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यदि आपके घर-परिवार का कोई सदस्य किसी आईटी कंपनी में काम करता है, तो आप मानसिक रूप से उसके हर हफ्ते घंटों काम करने को लेकर तैयार हो जाएं। देश की जानी-मानी कंपनियों के प्रमुख अब प्रोफेशनल्स के हर हफ्ते काम के घंटे बढ़ाने की वकालत कर रहे हैं। कॉर्पोरेट वर्ल्ड के दिग्गजों के लगातार आते ये बयान बता रहे हैं कि अब कंपनियां अपने कर्मचारियों से हर हफ्ते लंबे समय तक काम करने की अपेक्षा रखती है। इसी क्रम में सूचना प्रौद्योगिकी सेवा कंपनी (IT Service company) कैपजेमिनी (Capgemini) इंडिया के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (CEO) अश्विन यार्डी ने मंगलवार को प्रति सप्ताह 47.5 घंटे काम करने की वकालत की।
Capgemini CEO ने नैसकॉम टेक्नोलॉजी एंड लीडरशिप फोरम (एनटीएलएफ) में कहा, ‘‘साढ़े सैंतालीस घंटे हमारे यहां काम की अवधि प्रतिदिन करीब नौ घंटे और सप्ताह में पांच दिन है।’’ एक कर्मचारी ने यार्डी से पूछा था कि आदर्श रूप से प्रति सप्ताह कितना काम करना चाहिए। इसके जवाब में उन्होंने उक्त बात कही।
गौरतलब है कि आईटी उद्योग के दिग्गज और इन्फोसिस के सह-संस्थापक एन आर नारायण मूर्ति 70 घंटे के कार्य सप्ताह की वकालत कर रहे हैं। दूसरी ओर लार्सन एंड टुब्रो के चेयरमैन एस एन सुब्रह्मण्यन ने 90 घंटे के कार्य सप्ताह की पैरोकारी की है।
कर्मचारियों से बातचीत के दौरान एसएन सुब्रमण्यम का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें उन्होंने कर्मचारियों से सप्ताह में 90 घंटे और रविवार को भी काम करने की बात कही। उन्होंने कहा, “अगर मैं आपको रविवार को काम करने के लिए मोटिवेट कर सकूं, तो मुझे खुशी होगी, क्योंकि मैं खुद रविवार को भी काम करता हूं। आप घर पर क्या करते हैं? आप अपनी पत्नी को कितनी देर तक देख सकते हैं, और पत्नी अपने पति को कितनी देर तक देख सकती है? आइए, ऑफिस आएं और काम शुरू करें।”
L&T चेयरमैन ने आगे कहा कि चीन जल्द ही अमेरिका को पीछे छोड़ सकता है, क्योंकि चीनी कर्मचारी 90 घंटे काम करते हैं, जबकि अमेरिकी केवल 50 घंटे।
सुब्रमण्यम का ’90 घंटे काम’ का सुझाव इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति के ’70 घंटे काम’ के सुझाव से भी एक कदम आगे है। नारायण मूर्ति ने पहले कहा था कि “हमें कड़ी मेहनत करनी चाहिए और भारत को नंबर एक बनाने की दिशा में काम करना चाहिए।” मूर्ति ने यह भी कहा था कि 1986 में भारत का छह दिन से पांच दिन के वर्क वीक में बदलाव उन्हें निराशाजनक लगा।
इंफोसिस (Infosys) के फाउंडर नारायण मूर्ति (Narayana Murthy) ने कहा है कि भारत की कार्य संस्कृति को बदलने की जरूरत है और यहां के युवाओं को देश को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए सप्ताह में 70 घंटे काम करने के लिए तैयार रहना चाहिए। 3one4 Capital के पॉडकास्ट “द रिकॉर्ड” पर मोहनदास पई के साथ एक इंटरव्यू में में, मूर्ति ने कहा कि भारत को उत्पादकता में सुधार करने और सरकारी देरी पर काम करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, “जब तक हम अपनी कार्य उत्पादकता में सुधार नहीं करते, जब तक हम सरकार में किसी स्तर पर भ्रष्टाचार को कम नहीं करते, जैसा कि हम पढ़ते आ रहे हैं, हालांकि मुझे इसकी सच्चाई नहीं पता है। जब तक कि हम इस निर्णय को लेने में अपनी नौकरशाही की देरी को कम नहीं करते हम उन देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम नहीं होंगे जिन्होंने जबरदस्त प्रगति की है।” “इसलिए, मेरा अनुरोध है कि हमारे युवाओं को कहना चाहिए ‘यह मेरा देश है। मैं सप्ताह में 70 घंटे काम करना चाहूंगा।” मूर्ति द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी और जापान में काम की स्थितियों की भी तुलना करते है। उन्होंने कहा, “द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनों और जापानियों ने ठीक यही किया…उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि प्रत्येक जर्मन एक निश्चित संख्या में वर्षों तक अतिरिक्त घंटे काम करे।”
