कजाक के तेल में ओवीएल को बड़ा हिस्सा!

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 09, 2022 | 9:23 PM IST

तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) की विदेशों में निवेश करने वाली कंपनी ओवीएल को कैस्पियन सागर में कजाकिस्तान के सतपायेव तेल क्षेत्र में 30-40 फीसदी हिस्सेदारी मिल सकती है।


ओवीएल इसके लिए इसी महीने करार पर हस्ताक्षर करेगी। यह करार कजाखस्तान के राष्ट्रपति नूरसुल्तान नजरबायेव की भारत यात्रा के दौरान किया जाएगा। इस साल गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के तौर पर कजाकिस्तान के राष्ट्रपति भारत आ रहे हैं।

पेट्रोलियम मंत्रालय के सचिव आर एस पांडेय और ओवीएल के प्रबंध निदेशक आर एस बुटोला इस करार पर बात करने के लिए ही उस्ताना गए हुए हैं।

पिछले तीन साल से इस करार को टाला जा रहा है। इसकी वजह है कि कजाखस्तान हर बार ओएनजीसी को हिस्सेदारी देने की बात पर पीछे हट जाता है।

अभी यह बात साफ नहीं है कि इस बार कजाकिस्तान ओवीएल को हिस्सेदारी देने के लिए मान गया है या फिर यह ओवीएल सिर्फ उत्खनन के काम के  लिए इस करार पर हस्ताक्षर करेगी। अगर यह करार सिर्फ उत्खनन के लिए है तो ओवीएल को इसके लिए निश्चित रकम ही मिलेगी।

ओएनजीसी के अधिकारी ने बताया, ‘हमें देखना होगा कि अस्ताना में दोनों कंपनियों के अधिकारियों के बीच चल रही बातचीत क्या रंग लाती है।’ कजाखस्तान ने शुरुआत में सतपायेव और अखमबेत तेल क्षेत्र में ही ओवीएल को 50 फीसदी हिस्सेदारी देने की बात कही थी।

लेकिन बाद में कजाखस्तान ने यह हिस्सेदारी घटाकर 25 फीसदी हिस्सेदारी देने की बात भी कही थी। इसके अलावा एक शर्त यह भी रखी थी कि कंपनी को यह हिस्सेदारी इस्पात दिग्गज लक्ष्मी मित्तल के साथ मिलकर काम करने पर ही मिलेगी।

ओवीएल ने यह दोनों ही शरतॅ मानने से इनकार कर दिया था। लेकिन जून 2007 में ओवीएल ने कजमुनाईगैस (केएमजी) को एक और ऑफर दिया था। लेकिन इसके बाद भी केएमजी और ओवीएल में हिस्सेदारी पर बात नहीं बन पाई थी।

इसके अलावा केएमजी उत्खनन चरण के लिए ओवीएल को परिचालन की जिम्मेदारी देने पर सहमत नहीं हुई थी। लेकिन केएमजी के नए फैसले के बाद इन तेल क्षेत्रो में ओवीएल के अलावा बाकी हिस्सेदारी केएमजी की होगी।

उद्योग सूत्रों के अनुसार कजाकिस्तान के संसद में 2008 में नया टैक्स कोड लाने पर बहस शुरू की थी। तब कजाखस्तान सरकार ने यह फैसला किया था कि किसी भी कंपनी के साथ उत्पादन बांटने संबंधित करार नहीं करेगी। अब से कंपनियों के साथ सिर्फ उत्खनन संबंधी करार ही किए जाएंगे।

अगर किसी ऐसे तेल क्षेत्र की खोज की जाती है जिससे व्यावसायिक उत्पादन किया जा सके। तब करार करने वाले के पास उत्पाद बांटने संबंधी करार के लिए सहयोगी चुनने का हक होगा।

एक उत्खान करार से देश के ऊर्जा संरक्षण करने करने का उद्देश्य बेमानी हो जाएगा। क्योंकि भारतीय सरकार आयात घटाकर अपनी तेल परिसंपत्ति को बढ़ाना चाहती है और इसके लिए सरकार ओवीएल पर निर्भर है।

First Published : January 12, 2009 | 11:31 PM IST