छठे वेतन आयोग के चेयरमैन न्यायमूर्ति बीएन श्रीकृष्ण ने वेतन वृद्धि की सिफारिश को सही ठहराया है। साथ ही यह भी कहा कि इसमें किसी खास वर्ग को खुश करने का प्रयास नहीं किया गया है।
गौरतलब है कि सोमवार को श्रीकृष्ण ने छठे वेतन आयोग की रिपोर्ट वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को सौंपी। छठे वेतन आयोग के बारे में सिद्धार्थ जराबी ने श्रीकृष्ण से पूछे कुछ सवाल :
कुछ लोगों का मानना है कि सभी श्रेणी के कर्मचारियों के बजाए उच्च स्तर के पदाधिकारियों को ध्यान में रखकर छठे वेतन आयोग में सिफारिश की गई है। क्या आप इससे सहमत हैं?
नहीं, यह सच नहीं है। वेतन आयोग में प्रवेश स्तर के कर्मचारियों के वेतन में काफी वृद्धि की सिफारिश की गई है। पहले यह वेतन जहां 2,550 रुपये थी, वहीं अब यह बढ़कर 6,600 रुपये हो जाएगा। यानी वेतन में करीब 160 फीसदी की वृद्धि की बात कही गई है। हमने सभी वर्ग के कर्मचारियों के वेतन को पुन: संशोधित किया गया है। सच कहा जाए, तो पिछले वेतन आयोग की तुलना में इस बार तकरीबन 40 फीसदी से ज्यादा की वेतन वृद्धि की सिफारिश की गई है।
कुछ अधिकारियों, खासकर निदेशक स्तर के अधिकारियों का कहना है कि आप कुछ ज्यादा ही अनुदार हैं?
सभी का वेतन बढ़ाया गया है।
2004 में महंगाई भत्ते (डीए) में की गई वृद्धि को आप किस रूप में देखते हैं?
अगर आप 2004 में किए गए महंगाई भत्ते में 12 फीसदी की वृद्धि को इसमें शामिल कर लें, तो प्रभावी वृद्धि 28 फीसदी की हो जाएगी।
मिलिट्री सर्विस पे लागू करने की सिफारिश के पीछे क्या तर्क है?
हिमालय की ऊंची चोटियों पर देश की सीमा की रखवाली करने वाले सैनिकों को मैं देखने गया था। वे जमा देने वाली ठंड और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने कर्तव्यों का पालन पूरी मुस्तैदी के साथ करते हैं। ऐसे में उन्हें उन लोगों से कुछ ज्यादा मिलना चाहिए, जो कार्यालय में कुर्सी-टेबल पर बैठकर कर काम करते हैं।
आपने कर्मचारियों को मिलने वाली छुट्टियों में कटौती की बात की है। क्या आपको लगता है कि लोग इसका विरोध करेंगे?
सच है, हमने छुट्टियों में कटौती की बात की है और संभव है इसका विरोध भी हो सकता है। वर्तमान में 14 सरकारी छुट्टियां घोषित हैं, जिन्हें मैं कम करने के पक्ष में हूं। दरअसल, समय आ गया है कि इस बारे में व्यावहारिक ढंग से विचार किया जाए। आखिर, हम नंबर एक देश बनने जा रहे हैं, ऐसे में कुछ त्याग तो करना ही पड़ेगा। मैं इस बात का खास उल्लेख करना चाहूंगा कि वेतन आयोग का अर्थ केवल उदातरता बरतना ही नहीं है।
प्रदर्शन आधारित वेतनमान के बारे में आपकी क्या सोच है?
हमने वेतन में 2.5 फीसदी की सालाना वृद्धि की सिफारिश की है, जिसमें महंगाई भत्ता भी शामिल है। साथ ही श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वालों के वेतन में 3.5 फीसदी सालाना वृद्धि की सिफारिश की गई है। सच पूछा जाए तो सरकारी तंत्र में कार्य करने का अंदाज बिल्कुल अलग है। ऐसे में प्रदर्शन की परख के लिए सामान मानदंड कायम करना उचित नहीं होगा। यही वजह है कि हमने यह काम सरकार के ऊपर छोड़ दिया है कि वे ही प्रदर्शन मानदंड तय करें।
आपकी ओर से प्रस्तावित और कौन-कौन से सुझाव हैं?
हमने अतार्किक चीजों को दूर करने का सुझाव दिया है। मसलन-शिक्षा भत्ता के तौर पर मिलने वाला 50 रुपया या फिर परिवहन भत्ता के रूप में 300 रुपया मिलना या फिर 150 रुपया यात्रा भत्ता देना। सच तो यह है कि आज के समय में यह किसी भी दृष्टि से तर्कसंगत नहीं है।
बाहरी विशेषज्ञों के लिए मार्केट लिंक्ड सैलरी की सिफारिश की है। इसके पीछे क्या तर्क है?
हमने सभी उच्च पदों को सभी सेवाओं के लोगों के लिए खोलने की बता कही है। दरअसल, लोगों की यह शिकायत है कि सभी उच्च पदों पर भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारियों का कब्जा रहता है। ऐसे में हमने इस बात की सिफारिश की है कि सभी सेवाओं के लोगों को समान अवसर उपलब्ध कराए जाएं। इसके साथ ही हमने यह सुझाव भी दिया है कि सरकार विशेषज्ञों को रखते समय आपसी सहमति से वेतन तय कर सकती है या फिर उन्हें मार्केट आधारित वेतन दे सकती है।
केंद्रीय राजस्व पर इन सिफारिशों का क्या असर पड़ेगा?
मेरे हिसाब से इसका व्यापक प्रभाव नहीं पड़ेगा। सकल घरेलू उत्पाद की बात करें, तो इन सिफारिशों से जीडीपी पर 0.5 फीसदी का भार पड़ेगा। हमने रिपोर्ट सौंपने से पहले इस पर काफी काम किया है।
क्या इस रिपोर्ट को लेकर आयोग के सदस्यों में कोई विवाद हुआ?
नहीं, आयोग के सभी सदस्य (रवींद्र ढोलकिया, जेएस माथुर और सुषमा नाथ) सभी इस रिपोर्ट से सहमत हैं।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, न्यूनतम और अधिकतम वेतन का अनुपात 1:12 है, जो पिछले वेतन आयोग की सिफारिशों से कहीं ज्यादा है?
सच तो यह है कि हमने अनुपात पर ध्यान नहीं दिया है, बल्कि सभी वर्ग के कर्मचारियों के वेतन वृद्धि को ध्यान में रखा है।