दवा क्षेत्र की अमेरिकी कंपनी एक्टिस बायोलॉजिक्स इंक की भारतीय शाखा एक्टिस बायोलॉजिक्स प्राइवेट लिमिटेड अपनी हिस्सेदारी बेचकर 120 करोड़ रुपये जुटायेगी।
जुटाई हुई रकम से कंपनी 2 नये संयंत्र लगाने के अलावा नई तकनीक भी विकसित करेगी जिससे दवा और खाद्य उत्पाद बनाने वाली कंपनियों की उत्पादन लागत में कमी आने की बात की जा रही है।
मुंबई की एक्टिस बायोलॉजिक्स के संस्थापक और अध्यक्ष संजीव सक्सेना ने कहा है कि कंपनी की 15 फीसदी हिस्सेदारी को अमेरिका और यूरोप की प्राइवेट इक्विटी कंपनियों को बेचा जाएगा। यह सारी प्रक्रिया अगले चार हफ्तों में पूरी कर ली जाएगी।
दरअसल चाहे एक्टिस हो या बायोकॉन या फिर एवेस्थाजेन ये कंपनियां अपनी कुछ हिस्सेदारी बेचकर पैसा जुटा रही हैं ताकी नई प्रभावकारी दवाईयों की खोज और तेज हो सके। इन कंपनियों की योजना है कि तैयार फॉर्मूले को फाइजर इंक, रॉश, एस्ट्रा जेनेका और एमजेन जैसी बहुराष्ट्रीय दवा और बायोटेक कंपनियों को बेचकर मोटा मुनाफा कमाया जाए।
दूसरी ओर प्राइवेट इक्विटी कंपनियां भी दवा खोजने वाली कंपनियों में निवेश करने से नहीं कतरा रही हैं। इन कंपनियों को दवा खोजने वाली कंपनियों में बेहद संभावनाएं नजर आ रही हैं। प्राइवेट इक्विटी कंपनियों को पता है कि यदि एक दवा भी कारगर साबित हुई तो करोड़ों के वारे न्यारे हो सकते हैं। सक्सेना ने बताया कि हिस्सेदारी बेचने को लेकर उनकी तीन प्राइवेट इक्विटी कंपनियों से बात चल रही है। हालांकि उन्होंने किसी कंपनी के नाम का खुलासा नहीं किया।
गौरतलब है कि एक्टिस बायोलॉजिक्स इंक की एबीपीएल में 30 फीसदी हिस्सेदारी है। इसके अलावा संजीव सक्सेना की अगुआई वाले प्रमोटर समूह की 35 फीसदी हिस्सेदारी है। इनके अलावा अनुबंध शोध कंपनी इन्नोवासिंथ की इसमें 26 फीसदी हिस्सेदारी है बाकी हिस्सेदारी वालचंद इंडस्ट्रीज जैसी प्राइवेट इक्विटी फर्मों के पास है।
कंपनी अगले साल तक अपना पहला उत्पाद वीएफएफ-2 लाँच कर सकती है। सूत्रों का कहना है कि इस तकनीक के जरिये कई बायोटेक दवा, खाद्य और पेय उत्पादों की लागत में 80 फीसदी तक की कमी आ जाएगी। कंपनी कैंसर और अन्य रोगों के उपचार में काम आने वाली दवा ‘एंजियोजाइम’ भी विकसित कर रही है। कंपनी ने कुछ साल पहले इसे मर्क समूह की कंपनी सिरना थेरेपेटिक से खरीदा था। यह मलेशिया और भारत में परीक्षण के अंतिम दौर में है।