देश में तांबे की भारी कमी का खतरा उत्पन्न हो गया है। सेंटर फॉर सोशल ऐंड इकनॉमिक प्रोग्रेस की नई रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ऊर्जा परिवर्तन, बुनियादी ढांचा विस्तार और औद्योगिक वृद्धि के कारण तांबे की मांग जितनी बढ़ती जा रही है देश में तांबा उत्पादन उसके मुकाबले बहुत कम है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘2050 तक दुनिया भर में तांबे की मांग बढ़कर 5 करोड़ टन तक हो जाने का अनुमान है। ऐसी स्थिति में यदि भारत के भीतर तांबे के उत्पादन और रीसाइक्लिंग की क्षमता तुरंत नहीं बढ़ाई जाती है तो आयात पर उसकी निर्भरता और भी बढ़ जाएगी।’
हरित ऊर्जा की ओर बढ़ते भारत के कदमों, इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड, इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण और उन्नत विनिर्माण के लिए तांबा बहुत अहम है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2030 तक परंपरागत क्षेत्रों में देसी मांग 32.4 लाख टन पहुंच जाएगी, जिसमें से 2.74 लाख टन तांबा तो हरित ऊर्जा के लिए ही चाहिए।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि तांबे का अच्छा-खासा भंडार मौजूद होने के बाद भी भारत इसके निर्यात से ज्यादा आयात इसीलिए करता है क्योंकि तांबे की खोज में उसे कम सफलता मिली है, पुरानी तकनीक इस्तेमाल होती है और निजी क्षेत्र का इसमें बहुत कम दखल है। रिपोर्ट कहती है कि तूतीकोरिन स्मेल्टर बंद होने से तांबा उत्पादन 40 फीसदी घट गया और उसके आयात पर निर्भरता बढ़ गई।
दुनिया भर में तांबे की आपूर्ति पर चीन का दबदबा है और 44 फीसदी तांबा प्रसंस्करण वहीं होता है। उधर इंडोनेशिया तांबे के कंसंट्रेट का निर्यात बंद करने की योजना बना रहा है। दोनों बातों का जिक्र करते हुए रिपोर्ट आगाह करती है कि भू-राजनीतिक खतरे, निर्यात पर बंदिश, अयस्क के ग्रेड में आती गिरावट और प्रोसेसिंग की बढ़ती लागत से वैश्विक तांबा आपूर्ति श्रृंखला को खतरा उत्पन्न हो रहा है।
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रिपोर्ट में भारत की तांबा वैल्यू चेन सुरक्षित करने के लिए नीतिगत सुझाव दिए गए हैं। उसमें कहा गया है कि भारत को अधिक तांबा निकालने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि भारी मात्रा में तांबा दबा पड़ा है और निकाला नहीं गया है। खनन गतिविधियों में निवेश आकर्षित करने और निवेश पर अच्छा रिटर्न सुनिश्चित करने के लिए भी नीतिगत पहल होनी चाहिए।