गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) बैंक में तब्दील होने की अपनी महत्त्वाकांक्षा को अमली जामा पहनाने की कवायद तेज करने में जुट गई हैं। एक सप्ताह पहले भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के एक आंतरिक कार्य समूह ने सुझाव दिया था कि 50,000 करोड़ रुपये से अधिक परिसंपत्त आकार वाली कंपनियां बैंकों में तब्दील होने पर विचार कर सकती हैं। समूह के इस सुझाव के बाद एनबीएफसी हरकत में आ गई हैं।
एनबीएफसी कारोबार करने वाले चार बड़े समूहों ने आंतरिक स्तर पर विस्तृत विचार-विमर्श किया है और वे जल्द ही बैंकिंग नियामक के समक्ष पहुंच सकते हैं। सूत्रों का कहना है कि अगले एक पखवाड़े के भीतर ये समूह आरबीआई से संपर्क साध सकते हैं। ये समूह दिसंबर में अपने नेट डिमांड ऐंड टाइम लाइबिलिटीज (एनडीटीएल) से संबंधित नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) और सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) नियमों में रियायत की मांग कर सकते हैं।
उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार ये एनबीएफसी अपने मौजूदा एनडीटीएल पर सीआरआर और एसएलआर से जुड़ी शर्तों में छूूट मांगने की योजना बना रही हैं। इन एनबीएफसी की यह भी मांग है कि बैंक में तब्दील होने के बाद नई देनदारियों पर ये शर्तें लागू होनी चाहिए। अगर आरबीआई इसकी इजाजत देता है तो एचडीएफसी लिमिटेड, बजाज फाइनैंस, टाटा कैपिटल, श्रीराम कैपिटल और महिंद्रा ऐंड महिंद्रा फाइनैंशियल सर्विसेस को लाभ मिल सकता है।
हालांकि एनबीएफसी फिलहाल इस पूरे मामले पर कुछ कहने से गुरेज कर रही हैं। एचडीएफसी लिमिटेड के उपाध्यक्ष एवं मुख्य कार्याधिकारी केकी मिस्त्री ने आरबीआई के समक्ष ऐसी कोई पहल करने की बात से इनकार किया है, वहीं दूसरी एनबीएफसी ने इस विषय पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार बैंकों को अपने एनडीटीएल का 3 प्रतिशत सीआरआर और 18.5 प्रतिशत एसएलआर में रखना जरूरी होता है। एनबीएएफसी की मांग है कि अगर उन्हें इन शर्तों से रियायत मिलती है तो बैंकों में तब्दील होने पर बड़ी राहत मिलेगी।
आरबीआई ने कुछ मामलों में आरक्षी शर्तों में छूट का अनुरोध स्वीकार किया है, लेकिन कई बार ऐसी मांग ठुकरा भी दी है। उदाहरण के तौर पर आरबीआई ने आईसीआईसीआई-आईसीआईसीआई बैंक (2002) और आईडीबीआई-आईडीबीआई बैंक (2005) के विलय में कुछ शर्तों में ढील दी थी। बैंकर ने कहा, ‘जब आईडीएफसी अपने बैंकिंग कारोबार से अलग हुआ या बंधन सूक्ष्म वित्त संस्थान (एमएफआई) से बैंक में तब्दील हो गया तो उन्हें आरबीआई से कोई रियायत नहीं मिली थी।’ एक अहम बात यह है कि नरसिम्हन समिति की रिपोर्ट (1988) में की गई सिफारिशों के बाद जब पूर्व विकास वित्त संस्थान सार्वजनिक इकाइयों का अधिग्रहण कर (रिवर्स मर्जर) बैंक में तब्दील हुए थे। इसके बाद उसी वर्ष एस एच खान समिति की रिपोर्ट आई थी।
