मौजूदा मार्केटिंग सीजन में निर्यात पर लगे प्रतिबंध की वजह से गैर-बासमती चावलों की कीमत में 30 से 40 प्रतिशत तक की कमी आई है।
कटाई का सीजन शुरू होने के साथ ही किसान गैर-बासमती चावल की किस्में पिछले सीजन की दरों की तुलना में कम कीमत पर बेचने को बाध्य हैं। पंजाब राइस एक्सपोर्ट्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट राजीव सेतिया ने कहा कि केंद्र सरकार की गलत नीतियों की वजह से गैर-बासमती चावल की कीमतों में कमी आई है।
केंद्र सरकार ने महंगाई को काबू में करने के लिए इस साल अप्रैल में गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि पूसा-1121 की कीमतों में कोई कमी नहीं आई। इसकी कीमतें 2,000 रुपये से 2,200 रुपये प्रति क्विंटल थीं।
एक विशेषज्ञ ने बताया कि पूसा-1121 पर इसका कोई प्रभाव नहीं दिखा क्योंकि केंद्र सरकार ने इसके निर्यात पर लगी पाबंदी हटा दी थी। किसान विपरीत परिस्थितियों से जूझ रहे हैं क्योंकि गैर-बासमती चावल की कुछ किस्में खरीद के उद्देश्य से भी वर्गीकृत नहीं किए गए हैं।
वर्तमान में अच्छे किस्म के धान (गैर-बासमती) की कीमत 1,050 से 1,200 रुपये प्रति क्विंटल के बीच चल रही है। कारोबारियों ने बताया कि पिछले साल इसकी कीमतें 1,800 रुपये से 2,000 रुपये प्रति क्विंटल थी।
शरबती किस्म के चावल जो पिछले साल 1,700 से 1,800 रुपये प्रति क्विंटल के बीच बेचे जा रहे थे फिलहाल 1,200 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास चल रही है। इसी प्रकार सुगंधा किस्म की कीमत वर्तमान में 1,400 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि पिछले साल इसकी कीमतें 1,800 से 2,000 रुपये प्रति क्विंटल के बीच थी।
अन्य गैर-बासमती चावल जैसे पीआर-111 और पीआर-114 की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम कीमत पर बेची जा रही हैं। पिछले साल इन किस्मों की कीमत 1,100 रुपये से 1,200 रुपये प्रति क्विंटल थी। सेतिया ने कहा कि वर्तमान परिस्थितियां किसानों पर दोनों तरफ से भारी पड़ रही हैं।
एक तरफ तो गैर-बासमती चावल के निर्यात पर पाबंदी लगी हुई है वहीं दूसरी तरफ कुछ किस्में ऐसी हैं जो सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीदे जाने लायक नहीं है। इससे किसानों को भारी नुकसान हो रहा है। इस एसोसिएशन ने गैर-बासमती चावल की किस्मों के निर्यात पर लगी पाबंदी तुरंत हटाए जाने की मांग की ताकि किसानों को होने वाले भारी घाटे को कुछ हद तक कम किया जा सके।
अच्छे किस्म के धान की खेती जिसमें बासमती और गैर-बासमती दोनों ही शामिल हैं, का रकबा इस खरीफ सीजन के दौरान पंजाब और हरियाणा में क्रमश: 40 प्रतिशत और 25 अधिक था। इसकी वजह पिछले साल किसानों को इसके निर्यात से होने वाला मुनाफा था।