उत्तर प्रदेश में इस साल गेहूं की रेकॉर्ड खरीद ने नया रेकॉर्ड बनाया है। इसकी वजह से भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) और राज्य की एजेंसियों के सामने भंडारण को लेकर कुछ दवाब आ गया है।
गौरतलब है कि पिछले साल प्रदेश में तय लक्ष्य से भी काफी कम गेहूं की खरीद हुई थी। दरअसल इस साल पिछले साल के मुकाबले अच्छे न्यूनतम समर्थन मूल्य की वजह से गेहूं खरीद ने रेकॉर्ड कायम कर दिया है।
मंगलवार तक प्रदेश में लगभग 25 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा जा चुका है। इसने 2001 में हुई 24.46 लाख टन गेहूं खरीद के रेकॉर्ड को तोड़ दिया है। प्रदेश में गेहूं की खरीद 30 जून 2008 तक जारी रहेगी। ऐसे में जब एफसीआई और प्रदेश की एजेंसियों की भंडारण क्षमता 25 लाख मीट्रिक टन के आसपास है। इसमें से भी 18 लाख मीट्रिक टन क्षमता का ही उपयोग किया जा सकता है। ये एजेंसियां बाकी बचे गेहूं के उचित भंडारण के लिए सभी विकल्पों पर विचार कर रही हैं।
एफसीआई अपनी भंडारण क्षमता के अलावा स्टेट वेयरहाउसिंग कॉर्पोरेशन (एसडब्ल्यूसी) और सेंट्रल वेयरहाउसिंग कॉर्पोरेशन (सीडब्ल्यूसी) से भी भंडारण के लिए बात कर रही है। कुछ गेहूं तो अभी भी खुले में पड़ा है और केवल पॉलिथीन से ही ढका हुआ है। वहीं एफसीआई सूत्रों का कहना है लखनऊ जैसी जगहों में भी भंडारण को लेकर दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
राज्य के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि यदि जरूरत पड़ी तो निजी गोदामों का भी उपयोग किया जाएगा। राज्य में केंद्रीय और राज्य की एजेंसियों ने कुल मिलाकर 25 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की है। राज्य की एजेंसियों का शुरुआत में 15 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीद का लक्ष्य था।
दूसरी ओर एफसीआई ने शुरुआत में 5 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा था जो बंपर खरीद के चलते 10 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गया। राज्य की एजेंसियों ने अपने लक्ष्य को बढ़ाकर 17 लाख मीट्रिक टन तक कर दिया है।
हालांकि इस महीने के आखिर तक एफसीआई 2.75 लाख मीट्रिक टन गेहूं को उत्तर प्रदेश से बाहर ऐसी जगह पर पहुंचा देगी जहां पर उसके भंडारण के लिए पर्याप्त स्थान हो। इसमें से कुछ स्टॉक सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के काम आएगा तो तो कुछ गेहूं ‘अत्योदय’ और ‘मिड डे मील’ जैसी कल्याणकारी योजनाओं के काम में आएगा।
दरअसल इस साल गेहूं की जो रेकॉर्ड तोड़ खरीद हुई है। उसकी वजह भी दिखाई देती हैं। इस साल सरकार समितियों और एजेंटों के साथ जुड़ी रही। गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1,000 रुपये प्रति क्विंटल पर 2.5 फीसदी का कमीशन भी दिया गया।
इसके अलावा सरकार द्वारा निजी खरीदारों के स्टॉक की सीमा को तय करने से भी गेहूं की कीमतें खुले बाजार में न्यूनतम समर्थन मूल्य के बराबर हो गई हैं, जिसकी वजह से किसान किसान अपनी फसल को सरकारी एजेंसियों को बेचने में फायदा समझ रहे हैं। दूसरी ओर निजी खरीदार लगातार स्टॉक सीमा को हटाने की बात करते रहे हैं। पिछले साल उत्तर प्रदेश में गेहूं खरीद बहुत कम रही थी। दरअसल पिछले साल कम न्यूनतम समर्थन मूल्य (850 रुपये प्रति क्विंटल) के चलते केवल 5.45 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद हुई थी।
इस साल पूरे प्रदेश में 4,843 मीट्रिक टन गेहूं खरीद केंद्र हैं। इसमें से भी 3,865 केंद्र राज्य एजेंसियों के हैं। इनमें राज्य सहकारी संघ, उत्तर प्रदेश सहकारी संघ, उत्तर प्रदेश खाद्य निगम, प्रांतीय सहकारी समिति और नैफेड जैसी एजेंसियां शामिल हैं। पिछले साल राज्य में 2.55 करोड मीट्रिक टन गेहूं का उत्पादन हुआ था जबकि इस साल 2.40 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का अनुमान है।