कीमत में उफान के चलते हाल तक लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला स्टील अब ऐसा सेक्टर बन गया है, जिस पर अब लोगों की नजरें शायद ही जाती हैं। क्योंकि इसकी कीमतें ढलान पर हैं।
हिचकोले खाते शेयर बाजार में प्रमुख स्टील कंपनियों के शेयर भाव धूल चाट रहे हैं यानी ये अपने ऐतिहासिक ऊंचाई से एक साल के निचले स्तर पर आ चुके हैं। 7 मई को स्टील उत्पादकों की प्रधानमंत्री के साथ हुई बैठक में स्टील की कीमत में 4 हजार रुपये प्रति टन की कटौती पर सहमति बनी थी।
साथ ही अगले तीन महीने तक कीमत न बढाने की मोहलत भी स्टील उत्पादकों ने दी थी। छह अगस्त को तीन महीने के मोहलत की अवधि समाप्त होने के बाद स्टील कंपनियां कीमत बढ़ा सकती थीं। लेकिन अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में हुए भारी फेरबदल हो गया है।
कीमत बढ़ाने की बात नेपथ्य में चली गई है और आर्थिक मंदी के चलते अब कीमतों में काफी कटौती हुई है। सितंबर से अब तक हॉट रोल्ड कॉयल की कीमत में चार हजार रुपये प्रति टन की कटौती हो गई है और यह 42 हजार रुपये प्रति टन पर पहुंच गया है।
यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्टील की कीमतें कम हुई हैं क्योंकि ओलिंपिक की समाप्ति के बाद चीन में स्टील की मांग में कमी आई है। दूसरी ओर इसके उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल मसलन लौह अयस्त और कोकिंग कोल की कीमत में कोई राहत नहीं मिली है।
जेएसडब्ल्यू और इस्पात जैसी कंपनियों के पास कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित करने का कोई रास्ता नहीं है। जून में समाप्त हुई तिमाही में इन कंपनियों के मुनाफे में काफी गिरावट आई है। विशेषज्ञों का कहना है कि जुलाई-सितंबर की तिमाही में इनके मुनाफे में काफी गिरावट आ सकती है।
इस उद्योग से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि स्टील का इस्तेमाल करने वाले उद्योगों की तरफ से इसकी काफी कम खरीद की जा रही है। उनका कहना है कि घरेलू बाजार में भी स्टील की मांग में काफी गिरावट आई है क्योंकि औद्योगिक और इन्फ्रास्ट्रक्चर की बढ़त दर में काफी कमी दर्ज की गई है।
स्टील कंपनी से जुड़े एक सीनियर अधिकारी का कहना है कि स्टील कंपनियों की उत्पादन इकाई की पूरी कपैसिटी पर और उपभोक्ता दोनों दबाव में हैं। उन्होंने कहा कि निर्यात मांग भी सीमित हो गया है। हर तरफ खरीदार देखो और इंतजार करो की रणनीति पर चल पड़े हैं।
पहले सरकार ने लॉन्ग प्रॉडक्ट मसलन सरिया, एंगल आदि पर 15 फीसदी की निर्यात ड्यूटी लगाई थी। इसके अलावा सरकार ने इसके आयात पर लगे 5 फीसदी के सीमा शुल्क को समाप्त कर दिया है। ये सारी कवायद सरकार द्वारा कीमतों को नियंत्रित करने केलिए की गई थी ताकि महंगाई पर काबू पाया जा सके। उस समय से स्टील की कीमतें नीचे उतर रही हैं।
अब स्टील उद्योग चाहता है कि सरकार द्वारा उठाए गए इन कदमों की समाप्ति हो जाए। वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने भी स्टील की ऊंची कीमत को देखते हुए इसके उत्पादकों पर कार्टल बनाने का आरोप लगाया था। गौरतलब है कि थोक मूल्य सूचकांक पर लोहा और इस्पात का भारांक 3.64 फीसदी का है।
हालांकि स्टील इंडस्ट्री को उम्मीद है कि नवंबर का बाद स्थिति में सुधार आएगा और तब तक मांग में एक बार फिर तेजी पकड़ेगी। इस पर सकारात्मक ये कि देश में स्टील का उत्पादन और इसके उपभोग में काफी गैप है।
इस साल अप्रैल से अगस्त के दौरान स्टील उत्पादन में 4.2 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई जबकि पिछले साल यह बढोतरी 5.2 फीसदी थी। साल 2006-07 में बढ़ोतरी दर 12.8 फीसदी थी। स्टील मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, इस दौरान मांग में 11 फीसदी की बढोतरी दर्ज की गई जो पिछले साल इस दौरान 10 फीसदी के स्तर पर थी।
आपूर्ति और मांग में अंतर के चलते भारत 2007-08 में स्टील का बड़ा आयातक बना रहा और इस साल भी यह ट्रेंड जारी रहेगा। साल 2011-12 तक भारत ने सालाना 124 मिलियन टन स्टील उत्पादन का लक्ष्य रखा है, जो इसके वर्तमान कपैसिटी 56 मिलियन टन से दोगुना है।