केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी को लगातार आठवां केंद्रीय बजट पेश करते हुए व्यक्तिगत आयकर स्लैब में बदलाव किया और स्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) सीमा में इजाफा किया। सरकार अगले सप्ताह नया आयकर विधेयक पेश करने की भी योजना बना रही है।
वित्त मंत्री ने नई कर व्यवस्था के तहत कर स्लैब में महत्वपूर्ण बदलाव का प्रस्ताव रखा है। इन कर स्लैब में इजाफा किया गया है। 25 फीसदी की कर दर वाला नया कर स्लैब लाया गया है। धारा 87ए के तहत छूट की सीमा भी बढ़ा दी गई है। इन बदलावों के कारण 12 लाख रुपये तक की आय पर कर की देनदारी अब समाप्त हो जाएगी। यानी 12 लाख रुपये तक कमाने वालों को अब कर नहीं चुकाना पड़ेगा।
मुंबई स्थित एक चार्टर्ड अकाउंटेंट सुरेश सुराणा का कहना है, ‘वेतनभोगी लोगों के लिए 75,000 रुपये की मानक कटौती की वजह से शून्य सीमा बढ़कर अब 12.75 लाख रुपये हो जाएगी। धारा 87ए में संशोधन कर छूट को 25,000 रुपये से बढ़ाकर 60,000 रुपये किया गया है।’ कर छूट से देय योग्य कर में कमी आती है, बशर्ते कुछ शर्तें पूरी की जाएं।
दीवान पी एन चोपड़ा ऐंड कंपनी में पार्टनर (डायरेक्ट टैक्स) प्रवीण कुमार का कहना है कि नई छूट सिर्फ वेतन आय से संबंधित कर पर लागू है, न कि पूंजीगत लाभ पर। पुरानी कर व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं किया गया है। कुमार का कहना है, ‘इसे चुनने वाले करदाता मौजूदा स्लैब दरों और कटौतियों के पात्र होंगे।’ ग्रांट थॉर्नटन भारत में पार्टनर अखिल चांदना का कहना है, ‘इससे नई कर व्यवस्था को ज्यादा लाभदायक बनाने और इससे ज्यादा लोगों को जोड़ने की सरकार की मंशा का पता चलता है।’
बजट 2025 ने 12 लाख रुपये तक कमाने वाले लगभग सभी आय स्तरों के लोगों को राहत प्रदान की है। कर-मुक्त सीमा 7 लाख रुपये से बढ़ाकर 12 लाख रुपये की गई है। चांदना का कहना है, ‘लोग बगैर छूट या कटौती के अब ज्यादा लाभ उठा पाएंगे, क्योंकि कर स्लैब को तर्कसंगत बनाया गया है।’
धारा 87ए के तहत कर छूट विशेष आय पर लागू नहीं होती है, जैसे लॉटरी जीतने या पूंजीगत लाभ पर। नांगिया एंडरसन एलएलपी में पार्टनर विश्वास पंजियार का कहना है, ‘उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति 14 लाख रुपये सालाना (3 लाख रुपये दीर्घावधि पूंजीगत लाभ समेत) कमाता है तो छूट उसके पूंजीगत लाभ पर लागू नहीं होगी और उस पर 12.5 फीसदी के हिसाब से कर लगेगा, भले ही वह 12 लाख रुपये तक की आय के लिए छूट की श्रेणी में आता हो।’
विश्लेषकों के अनुसार बजट में किए गए बदलावों की वजह से नई कर प्रणाली ज्यादा आकर्षक हो गई है। क्लियरटैक्स में कर विशेषज्ञ मेघा जैन का कहना है, ‘ज्यादा कर-मुक्त सीमा, कम कर दरें और आसान अनुपालन की पेशकश कर सरकार ने नई व्यवस्था को सक्रियता के साथ बढ़ावा दिया है।’
कुमार का मानना है कि नई कर व्यवस्था में बदलाव से हाउस रेंट अलाउंस (एचआरए), धारा 80सी और धारा 80डी जैसी डिडक्शन पर नजर बनाए रखने की जरूरत समाप्त हुई है। हालांकि उनका कहना है, ‘जिन व्यक्तियों को डिडक्शन से काफी लाभ मिलता है (जैसे कि बड़े आवास ऋण या चिकित्सा खर्च से जुड़े लोग) वे अभी भी पुरानी कर व्यवस्था को पसंद कर सकते हैं।’
राजकोषीय जवाबदेही और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम के वक्तव्य से यह पता चलता है कि, जैसा कि वित्त मंत्री ने भी जुलाई के बजट में कहा था, अब राजकोषीय लक्ष्य कर्ज से जीडीपी अनुपात की ओर बढ़ेगा। इस बयान में कहा गया है, ‘राजकोषीय लक्ष्य का चुनाव बजट से बाहर के उधारी के उचित खुलासे के माध्यम से राजकोषीय पारदर्शिता को बढ़ावा देने के सरकार के निरंतर प्रयासों के अनूकूल है।’ साल 2018 में एफआरबीएम अधिनियम में हुए संशोधन के मुताबिक इसमें एक निश्चित समय तक राजकोषीय घाटे और कर्ज, दोनों के लिए लक्ष्य तय किए गए हैं। हालांकि, साल 2026-27 से सरकार राजकोषीय घाटे को इस तरह से रखेगी कि केंद्र सरकार के कर्ज घटने का रास्ता पकड़ें।
एफआरबीएम वक्तव्य में कर्ज की दिशा के लिए अलग-अलग परिदृश्य बताए गए हैं। खराब हालत में अगर मान लें कि नॉमिनल वृद्धि महज 10 फीसदी की होती है और राजकोषीय मजबूती कम रहती है तो केंद्र सरकार का कर्ज 2024-25 में जीडीपी के 57.1 फीसदी से बढ़कर 2030-31 तक 52 फीसदी तक पहुंच जाएगा। लेकिन अगर यह मानें कि नॉमिनल वृदि्ध 11 फीसदी रहती है और मजबूती की दिशा में तेज बढ़त होती है तो इसी दौरान सरकार का कर्ज घटकर जीडीपी के 47.5 फीसदी तक रह जाएगा।
