न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी जामा पहनाए जाने की मांग कर रहे हजारों किसान पंजाब और हरियाणा की सीमा पर पुलिस से भिड़ रहे हैं। लेकिन नीति आयोग की एक नई रिपोर्ट बता रही है कि किसानों को जल्द से जल्द गेहूं और चावल के बजाय दलहन और तिलहन की खेती बढ़ानी पड़ेगी।
रिपोर्ट कहती है अगले 23 साल यानी 2047-48 तक देश में दलहन-तिलहन की मांग उपज से ज्यादा हो जाएगी और उसे काबू में करने के लिए गेहूं-चावल उगाने वाले किसानों को इन फसलों का रुख करना पड़ेगा।
कृषि में मांग और आपूर्ति अनुमान पर कार्य समूह की यह रिपोर्ट मंगलवार को जारी हुई, जिसके मुताबिक सामान्य स्थिति में 2047-48 तक भारत में दलहन का उत्पादन बढ़कर 4.7 करोड़ टन हो जाएगा, जो 2019-20 में करीब 2.3 करोड़ टन था। मगर इस दौरान मांग बढ़कर तकरीबन 4.9 करोड़ टन हो जाएगी, जिस हिसाब से करीब 20 लाख टन दलहन की कमी होगी।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘दलहन की मौजूदा उपज मांग को पूरा करने के लिए काफी नहीं है। अगर इसका रकबा और उत्पादन नहीं बढ़ा तो यह अंतर आगे भी बना रह सकता है।’
खाद्य तेलों के मामले में भी स्थिति ऐसी ही है। रिपोर्ट के अनुसार 2047-48 तक तिलहन की मांग बढ़कर 3.1 करोड़ टन हो जाएगी, जो 2019-20 में 2.2 करोड़ टन थी। लेकिन इस दौरान खाद्य तेलों का उत्पादन 2019-20 के 1.2 करोड़ टन से बढ़कर करीब 2.4 करोड़ टन ही हो पाएगा। ऐसे में मांग और आपूर्ति के बीच करीब 70 लाख टन का अंतर आ जाएगा।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘तिलहन की पैदावार बढ़ाई गई और दूसरे स्रोतों से उत्पादन भी बढ़ा तो निकट भविष्य में यह अंतर कम किया जा सकता है और आगे जाकर हम इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकते हैं।’
इसके विपरीत रिपोर्ट कहती है कि चावल की मांग 2030-31 में 11 करोड़ टन और 2047-48 में 11.4 करोड़ टन होने का अनुमान है, जबकि सामान्य स्थिति में इसका उत्पादन 2030-31 में 14.5 करोड़ टन और 2047-48 में 15.4 करोड़ टन रहने के आसार हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि गेहूं का उत्पादन भी भविष्य की मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त होने की उम्मीद है। इतना ही नहीं, 2030-31 में 1.9 से 2.6 करोड़ टन और 2047-48 में 4 से 6.7 करोड़ टन गेहूं अधिशेष भी रह सकता है यानी जरूरतें पूरी होने के बाद भी देश में इतना गेहूं बचा रहेगा।
रिपोर्ट कहती है, ‘इससे पता चलता है कि गेहूं और चावल का रकबा कुछ घटाकर दूसरी फसलों को दिए जानी की जरूरत है।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि सामान्य स्थिति में यानी आर्थिक वृद्धि (6.34 फीसदी) के भविष्य में भी जारी रहने पर अनाजों की कुल मांग 2047-48 तक सालाना 2.44 फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद है। अगर आर्थिक वृद्धि की रफ्तार तेज हुई तो यह आंकड़ा 3.07 फीसदी तक पहुंच सकता है।
नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि अनाज की मांग 2030-31 में 32.6 से 33.4 करोड़ टन और 2047-48 में 40.2 से 43.7 करोड़ टन रहने का अनुमान है।