनी ने ‘कारोबार’ विकास के मॉडल की बजाए ‘मुनाफे’ पर ध्यान देने का निर्णय लिया है।
रैनबैक्सी को 31 मार्च, 2009 में समाप्त तिमाही के दौरान 761 करोड़ रुपये का शुध्द घाटा हुआ है, जबकि वर्ष 2008 की समान तिमाही में कंपनी को 153 करोड़ रुपये का शुध्द मुनाफा हुआ था।
शुक्रवार को एक सम्मेलन के दौरान रैनबैक्सी के मुख्य कार्याधिकारी एवं प्रबंध निदेशक मालविंदर मोहन सिंह ने कहा, ‘यूरोप में हम मुनाफे पर ध्यान देकर खुश होंगे।’ सिंह का कहना है कि ब्रिटेन और जर्मनी में कीमतों पर इतना भारी दबाव है कि रैनबैक्सी ने इन बाजारों से अपना हाथ खींचना शुरू कर दिया है।
सिंह का कहना है, ‘सिर्फ फ्रांस ही एक ऐसा बाजार है, जहां स्थितियां बद्तर नहीं हैं। हम वर्ष 2009 के अंत तक इंतजार करेंगे और फिर इस देश में अपनी रणनीतियों पर फैसला लेंगे।’ आर्थिक मंदी और सार्वजनिक हेल्थकेयर तंत्र पर स्वास्थ्य देख रेख के बढ़ते बोझ से यूरोपीय क्षेत्र में कई सरकारों को दवाओं के लिए आमंत्रित निविदाओं की कीमतों में कमी करने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
निविदा कारोबार के नतीजतन दुनियाभर के पेटेंट रहित दवा निर्माताओं के बीच कड़ी प्रतियोगिता हो गई है। इसलिए इन क्षेत्रों में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली दवाओं की मार्केटिंग में मुनाफा खत्म हो गया है।
वॉकहार्ट और डॉ. रेड्डीज सरीखी भारतीय कंपनियों, जिनकी यूरोपीय बाजार में मजबूत उपस्थिति है, को भी अब इसका फर्क पड़ने लगा है। यूरोपीय क्षेत्र में रैनबैक्सी का राजस्व 31 मार्च, 2009 को समाप्त हुई तिमाही में साल-दर-साल के आधार पर 14 प्रतिशत घट गया है। इस क्षेत्र में मार्च 2009 की तिमाही में 5.7 करोड़ डॉलर की बिक्री हुई।