उदाहरण के लिए, बजट में कृषि क्षेत्र के लिए अन्य महत्त्वपूर्ण घोषणाओं के अलावा ‘प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना’ नाम से एक नया कार्यक्रम शुरू करन का भी प्रस्ताव दिया गया है। इसे राज्य सरकारों के साथ साझेदारी के जरिये शुरू किया जाएगा और यह कम उत्पादकता वाले 100 जिलों को कवर करेगा। इसका उद्देश्य उत्पादकता बढ़ाना, फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना और कटाई के बाद भंडारण को बेहतर करना है। इस कार्यक्रम के तहत किसानों को लंबी अवधि और लघु अवधि दोनों के लिए ऋण प्रदान किए जाएंगे। इससे करीब 1.7 करोड़ किसानों को लाभ मिलने की उम्मीद है। इसके अलावा, सरकार दलहन का उत्पादन बढ़ाने के लिए 6 साल की एक योजना शुरू करेगी। केंद्रीय एजेंसियां अगले चार वर्षों के दौरान किसानों से तीन दालों (तुअर, उड़द और मसूर) की खरीद करेंगी। इसके लिए किसानों को एजेंसियों के साथ समझौता करना होगा। इन प्रस्तावों का उद्देश्य न केवल ग्रामीण आय में सुधार लाना बल्कि कीमतों को नियंत्रित करने के लिए उत्पादन एवं उत्पादकता को बेहतर करना भी है। हाल में खाद्य कीमतों में तेजी के कारण समग्र मुद्रास्फीति बढ़ गई है जिससे भारतीय रिजर्व बैंक के लिए नीतिगत पहल करना कठिन हो गया है।
एमएसएमई क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए बजट में वर्गीकरण की सीमा को बढ़ाने का प्रस्ताव है। इससे एमएसएमई क्षेत्र को न केवल अपना दायरा बढ़ाने बल्कि दक्षता को बेहतर करने में भी मदद मिलेगी। विनिर्माण में यह क्षेत्र करीब 36 फीसदी योगदान करता है। उद्यम पोर्टल पर पंजीकृत सूक्ष्म उद्यमों को 5 लाख रुपये की सीमा के साथ कस्टमाइज्ड क्रेडिट कार्ड भी जारी किए जाएंगे।
इसका उद्देश्य छोटे उद्यमों के लिए परिचालन ऋण की उपलब्धता में सुधार लाना है। महिला उद्यमियों के लिए एक नई योजना भी शुरू की जाएगी। मेक इन इंडिया कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए बजट में राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन की स्थापना का प्रस्ताव किया गया है। इसमें लघु मझोले एवं बड़े उद्यम शामिल होंगे।
जहां तक निवेश की बात है तो पूंजीगत व्यय के लिए 11.21 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। यह रकम पिछले साल संशोधित अनुमान से करीब 10 फीसदी अधिक है। निवेश के मोर्चे पर सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) पर जोर दिया गया है। बुनियादी ढांचे से संबंधित सभी मंत्रालयों से उम्मीद की गई है कि वे 3 साल की अवधि वाली परियोजनाएं पीपीपी मोड में लागू करेंगे। इसमें मदद करने के लिए निजी क्षेत्र को पीएम गति शक्ति पोर्टल के आंकड़े भी प्रदान किए जाएंगे।
सरकार 2025 से 2030 के बीच नई परियोजनाओं में 10 लाख करोड़ रुपये का पूंजी निवेश करने के लिए परिसंपत्तियों को भुनाने की दूसरी योजना शुरू करेगी। बजट में शहरों और बिजली क्षेत्र में सुधारों को लागू करने का भी प्रस्ताव है।
सीतारमण ने कारोबारी सुगमता के लिए भी कई घोषणाएं की हैं। इस संदर्भ में द्विपक्षीय निवेश संधियों के मौजूदा मॉडल को निवेशकों के अनुकूल बनाया जाएगा। गैर-वित्तीय क्षेत्र के नियमों, प्रमाणन और मंजूरियों की समीक्षा के लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया जाएगा। आर्थिक समीक्षा में भी बताया गया है कि देश में कारोबारी माहौल को बेहतर करने के उद्देश्य से अनुपालन बोझ को कम करना आवश्यक है।
वित्त मंत्री ने पिछले बजट में किए गए वादों के अनुसार इस बजट में भी सीमा शुल्क दर ढांचे को युक्तिसंगत बनाने की घोषणा की है। इसके तहत 7 शुल्क दरों को हटाया गया है। उसके बाद शून्य के साथ केवल 8 शुल्क दरें होंगी। हालांकि कुछ वस्तुओं को छोड़कर शुल्क के प्रभाव को बरकरार रखने के लिए उचित उपकर लगाया जाएगा। सीतारमण ने उपभोक्ताओं को राहत देने और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए 40 वस्तुओं पर प्रभावी सीमा शुल्क को घटाने की भी घोषणा की। आयातकों के लिए आकलन एवं अनुपालन संबंधी नियमों को भी आसान बनाया जाएगा। इसके अलावा, निर्यात को बढ़ावा देने के लिए वित्त मंत्री ने घरेलू विनिर्माताओं को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं के साथ जोड़ने करने के लिए उपायों की भी घोषणा की है।