पुणे के रहने वाले गिरीश रानाडे (बदला हुआ नाम) को रेड लाइट पार करते हुए पकड़ा गया। पूछताछ करने पर वे उन्होंने अपना ड्राइविंग लाइसेंस निकाल लिया और वे मानसिक रूप से भी जुर्माना भरने को तैयार हो गए।
उन्हें तब एक दम झटका सा लगा, जब ट्रैफिक पुलिस अधिकारी ने उन्हें बताया कि उनका ड्राइविंग लाइसेंस जब्द किया जाएगा, क्योंकि वे लगातार ऐसी हरकतें करते आए हैं। गिरीश ने उनकी इस बात से इनकार किया। बिना आनकानी किए ट्रैफिक पुलिस वाले ने अपना ब्लैकबेरी निकाला और गिरीश को उसे पुराने सभी जुर्मों की एक फेहरिस्त दिखा दी।
इस बात को मानने के लिए गिरीश बिल्कुल तैयार नहीं थे, लेकिन वह थोड़ा बेचैन थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि पुलिस वाले को यह सब कैसे मालूम चल गया। यह काफी आसान है। ट्रैफिक पुलिस वाले ने गिरीश का लाइसेंस नंबर अपने ब्लैकबेरी की स्क्रीन पर दी गई नंबर के लिए ही विशेष जगह में टाइप किया।
उसके बाद ब्लैकबेरी फोन मुख्य सर्वर से जुड़ गया और अधिकारी को इस वाहन से जुड़े नियमों को तोड़ने की हर पुराने जानकारी हासिल हो गई। लाइसेंस नंबर न सही, वाहन का पंजीकरण नंबर भी टाइप करने पर बिल्कुल ऐसी ही जानकारी हासिल होगी।
पुणे में ट्रैफिक के नियमों को ताक पर रखने वालों के रूप में गिरीश मात्र एक उदाहरण भर है। पुलिस विभाग ने शहर में अपनी नगर पालिका और पिम्परी-छिंछवाड में अपने सहायक उपनिरीक्षक (एएसपी) और उससे ऊंचे पद के अधिकारियों को ब्लैकबेरी फोन देने का निर्णय लिया है।
ये ब्लैकबेरी विभाग के मुख्य सर्वर से कनेक्ट हो जाते हैं। इस तरह संपर्क में बने रहने से, ट्रैफिक पुलिस शहर में पंजीकृत किसी भी वाहन की पूरी जानकारी हासिल कर सकता है। इस कदम के पीछे विभाग का उद्देश्य ट्रैफिक नियमों को सख्ती से लागू करना और डयूटी पर तैनात अधिकारियों को बढ़िया और उन्नत उपकरणों से लैस करना है।
पुलिस उपायुक्त ट्रैफिक मनोज पाटिल ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘हमने ब्लैबबेरी को क्यूडब्ल्यूईआरटीवाई कीबोर्ड की वजह से चुना है। यह प्रणाली जीपीआरएस सेवा के जरिये काम करती है। कोई भी अधिकारी अपने फोन पर ही डैटा देख सकता है।
मौजूदा समय में, जब वह किसी दोषी को पकड़ता है, तो उसके पास वाहन या उसके मालिक से जुड़ी पुरानी कोई जानकारी नहीं होती, जिससे उन्हें मुश्किल होती है। एक बार चार महीनों में जब ब्लैकबेरी सिस्टम पूरी तरह से लागू हो जाएगा, तब स्थिति काफी बेहतर हो जाएगी।’
लगभग 100 उपकरणों के लिए विभाग लगभग 40 लाख रुपये खर्च करेगा, जिन पर ट्रैफिक पुलिस की मुहर लगेगी। अभी तक मिलने वाले कागजी चालान की जगह इलेक्ट्रॉनिक चालान ले लेगा, जिसे घटना के मौके पर ही ट्रैफिक पुलिस वाले वाहन के नाम पर जारी करेंगे। और इसकी पूरी जानकारी मुख्य सर्वर में दर्ज रहेगी।
अगली बार जब वाहन का नंबर टाइप किया जाएगा, तो खुद-ब-खुद पुराना रिकॉर्ड भी ब्लैकबेरी की स्क्रीन पर दिखाई देने लगेगा। इसके अलावा इसमें परमिट की जानकारी, संदिग्ध व्यक्तियों की फेहरिस्त, बार-बार नियमों को तोड़ने वालों की सूची, चुराए गए वाहनों के नंबर आदि भी दर्ज रहेंगे, जिन्हें एक बटन दबाते ही देखा जा सकेगा।
पुलिस उपायुक्त पाटिल का कहना है, ‘इस उपकरण में कई तरह के डैटा संभाले जा सकते हैं, जिससे काफी समय और मानवश्रम की बचत होगी।’ पुणे विश्वविद्यालय और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की एक संस्था विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पार्क इस प्रणाली को तैयार करने में ट्रैफिक विभाग की मदद कर रहे हैं।