एचसीएल के सह-संस्थापक अजय चौधरी ने 2021 में गैर-लाभकारी संगठन एपिक फाउंडेशन की स्थापना की थी। इसका उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिकी में भारत को एक ‘उत्पाद देश’ बनाना था। नैशनल क्वांटम मिशन ऑफ इंडिया के मिशन गवर्निंग बोर्ड के चेयरमैन और इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन के सलाहकार बोर्ड के सदस्य चौधरी ने ईशिता आयान दत्त से खास बातचीत में कहा कि भारत की ताकत डिजाइन में है लेकिन वैश्विक कंपनियां उसका इस्तेमाल भारत में अपने उत्पादों के विकास के लिए करती हैं जिसे बदलने की जरूरत है। मुख्य अंश:
अगले कुछ महीनों में इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को दूसरे चरण के लिए मंजूरी मिल जाएगी। सभी पक्ष तैयार हैं। महाराष्ट्र में एक सिलिकन फैब होगा, उत्तर प्रदेश में दो फैब होंगे और कर्नाटक में एक छोटा फैब एवं ओडिशा में एक फैब होगा। ये सभी प्रस्ताव विचाराधीन हैं। पहला चरण 10 अरब डॉलर का था और दूसरा भी लगभग इतना ही होगा। इन संयंत्रों में राज्य सरकारें भी भाग ले रही हैं।
कई राज्य सेमीकंडक्टर नीतियां लेकर आए हैं, जहां वे पूंजीगत व्यय में 20 फीसदी अतिरिक्त रकम देंगे। करीब 70 फीसदी पूंजीगत व्यय का भुगतान करदाताओं के पैसे से होगा। हमारा सेमीकंडक्टर कार्यक्रम सही दिशा में है।
निर्यात करना आसान नहीं है क्योंकि लगभग हर देश फैब संयंत्र लगा रहा है। अगर हम भारत को एक इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद देश के रूप में विकसित नहीं करेंगे और यहां उत्पाद डिजाइन नहीं करेंगे तो हमें चीन से आयात जारी रखना होगा। चीन पर हमारी निर्भरता पहले से ही काफी अधिक है। चीन से आने वाले सभी उत्पादों में वहीं के चिप्स होंगे। उनके जरिये डेटा वापस जा सकता है। इसलिए हम जिस तरह से चल रहे हैं, वह हमारी सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है।
इस क्षेत्र के लिए एक कार्यबल बनाया गया है। हमने अपनी विस्तृत योजना में सरकार से कहा है कि भारत को करीब 40 उत्पादों की जरूरत है और हमें उनका डिजाइन और उत्पादन भारत में ही करना चाहिए। इलेक्ट्रॉनिकी में मूल्य डिजाइन और ब्रांडिंग में ही होता है। डिजाइन भारत की ताकत है। हमारे पास कोलकाता सहित देश भर में डिजाइन की व्यापक क्षमता है। मगर उसका इस्तेमाल हम नहीं बल्कि वैश्विक कंपनियां भारत में अपने उत्पाद विकसित करने के लिए करती हैं। हमें उसे बदलने की जरूरत है।
हमने सरकार को सुझाव दिया है कि हमें प्रोत्साहन योजना हो जिसमें कंपनियों एवं स्टार्टअप को भारत में उत्पाद बनाने के लिए कहा जाए। उन्हें सरकार को वित्तपोषित भी करना चाहिए। इसके लिए 30,000 करोड़ रुपये अलग रखने की जरूरत है। अगर हम यह रकम खर्च नहीं करेंगे तो हमारा 20 अरब डॉलर का निवेश बेकार हो जाएगा।
देश में बड़े पैमाने पर विनिर्माण हो रहा है। मगर विनिर्माण मूल्यवर्धन नहीं होता है। मूल्यवर्धन के लिए आपको भारत में डिजाइन करना होगा।
दुनिया बदल चुकी है। अब हर देश अपने दम पर काम करना चाहता है। ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका अपने हितों का ध्यान रखेगा। इसलिए हमें अपने दम पर बढ़ना होगा। हमारे पास दुनिया की सभी क्षमताएं और सबसे अच्छे दिमाग हैं।
मैं राज्य सरकार से कह रहा हूं कि उत्पाद डिजाइन के लिए विश्वविद्यालयों के आसपास 5 से 6 उत्कृष्टता केंद्र बनाए। 5 से 6 बड़े विश्वविद्यालयों को चुनें और उनके आसपास छोटे-छोटे पार्क बनाएं। ये पार्क स्टार्टअप और डिजाइन कंपनियों के होने चाहिए। फिर लोगों को उत्पाद बनाने के लिए आमंत्रित करें। अगर वे वहां उत्पाद बनाएंगे तो पूरा देश खरीदेगा। कल तक दुनिया का जोर सेवाओं पर था।
मगर आज की दुनिया उत्पादों के बारे में है। सेवाओं और यहां तक कि सॉफ्टवेयर में भी तमाम बाधाएं हैं। जब एआई पूरी ताकत से आएगा तो क्या होगा? उस समय किसी प्रोग्रामिंग या कॉल सेंटर की जरूरत ही नहीं होगी। ऐसे में बहुत सारी नौकरियां खत्म हो जाएंगी। ऐसा नहीं है कि हम सेवाओं में पिछड़ जाएंगे। लेकिन अब समय आ गया है कि हम उत्पाद भी तैयार करें।
यह बहुत अधिक है। अगर हम पीपीपी (क्रय शक्ति समानता) पर गौर करें तो यह रकम काफी अधिक दिखेगी। सरकार का कहना है कि यह सेमीकंडक्टर मिशन की ही तरह महज पहला चरण है।