महज 6 महीने पहले जहां चीनी की अधिकता थी, अब इसकी कमी हो गई है। इसके लिए गन्ने की बुआई के क्षेत्रफल में आई कमी और कम रिकवरी रेट जिम्मेदार हैं।
इसकी वजह से चीनी की कीमतों में 35-40 प्रतिशत की तेजी आ गई है, और उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में भी कीमतों में मजबूती बनी रहेगी। अक्टूबर 2008 के बाद से चीनी की खुदरा कीमतों में 35-40 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है और इस समय चीनी 25-26 रुपये प्रति किलो बिक रही है।
दिलचस्प यह है कि जहां मंदी के चलते औद्योगिक और कृषि जिंस की कीमतों पर जबरदस्त दबाव है, वहीं चीनी मंदी से बेखबर है। उद्योग जगत का कहना है कि पिछला दो सीजन बहुत बुरा गुजरा है और वर्तमान में चीनी की कीमतें उत्पादन लागत से कम ( उत्तर प्रदेश की फैक्टरियों से 2100-2200 रुपये प्रति क्विंटल) हैं। चीनी सत्र अक्टूबर से सितंबर तक चलता है।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (आईएसएमए) के डॉयरेक्टर जनरल एसएल जैन ने कहा कि चीनी की कमी है, लेकिन आज की स्थिति यह है कि उत्पादन लागत भी नहीं निकल रही है, गन्ने की कीमत बहुत ज्यादा है और रिकवरी में 1 प्रतिशत की कमी आई है। अभी भी यह उद्योग खतरे के निशान पर है।
अगर इसके बाद से कीमतों में और गिरावट आती है, तो यह उद्योग किसानों को भुगतान नहीं दे पाएगा, जिसकी वजह से अगले साल की गन्ने की फसल भी प्रभावित होगी। जैन ने कहा कि इसे नहीं भुलाया जा सकता है कि सरकार ने इस उद्योग को 4,000 करोड़ रुपया बगैर किसी ब्याज के उपलब्ध कराया है, जिससे किसानों को भुगतान दिया जा सके।
अगले वित्त वर्ष में इस उद्योग को सरकार को भी 1000 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा, जो चार साल में किश्तों के भुगतान पर मिला हुआ है। आईएसएमए के मुताबिक वर्तमान सत्र में अक्टूबर-फरवरी के दौरान टीनी का कुल उत्पादन 116 लाख टन हुआ जो पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 19.44 प्रतिशत कम है।
सरकार ने इस सत्र के लिए कुल उत्पादन का अनुमान 220 लाख टन से कम करके 165 लाख टन कर दिया है। बहरहाल, जैन का मानना है कि कुल उत्पादन 160 लाख टन रहेगा। दो सत्रों में चीनी का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ था, उसके बाद गिरावट दर्ज की जा रही है। इसके पहले के2006-07 और 2007-08 के सत्र के दौरान देख भर की चीनी मिलों ने चीनी का ढेर लगा गिया।
चीनी मिलों द्वारा गन्ने की कीमतों के भुगतान समय से न करने की वजह से गन्ने की बुआई के क्षेत्रफ ल में 25 प्रतिशत कमी आ गई, क्योंकि किसानों को तिलहन और धान से ज्यादा कमाई होने लगी। कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से ही सरकार को कच्ची चीनी के आयात के मानकों में ढील देने जैसा फैसला करना पड़ा। साथ ही स्टॉक जमा करने की सीमा भी तय की गई।
साथ ही निर्यात के लिए किराए में दी जाने वाली छूट भी वापस ले ली गई। बहरहाल इन कदमों का कोई परिणाम व्यावहारिक रूप से नजर नहीं आ रहा है। थोक मूल्य सूचकांक में चीनी का भार 3.62 प्रतिशत है, जो सीमेंट (1.73 प्रतिशत), गेहूं (1.38 प्रतिशत) से ज्यादा है। यह केवल लोहा और स्टील के संयुक्त भार 3.64 प्रतिशत से कम है। इस वजह से सरकार इसकी कीमतों पर खासा ध्यान देती है।