सरकारी बैंकों की ओर से आवास ऋण की ब्याज दर में की गई कटौती से पेंट उद्योग जगत काफी खुश है।
घरेलू पेंट कंपनियों के 40 फीसदी उत्पादन की खपत रियल एस्टेट में ही होती है। रियल एस्टेट की मांग बढ़ने से पेंट कंपनियों को भी सुस्त हो चुके पेंट कारोबार में बिक्री में बढ़ोतरी का रंग भरने की उम्मीद लग रही है।
बाजार में मांग कम होने से गोदामों में माल इक्ट्ठा हो गया था, जिस कारण पेंट कंपनियों ने उत्पादन घटाने का फैसला किया था। कई पेंट कंपनियों ने अपनी विस्तार परियोजनाएं फिलहाल के लिए टाल दी हैं।
जबकि क ई कंपनियां तैयार माल को दूसरे देशों में निर्यात करने की योजना बना रही हैं। लेकिन जिन कंपनियों ने हाई एंड पेंट उत्पाद बनाए उन्हें खरीदारों के लिए तरसना पड़ रहा है। मंदी के कारण अब लोग इन सब चीजों पर ज्यादा खर्च करने से बच रहे हैं।
कई साल पहले तक किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की बढ़ती विकास दर का पता उस देश के पेंट उद्योग क ी हालत देखकर ही लगाया जाता था।
जब अर्थव्यवस्था में तेजी आती है तो घर, गाड़ी की मांग भी बढ़ती है। लेकिन अगर अर्थव्यवस्था की हालत खराब हो तो घरों और कारों की मांग में भी कमी आती है।
देश में पेंट कारोबार सालाना 11,500 करोड़ रुपये का है। इसमें दो श्रेणियां हैं- पहली डेकोरेटिव (घरों और व्यावसायिक परिसरों के लिए) और औद्योगिक इस्तेमाल के लिए।
मंदी की मार के कारण डेकोरेटिव पेंट की बिक्री में 3 फीसदी की गिरावट आई है। पिछले साल कुछ पेंट की बिक्री में से डेकोरेटिव पेंट की बिक्री की हिस्सेदारी 18 फीसदी थी, जो इस साल घटकर 15 फीसदी हो गई है।