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खास बाजारों तक ‘पहुंच’ तलाश रहीं भारतीय फर्में, विदेश में निवेश की बढ़ रही रुचि

पिछले साल गिरावट के बाद भारत में विलय और अधिग्रहण में 13.8 प्रतिशत का इजाफा हुआ और साल 2024 के पहले नौ महीनों के दौरान यह बढ़कर कुल 69.2 अरब डॉलर का हो गया।

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देव चटर्जी   
Last Updated- October 13, 2024 | 9:42 PM IST

विदेश कंपनियों का अधिग्रहण करने वाली भारतीय कंपनियां मुख्य रूप से विशिष्ट बाजारों तक ‘पहुंच’ हासिल करना या अपनी प्रतिस्पर्धी क्षमता बढ़ाने के लिए जरूरी प्रौद्योगिकी और बौद्धिक संपदा हासिल करना चाह रही हैं। जेएम फाइनैंशियल की निवेश बैंकिंग की प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्य अधिकारी (CEO) सोनिया दासगुप्ता ने यह जानकारी दी।

दासगुप्ता ने विशेष बातचीत में कहा कि भारतीय कंपनियों की विदेश में निवेश में रुचि बढ़ रही है और वे अनुकूल मूल्यांकन पर अधिग्रहण के लिए सक्रिय प्रयास कर रही हैं।

दासगुप्ता ने कहा कि भारतीय विलय और अधिग्रहण (एमऐंडए) बाजार के आगे भी तेजी की राह पर बढ़ते रहने की उम्मीद है। इसे व्यापक आर्थिक कारकों, दमदार कॉर्पोरेट बैलेंस शीट, पर्याप्त निजी इक्विटी फंडों और अनुकूल नियामकीय वातावरण से बढ़ावा मिलेगा।

उन्होंने कहा कि भारत के हलचल भरे पूंजी बाजारों ने भी एमऐंडए की गतिविधियां बरकरार रखने में अहम भूमिका निभाई है क्योंकि तेजी के बाजार के दौरान अधिग्रहण के लिए इक्विटी फाइनैंसिंग ज्यादा सुलभ होती है।

पिछले साल गिरावट के बाद भारत में विलय और अधिग्रहण में 13.8 प्रतिशत का इजाफा हुआ और साल 2024 के पहले नौ महीनों के दौरान यह बढ़कर कुल 69.2 अरब डॉलर का हो गया। साल 2023 में इस दौरान यह आंकड़ा 60.8 अरब डॉलर था।

भारती एयरटेल द्वारा 4.08 अरब डॉलर में बीटी समूह में हिस्सेदारी का अधिग्रहण इस साल के एमऐंडए सौदों में अब तक शीर्ष स्थान पर रहा। उन्होंने कहा कि यह रुझान जारी रहने की उम्मीद है क्योंकि कंपनियां विशिष्ट बाजार या प्रौद्योगिकी हासिल करने के लिए छोटे आकार के सौदों पर विचार कर रही हैं।

भारतीय समूह अपने मुख्य परिचालन पर ज्यादा ध्यान केंद्रित कर रहे हैं जिससे संपत्ति की और ज्यादा बिक्री तथा तेजी से निकासी हो रही है।

उन्होंने कहा, ‘भारत की वृद्धि की रफ्तार के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए कंपनियों को दक्षता बढ़ाने के लिए डिजिटल तकनीकों को अपनाना, अनुसंधान और विकास में निवेश करना, प्रतिभा जुटाना और विकास को प्राथमिकता देना तथा प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए रणनीतिक साझेदारी करनी होगी। उन्हें कुल संभावित बाजार (टीएएम) में बदलाव का भी अनुमान लगाना चाहिए और यह तय करना चाहिए कि प्रतिभा, प्रौद्योगिकी या पूंजी आंतरिक स्रोत से विकसित करनी है या अधिग्रहण करना है।’

दासगुप्ता ने इस बात पर जोर दिया कि वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के बावजूद भारत की विलय और अधिग्रहण की मांग मजबूत बनी हुई है। भारत के बड़े उपभोक्ता आधार, अनुकूल जनसांख्यिकी और सरकारी पहलों से आकर्षित होकर निवेशक सक्रिय रूप से विकास के अवसर तलाश कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि डिजिटल अर्थव्यवस्था और स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करने से प्रौद्योगिकी और अक्षय ऊर्जा क्षेत्रों में विलय और अधिग्रहण को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। स्वास्थ्य देखभाल, फार्मास्युटिकल, औद्योगिक, नए जमाने की प्रौद्योगिकी और वित्तीय सेवाओं में दमदार सौदे होंगे।

विलय और अधिग्रहण के मूल्यांकन अक्सर दीर्घकालिक नजरिए को दर्शाते हैं जिसमें तालमेल और नियंत्रण प्रीमियम जैसे विभिन्न कारक मूल्य निर्धारण पर असर डालते हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि सूचीबद्ध कंपनी का मूल्यांकन विक्रेताओं की अपेक्षाओं और खरीदारों की क्षमताओं को प्रभावित करता है।

First Published : October 13, 2024 | 9:42 PM IST