कोरोना महामारी की तगड़ी मार के बाद पहला आम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का पूरा जोर अर्थव्यवस्था को इसकी चोट से ‘पूरी तरह और तेजी से उबारने’ पर रहा। मगर उनका यह आशावाद और कोशिश बजट के आंकड़ों में नजर नहीं आए। दुनिया भर में मुद्रास्फीति के माहौल और 8 फीसदी से अधिक वास्तविक वृद्घि के आर्थिक समीक्षा के अनुमान के बावजूद 2022-23 में 11.1 फीसदी की नॉमिनल वृद्घि का अनुमान यही बताता है।
चालू वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटा (जीडीपी) सकल घरेलू उत्पाद के 6.9 फीसदी के बराबर बताया गया है, जो कर राजस्व में बढ़ोतरी के बावजूद 6.8 फीसदी के अपने लक्ष्य से पीछे रह गया। वित्त मंत्री ने 2025-26 तक राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.5 तक समेटने का संकल्प किया है और अगले साल इसे 6.4 फीसदी पर रखने का उनका लक्ष्य है। मगर खजाने को मजबूत करने का रास्ता ब्याज के बढ़ते बोझ के कारण मुश्किल होगा। 2022-23 में ब्याज भुगतान चालू वित्त वर्ष के बजट अनुमान से 16 फीसदी बढ़ गया है और 2020-21 की तुलना में यह पूरे 38 फीसदी ज्यादा है। कुल व्यय का 23.8 फीसदी ब्याज चुकाने में ही जा रहा है।
सरकार ने लघु बचत कोष पर अपनी निर्भरता कम करने का फैसला किया है और उसे 2022-23 में बाजार से 11.6 लाख करोड़ रुपये की शुद्घ उधारी की उम्मीद है। हालांकि उसकी यह उम्मीद बॉन्ड बाजार को पसंद नहीं आई। भारतीय सरकारी बॉन्डों को वैश्विक सूचकांकों में शामिल करने में मददगार कर सुधारों के बगैर ही उधारी का लक्ष्य इतना अधिक रखने के कारण 10 साल के सरकारी बॉन्ड की प्राप्ति उछल गई।
बजट में दूसरे अनुमान पुरानी लकीर पर ही दिखे। केंद्र सरकार के शुद्घ कर राजस्व में केवल 9.5 फीसदी बढ़ोतरी का अनुमान लगाया गया है और विनिवेश से भी केवल 65,000 रुपये मिलने की उम्मीद बजट में जताई गई है। इसी तरह केंद्रीय उत्पाद शुल्क से होने वाली आय भी घटने का अनुमान लगाया गया है। वित्त मंत्री ने बजट भाषण के दौरान 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी का नाम लिया मगर यह स्पष्ट नहीं है कि उससे होने वाली आय को ऊपर बताई गई प्राप्तियों में शामिल किया गया है या नहीं।
सीतारमण ने राजस्व व्यय की लगाम भी कसकर रखी। ब्याज भुगतान और पूंजीगत संपत्तियां तैयार करने के लिए मिलने वाले अनुदानों को अलग रखकर 2022-23 के लिए राजस्व के मद में व्यय को 2021-22 के संशोधित अनुमानों की तुलना में पूरे 29 फीसदी कम कर दिया गया। कोविड के कारण दिए जा रहे समर्थन में कुछ कमी का अनुमान तो पहले ही था। उर्वरक, पेट्रोलियम और खाद्य पर मिलने वाली सब्सिडी में 26 फीसदी से अधिक कमी का अनुमान लगाया गया है और मनरेगा पर खर्च में भी इतनी ही कमी का अनुमान है। व्यय के नए कार्यक्रम भी बहुत कम हैं। वित्त मंत्री ने कहा कि व्यय में इस कमी और अनुमान से कम राजकोषीय संकुचन से मिली रकम का इस्तेमाल पूंजीगत व्यय बढ़ाने में किया जाएगा।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि अगले वित्त वर्ष में 7.5 लाख करोड़ रुपये का पूंजीगत व्यय होगा, जो 2019-20 की तुलना में 2.2 गुना अधिक है। जाहिर है कि बजट का पूरा जोर महामारी से उबारने के लिए कल्याणकारी उपायों के बजाय बुनियादी ढांचे और उभरते हुए क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश पर है।
वर्ष 2022-23 के आम बजट का आर्थिक मॉडल एकदम साफ है: सार्वजनिक निवेश में लगातार बढ़ोतरी से निजी निवेश भी जुटेगा और वृद्घि का पहिया दौडऩे लगेगा। परिवहन पर खर्च और अन्य पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी यही सोचकर की गई है, हालांकि उनमें से कुछ लक्ष्य बहुत महत्त्वाकांक्षी प्रतीत हो रहे हैं। उदाहरण के लिए वित्त मंत्री ने अगले साल 25,000 किलोमीटर लंबाई के नए राजमार्ग बनाने की घोषणा की है, जिसके लिए रोजाना 68 किलोमीटर लंबे राजमार्ग बनाने होंगे। लेकिन आर्थिक समीक्षा में वित्त वर्ष की पहली छमाही में रफ्तार केवल 20.9 किलोमीटर प्रतिदिन रहने की बात कही गई है।
बुनियादी ढांचा सृजन पर बजट का जोर कृषि सिंचाई योजना, ग्रामीण सड़कों और ग्रामीण पेयजल मिशन में आवंटन वृद्घि में भी नजर आया। मगर शहरीकरण पर भी सरकार का पूरा जोर रहा। वित्त मंत्री चाहती हैं कि भारत के शहरों को सभी के लिए अवसर के साथ सतत निवास का केंद्र बनाया जाए। इसके लिए अमृत मिशन पर जोर दिया जा रहा है और सार्वजनिक परिवहन में निवेश बढ़ाने का प्रयास भी किया जा रहा है।
कर के मोर्चे पर वित्त मंत्री ने आयात के बजाय आत्मनिर्भर बनने की बात एक बार फिर कही। कर में कई तरह के बदलावों को देसी उद्योग की संरक्षा के लिए जरूरी बताया गया है। प्रत्यक्ष कर में क्रिप्टो कर के अलावा कुछ बदलाव किए गए। कराधान को आसान और नरम बनाने की बात कही गई और नई विनिर्माण इकाइयों एवं स्टार्टअप को कर प्रोत्साहन दिए गए। मगर मध्य वर्ग और वेतनभोगियों के लिए बजट में अलग से कुछ भी नहीं था। उन्हें आयकर में किसी तरह की राहत नहीं दी गई। न तो कर छूट की सीमा बढ़ाई गई, न आयकर स्लैब बदले गए और न ही निवेश के जरिये नई तरह की छूट दी गईं।