नारायण मूर्ति ने कहा, “हमें अनुशासित होने और अपनी कार्य उत्पादकता में सुधार करने की आवश्यकता है। मुझे लगता है कि जब तक हम ऐसा नहीं करते, गरीब सरकार क्या कर सकती है? और हर सरकार उतनी ही अच्छी होती है जितनी लोगों की संस्कृति। और हमारी संस्कृति को अत्यधिक दृढ़ संकल्प वाली बेहद अनुशासित और बेहद मेहनती संस्कृति में बदलना होगा।”
मूर्ति की टिप्पणियों के बाद सोशल मीडिया पर असहमति जताने वाले अधिकतर विचारों के बीच, ओला (OLA) के सह-संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) भाविश अग्रवाल ने मूर्ति के विचारों पर अपनी सहमति जताई। अग्रवाल ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, “मिस्टर मूर्ति के विचारों से पूरी तरह सहमत हूं। यह हमारे लिए कम काम करने और खुद का मनोरंजन करने का समय नहीं है। बल्कि यह हमारा समय है कि हम सब कुछ करें और एक पीढ़ी में वह बनाएं जो अन्य देशों ने कई पीढ़ियों में बनाया है!”
अपग्रेड के फाउंडर रोनी स्क्रूवाला इससे सहमत नहीं थे। एक अलग पोस्ट में, उन्होंने कहा, “उत्पादकता को बढ़ावा देना केवल लंबे समय तक काम करने के बारे में नहीं है। यह आप जो करते हैं उसमें बेहतर होने के बारे में है।
JSW Group के अध्यक्ष सज्जन जिंदल ने मूर्ति के बयान का समर्थन करते हुए बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा कि भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए कड़ी मेहनत करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘इसके लिए इस पीढ़ी को और अगली पीढ़ी को भविष्य की पीढ़ी के लिए अपना योगदान देना होगा। जिन देशों में हफ्ते में चार दिन काम हो रहा है, उनकी पिछली पीढि़यों ने काफी मेहनत की है और अब जाकर वे हफ्ते में चार दिन काम कर रहे हैं।’ ‘मेरे पिता सप्ताह में 7 दिन रोजाना 12 से 14 घंटे काम करते थे। मैं हफ्ते में कम से कम छह दिन रोजाना 10 घंटे काम करता हूं और मैं अपने बेटे से यह उम्मीद नहीं करता हूं कि वह भी इतनी मेहनत करें।’
इन्फोसिस के पूर्व मुख्य वित्त अधिकारी (सीएफओ), एचआर प्रमुख और बोर्ड सदस्य टी वी मोहनदास पई ने कहा, ‘आमतौर पर युवाओं को कड़ी मेहनत करने और अपनी छाप छोड़ने की सलाह दी जाती है। जब काम की उत्पादकता बढ़ती है तब उनका व्यक्तिगत मूल्य भी बढ़ जाता है।’
क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज मंच वजीरएक्स के उपाध्यक्ष राजगोपाल मेनन ने मूर्ति के बयान का समर्थन करते हुए कहा, ‘हम राष्ट्र-निर्माण के चरण पर हैं और भारत में कम उत्पादकता, भ्रष्टाचार की दिक्कत है। हमें बेहतर अफसरशाही और काम की बेहतर नीति की जरूरत है।’
वहीं श्री सीमेंट (Shree Cement) के अध्यक्ष हरि मोहन बांगड़ कहते हैं कि यह निजी चुनाव का विषय होना चाहिए और इसे किसी पर थोपा नहीं जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘कारोबार सीखने के लिए अमूमन 10,000 घंटे काम करने की और इसमें दक्षता हासिल करने के लिए 20,000 घंटे काम करने की जरूरत है। लेकिन कोई इसे कितनी जल्दी सीख लेता है यह उस व्यक्ति पर छोड़ देना चाहिए।’
इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी हाई-कॉम नेटवर्क के सीईओ सुखबीर सिंह भाटिया कहते हैं, ‘काम-जीवन के बीच संतुलन बिठाने वाली संस्कृति से नवाचार, रचनात्मकता के लिए प्रोत्साहन मिलने के साथ ही कर्मचारियों की संतुष्टि का स्तर भी बढ़ेगा। सफलता के लिए ये सभी कारक अहम हैं।’
