बीटी बैगन के कृषि परीक्षण पर टकराव

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 15, 2022 | 2:32 AM IST

बीटी बैगन की दो किस्मों के कृषि परीक्षणों के लिए हाल में दी गई मंजूरी से फिर से इस बात को लेकर बहस छिड़ गई है कि क्या देश में जीएम फसलों की वाणिज्यक खेती के लिए उचित जैव सुरक्षा मानक उपलब्ध हैं।  
आनुवांशिक अभियांत्रिकी मूल्यांकन समिति (जीईएसी) ने कुछ महीने पहले हुई बैठक में बीटी बैगन की दो देसी किस्मों जनक और बीएसएस-793 की अतिरिक्त कृषि परीक्षणों की मंजूरी दी थी। इनमें बीटी क्राई1फा1 जीन (इवेंट 142) है।   
बैगन हाइब्रिडों की ट्रांसजेनिक किस्मों को राष्ट्रीय पादप जैवप्रौद्योगिकी अनुंसधान केंद्र (एनआरसीपीबी) ने विकसित किया है। यह केंद्र भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के अंतर्गत काम करता है।
परीक्षण 2020 से 2023 सीजन के दौरान मध्य प्रदेश, कर्नाटक, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में किया जाएगा। और इसके लिए आवेदक को संबंधित राज्य के कृषि विभाग से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) लेना होगा। मौजूदा मंजूरी 2010 में संप्रग की सरकार के दौरान बीटी बैगन की किसी और घटना के वाणिज्यिक प्रदर्शन पर रोक लगाने के बाद दी गई है। तब इस रोक की वजह उचित और स्वतंत्र वैज्ञानिक अध्ययनों की कमी को बताया गया था।  
सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के कार्यकारी निदेशक डॉक्टर जी वी रामानजेनेयुलु ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘ऐसे समय पर जब बीटी बैगन के वाणिज्यिक प्रदर्शन पर अनिश्चितकालीन रोक लगी हुई है, तब जैव सुरक्षा की पूरी प्रक्रिया का इस प्रकार से निरीक्षण किया गया कि यह पता किया जा सके कि कैसे तकनीक का विकास हुआ, क्या आवेदक सभी आवश्यक बायो सुरक्षा प्रोटोकॉल को स्थापित कर सकते हैं और खेती में इसका किस प्रकार से परीक्षण किया जाना है, राज्य सरकारों की इसमें क्या भूमिका रहेगी, नियामकीय व्यवस्था किस प्रकार की होगी आदि।’  
उन्होंने कहा, ‘दुर्भाग्यपूर्ण है कि पिछले एक दशक में तक के सुझाए गए उपायों में से किसी भी उपाय को लागू नहीं किया गया है। इसलिए मुझे लगता है कि उन दिशानिर्देशों का पालन किए बगैर जल्दबाजी में कृषि परीक्षणों की मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए थी।’   
उन्होंने कहा कि एचटीबीटी का अनुभव दिखाता है कि कृषि परीक्षणों के दौरान काफी संख्या में अवैधानिक प्रसार हो जाता है जो खाद्य शृंखला में प्रवेश कर जाता है। रामानजेनेयुलु ने कहा, ‘मान लीजिए कि किसी व्यक्ति को कृषि परीक्षणों से बीटी बैगन का एक फल हाथ लग जाता है तो उसमें 50 से 100 बीज होते हैं और प्रत्येक बीज बैगन के पौधे में बदल सकता है जो बदले में 1000 बैगन का उत्पादन कर सकता है। इसलिए उपयुक्त प्रोटोकॉल के बगैर कृषि परीक्षण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।’
हालांकि, बीज कंपनियों का लॉबी समूह फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एफएसआईआई) ने कहा कि मौजूदा बीटी बैगन की घटना पहले की घटना से अलग है जिस पर रोक लगा दी गई थी?  
एफएसआईआई-एएआई (अलाएंस ऑफ एग्री इनोवेशन) के महानिदेशक राम कौंडिन्य ने कहा, ‘सब्जियों में बैगन सबसे अधिक कीटनाशक को अवशोषित करने वाला फसल है। बैगन की खेती के एक सीजन में ही किसान 25 से अधिक बार कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं। बीटी तकनीक के जरिए इसको नियंत्रित कर हम किसानों की आय बचा सकते हैं। साथ ही ऐसा होने पर पर्यावरण में भी कीटनाशक दबाव में कमी आएगी और उपभोक्ताओं को कीटनाशक तथा कीड़ा मुक्त बैगन मुहैया कराया जा सकेगा।’  
इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंधित भारतीय किसान संघ ने मजबूती से जीईएसी की मंजूरी का विरोध किया है।
खबर है कि उसने राज्य सरकारों से संपर्क कर इसके कृषि परीक्षणों की मंजूरी नहीं देने का आग्रह किया है। इस प्रकार लंबे समय से लंबित मुद्दे पर अब टकराव की स्थिति बन रही है।

First Published : September 6, 2020 | 11:48 PM IST