दू रसंचार ऑपरेटरों के संगठन सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) ने सरकार से स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि उनके लिए 5जी नेटवर्क शुरू करने का कोई कारण नहीं दिख रहा है। उनका कहना है कि यदि कंपनियों द्वारा स्वतंत्र रूप से ‘कैप्टिव प्रावेट वायरलेस नेटवर्क्स’ के संचालन की अनुमति दी जाती है तो यह उनके लिए व्यवहार्य नहीं होगा।
सीओएआई के प्रमुख सदस्यों में भारती एयरटेल, रिलायंस जियो और वोडाफोन आइडिया शामिल हैं। सीओएआई ने कल शाम संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव को एक पत्र लिखकर स्पष्ट तौर पर कहा कि इस प्रकार के कैप्टिव नेटवर्क की अनुमति दी जाती है तो 5जी नेटवर्क का परिचालन उनके लिए व्यवहार्य नहीं होगा। इससे उन्हें राजस्व का नुकसान होगा और दूरसंचार सेवा प्रदाताओं के लिए उसमें कोई कारोबारी संभावना नहीं बचेगी। ऐसे में दूरसंचार सेवा प्रदाताओं द्वारा 5जी नेटवर्क के परिचालन की कोई जरूरत नहीं होगी।
दूरसंचार कंपनियों के इस कड़े रुख से इस साल के अंत तक देश में 5जी नेटवर्क के परिचालन संबंधी सरकार की योजना बुरी तरह प्रभावित हो सकती है अथवा उसमें देरी हो सकती है। ऐसे में सरकार 5जी स्पेक्ट्रक की नीलामी संबंधी अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर हो सकती है। हालांकि अधिकतर लोगों का कहना है कि उनके पूरी तरह से नीलामी में भाग लेने से हटने की संभावना नहीं है।
दूरसंचार ऑपरेटरों ने ऐसी आशंकाएं जताई जाने के बाद कड़ी प्रतिक्रिया देने का निर्णय लिया है कि दूरसंचार विभाग नियामक की सिफारिश के अनुरूप एंटरप्राइजेज द्वारा परिचालित कैप्टिव प्राइवेट वायरलेस नेटवर्क की अनुमति के साथ कैबिनेट की मंजूरी हासिल करने के लिए दस्तावेज तैयार कर रहा है। यदि ऐसा हुआ तो यह एक बड़ा झटका होगा क्योंकि डीसीसी ने 18 अप्रैल को 5जी स्पेक्ट्रम मूल्य पर अपनी अंतिम बैठक में इसे खारिज कर दिया था।
हालांकि टाटा कम्युनिकेशंस, आईटीसी और ब्रॉडबैंड इंडिया फोरम, जिसकी सदस्य गूगल एवं फेसबुक जैसी प्रमुख कंपनियां हैं, ने भी ऐसे नेटवर्क के लिए मंजूरी की मांग कर रही हैं। टाटा कंपनी दूरसंचार नियामक ट्राई को पहले ही लिख चुकी है कि 6 गीगाहर्ट्ज (कम से कम 100 मेगाहर्ट्ज) से निचले बैंड और मिलीमीटर बैंड (कम से कम 400 मेगाहटर्ज) को मामूली शुल्क पर निजी नेटवर्क के लिए आरक्षित रखा जाना चाहिए। उनका कहना है कि वैश्विक स्तर पर ब्रिटेन, जर्मनी, ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में इंडस्ट्री 4.0 को बढ़ावा देने के लिए ऐसा किया जा रहा है। आईटीसी ने भी कहा है कि दूरसंचार कंपनियों से भारी शुल्क वसूलना चाहिए क्योंकि लाइसेंस के कारण एक खास क्षेत्र में उनका एकाधिकार है।
सरकार में उच्चतम स्तर पर आम सोच दूरसंचार नियामक की सिफारिशों के अनुरूप है। पहला यह कि कंपनियों को अपने निजी दूरसंचार नेटवर्क के संचालन की अनुमति दी जानी चाहिए और एक प्रशासित मूल्य पर सीधे दूरसंचार विभाग से स्पेक्ट्रम का आवंटन हासिल करना चाहिए। दूसरा, उन्हें दूरसंचार कंपनियों से पट्टे पर स्पेक्ट्रम हासिल कर अपना नेटवर्क संचालित करने का विकल्प भी दिया जाना चाहिए। डीसीसी ने इन दोनों सिफारिशों को पहले ही खारिज कर दिया है और केवल टीएसपी को दूरसंचार स्पेक्ट्रम के उपयोग के साथ कंपनियों के लिए कैप्टिव नेटवर्क स्थापित करने की अनुमति दी थी।