फाइब के सह-संस्थापक और सीईओ अक्षय मेहरोत्रा कहते हैं कि वह जीवन और काम में संतुलन को तरजीह देते हैं और उत्पादकता का संबंध कई घंटे काम करने से नहीं है बल्कि नतीजे देने के लिए पूरा प्रयास किया जाना अहम है।
ट्विटर का अधिग्रहण करने वाले एलन मस्क खूब काम करने के लिए मशहूर हैं और उन्होंने कथित तौर पर ट्विटर के कर्मचारियों को रात के 2 बजे एक ईमेल भेजकर उन्हें ज्यादा मेहनत करने और लंबे समय तक काम करने का आदेश दिया। इसके चलते कंपनी में इस्तीफा देने की दर बढ़ गई।
वर्ष 2019 में भी जैक मा ने युवाओं को एक दिन में 12 घंटे और हफ्ते में छह दिन काम करने की सलाह दी जिसके बाद विवाद बढ़ गया। हालांकि उसके बाद उन्होंने कहा कि लोग तकनीक की मदद से हफ्ते में तीन दिन और एक दिन में चार घंटे भी काम कर सकते हैं।
अपग्रेड के रोनी स्क्रूवाला ने एक्स पर पोस्ट लिखा, ‘काम की उत्पादकता बढ़ाने के लिए लंबे समय तक काम करना ही अहम नहीं होता है बल्कि जरूरी यह है कि आप जो कर रहे हैं उसे कितना बेहतर कर पा रहे हैं और अपनी क्षमता बढ़ा रहे हैं। इसके अलावा काम के सकारात्मक माहौल के साथ ही काम पूरा होने पर उचित पारिश्रमिक मिलना भी जरूरी है।’
बॉलीवुड अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने भी इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी करने पर चेयरमैन की आलोचना की। उन्होंने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी में लिखा, “यह चौंकाने वाला है कि इतने सीनियर पदों पर बैठे लोग इस तरह के बयान देते हैं।
सुब्रमण्यम के इस बयान पर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आईं। उनके ‘पत्नी को कितनी देर देख सकते हो’ वाले बयान पर एक यूजर ने लिखा, “कर्मचारी स्क्रीन और मैनेजर्स को कितनी देर तक देख सकते हैं?” एक अन्य यूजर ने इसे सेक्सिस्ट सोच बताया। उन्होंने कहा, “एलएंडटी चेयरमैन का यह बयान गैर-जिम्मेदाराना है। ऐसा कहना न सिर्फ परिवार विरोधी संस्कृति को बढ़ावा देता है, बल्कि यह व्यक्तिगत चुनावों का भी अपमान है।”
आदाणी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अदाणी ने भी काम और व्यक्तिगत जीवन के बीच संतुलन रखने पर अपनी राय दी थी। उन्होंने कहा था, “अगर आप जो करते हैं और उसे पसंद करते हैं, तो आपका वर्क लाइफ बैलेंस स्वाभाविक रूप से सही रहेगा।” हालांकि, अदाणी ने यह भी कहा कि लोगों को वर्क लाइफ बैलेंस पर अपने विचार को दूसरों पर थोपने से बचना चाहिए। परिवार के समय के महत्व को उजागर करते हुए अदाणी ने सभी को अपनी परिवारों के साथ कम से कम चार घंटे हर दिन बिताने की सलाह दी। उन्होंने थोड़ा मजाकिया अंदाज में कहा, “नहीं तो बीवी छोड़ कर भाग जाएगी” (आपकी पत्नी आपको छोड़ सकती है)।
एंकर और शार्क टैंक इंडिया की प्रमुख निवेशक नमिता थापर ने भी वर्क लाइफ बैलेंस का समर्थन किया है। ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे के साथ एक इंटरव्यू में थापर ने कर्मचारियों से अत्यधिक घंटे काम लेने की इच्छा पर अपनी असहमति व्यक्त की थी। उन्होंने कहा था, “मैं बिल्कुल असहमत हूं। फाउंडर्स और उच्च स्टेकहोल्डर्स मोटी रकम कमाते हैं, तो वे ऐसा कर सकते हैं। लेकिन सामान्य आदमी और महिला के लिए उन्हें काम के घंटे निर्धारित होने चाहिए।” बता दें कि नमिता थापर एंफक्योर फार्मास्युटिकल्स की कार्यकारी निदेशक भी हैं।
( एजेंसी इनपुट के साथ ईशिता आयान दत्त, आयुष्मान बरुआ, शाइन जैकब, अजिंक्य कावले)
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