नैनो को मिला वर्ल्डवॉच का सहारा

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 7:06 PM IST

टाटा मोटर्स की लखटकिया कार पर लगातार वैश्विक पर्यावरण समूहों की ओर से डाले जा रहे दबाव से नैनो को कुछ राहत जरूर मिली है।


आखिरकार एक पर्यावरण समूह-वर्ल्डवॉच ने कार का स्टेयरिंग थामते हुए गाड़ी को गति दी।इस संस्थान से जुड़े एक शोधार्थी ने वैश्विक पर्यावरण समूहों पर करारी चोट करते हुए उनसे पूछा है कि वे क्यूं टोयोटा प्रियस जैसे वाहन को आदर्श मानकर और नैनो की निंदा कर दोहरे मापदंड अपना रहे हैं।


प्रियस एक गैलन में 46 मील चलती है और उसमें खूबसूरत एक्सेसरीज का इस्तेमाल किया गया है और दसके दो इंजनों की क्षमता मिलाकर 145 हॉर्सपावर है। बावजूद इसके कार पर्यावरण समूहों के दिल का टुकड़ा है।नैनो से अगर इसकी तुलना की जाए तो नैनो एक गैलन में 54 मील चलती है और उसकी इंजन क्षमता 30 हार्सपावर है।


वर्ल्डवॉच के वरिष्ठ शोधार्थी मिशेल रेन्नर का कहना है जब प्रियस पर्यावरण सजग लोगों को प्रिय हो सकती है तो फिर आम लोगों की कार को वे लोग कैसे पर्यावरण प्रतिकूल मान सकते हैं।जब सभी पर्यावरण सजग लोग नैनो को पर्यावरण के खिलाफ साबित करने में लगे हुए हैं, ऐसे में रेन्नर ने नैनो के लिए रोशनी की एक किरण दिखाई है।


रेन्नर का कहना है कि भारत के कई शरहों में रहने वाले लोग सल्फर और नाइट्रोजन ऑक्साइड, जीवननाशक धुएं से रोज रू-ब-रू होते हैं, जो पुरानी मोटर गाड़ियों में से निकलता है। ऐसे में नैनो के लीनर इंजन और उससे निकलने वाला धुआं अन्य प्रदूषण फैलाने वाली मोटरसइकिलों ऑटो रिक्शा और डीजल बसों की तुलना में तो कम प्रदूषण होगा।


नैनो के आलोचकों में सेन्टर फॉर सोशन मार्केट्स की संस्थापक, मालिनी मेहरा और विज्ञान और पर्यावरण केन्द्र की प्रमुख सुनिता नारायण भी शामिल हैं। सुनिता नारायण ने कहा कि दिल्ली में निजी मोटर वाहन सिर्फ 20 प्रतिशत लोगों को ही परिवहन की सुविधा मुहैया करवाते हैं, टाटा को चाहिए कि वे सार्वजनिक परिवहन के लिए समाधान ढूंढ़ने चाहिए।


रेन्नर के अनुसार यह मामला तकनीक से कहीं अधिक है : इसमें जरूरी है कि जो ग्राहक बिना जरूरत के बड़ी या अधिक ताकत वाले वाहन खरीदते हैं, उनकी पसंद पर प्रश्नचिह्न लगाया जाए, साथ ही तेल और ऑटों कंपनियों का विरोध भी करना चाहिए जो यथापूर्व स्थिति से बड़ा मुनाफा कमाना चाहते हैं।


रेन्नर नैनो को एक जेब के अनुकूल परिवहन मानते हैं, जो लाखों यहां तक की करोड़ों के द्वारा भारत और अन्य विकाससशील देशों में अपनाई जा सकती है और इतनी बड़ी संख्या में बिक्री के बाद विनाशकारी जलवायु परिवर्तनों पर निगरानी करने वाले प्रयासों में रुकावट पैदा होगी।नैनो ने पश्चिम में कइयों को परेशान किया है, यही कारण है कि जर्मनी के साप्ताहिक डेर स्पीगल में नैनो को ‘पर्यावरण विनाशकारी’ कहा गया है।


किसी भी आर्थिक क्षेत्र में चूंकि मोटर वाहनों की संख्या (दुनियाभर की सड़कों पर लगभग 60 करोड़ यात्रि कारें दौड़ रही हैं) में इजाफा हो रहा है, इसलिए परिवहन को कार्बन की मात्रा बढ़ने के पीछे एक बड़ी वजह माना जा रहा है।


पश्चिमी देशों और जापान के लोग, पूरी दुनिया की कुल 15 प्रतिशत जनसंख्या बनाते हैं और उनके पास कुल यात्री और व्यावसायिक मोटर वाहनों के लगभग एक-तिहाई वाहन हैं। भारत और चीन विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग एक-तिहाई हिस्सा है और उनके पास कुल वाहनों में से सिर्फ 5 प्रतिशत ही हैं।

First Published : April 5, 2008 | 12:51 AM IST