पीवीआर को उम्मीद है कि जनवरी-मार्च की तिमाही में उसके थियेटर पूरी तरह से भरे होंगे क्योंंकि कई बड़ी फिल्में रिलीज होने वाली हैं और सिनेमा प्रेमी कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बाद अपने घरों से बाहर निकलेंगे।
अगले कुछ महीनों में रिलीज होने वाली फिल्मों में सत्यमेव जयते-2, अंतिम : द फाइनल ट्रुथ, 83, जर्सी, गंगूबाई कठियावाड़ी आदि शामिल हैं।
पीवीआर के सीईओ गौतम दत्ता ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, अभी हमारी करीब 40 फीसदी सीटें भरी होती हैं लेकिन सूर्यवंशी फिल्म के प्रदर्शन के दौरान ज्यादा सीटें भरी हुई थीं।
कंपनी अभी गेमिंग के साथ प्रयोग कर रही है और उसे अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। दत्ता ने कहा, आप काफी कुछ होता हुआ देखेंगे और यह अपनी स्क्रीन पर वैकल्पिक सामग्री लाने की हमारी बड़ी योजना का हिस्सा है। उन्होंंने कहा कि गेमिंग, विश्व कप व आईपीएल के मैचों का प्रदर्शन वैकल्पिक सामग्री के तौर पर आ सकता है।
पीवीआर ने यूएफओ मूवीज के साथ साझेदारी की है, जो सिनेमा विशेष के लिए एयर स्टरलाइजेशन डिवाइस लगाने के लिए है, जिसे यूएफओ-वॉल्फ एयरमास्क कहा जाता है ताकि वहां आने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित हो। यह वास्तविक समय पर एयर स्टरलाइजेशन मुहैया कराता है, जो हवा व जमीन पर मौजूद हर तरह के नुकसानदायक बैक्टीरिया, वायरस और माइक्रोब्स से सुरक्षा देता है।
यूएफओ-वॉल्फ एयरमास्क की टेस्टिंग राजीव गांधी सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी, त्रिवेंद्रम में सार्स कोविड-2 वायरस पर सफलतापूर्वक हो चुकी है।
यूएफओ मूवीज का जुड़ाव कोच्चि के बाहर की टेक्नोलॉजी फर्म ऑलअबाउट इनोवेशन के साथ भी है, जो भारत में उसके उत्पादों के वितरण (एक्सक्लूसिव आधार पर) के लिए है। कंपनी ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, राष्ट्रीय स्तर पर सिनेमा हॉल खुल गए हैं और विभिन्न राज्यों ने क्षमता पर लगाई पाबंदी हटा दी है और अन्य राज्य भी जल्द ही ऐसा करेंगे। इसमेंं कहा गया है कि महामारी के लिहाज से देश अभी बेहतर स्थिति में है और सिनेमा प्रेमी बड़ी स्क्रीन पर सिनेमा देखने आने लगे हैं।
दत्ता ने विज्ञप्ति में कहा, जिम्मेदार संगठन होने के नाते अपने मेहमानों व कर्मचारियों को लेकर हम स्वास्थ्य व सुरक्षा से जुड़े प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन कर रहे हैं। हम यूएफओ मूवीज के साथ साझेदारी की घोषणा करते हुए खुशी महसूस कर रहे हैं।
यूएफओ मूवीज इंडिया के संयुक्त प्रबंध निदेशक कपिल अग्रवाल ने कहा, कोविड महामारी ने सिनेमा देखने के अनुभव में अवरोध खड़ा किया और थियेटरों के लिए सबसे बड़ी चुनौती पुराने दिनों की फिर से लौटने की है।
